Monday, January 11, 2016

शुद्र vr अछूत

शुद्र vr अछूत
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वर्तमान समय से देखा जा सकता है कि जो वर्ग obc है, वही शूद्र है, परंतु वो कभी अपने आपको शूद्र नहीं मानता है, वह तो शूद्र सिर्फ sc st अर्थात अछूतों को ही मानता है, जबकि वास्तविकता यह है कि sc st अर्थात अश्यप्रश्य कभी शुद्र थे ही नहीं, उन्हें अतिशूद्र कहा गया है, जो शूद्रों का भाग नहीं वल्कि चारों वर्णों के बाहर अवर्ण की स्थिति का निरूपण था। अब प्रश्न उपस्तिथ होता है कि obc वर्ग अर्थात शूद्र अपने को शूद्र क्यों नहीं मानता? इसके कई कारण है, पहला कारण तो यह है कि वह हिन्दू या सनातन धर्म के बारे में ही पूर्ण जानकारी नहीं रखता, दूसरा वो अपने इतिहास से भलीभांति परिचित नहीं है, इसलिए वो सिर्फ स्मृतियों में भरे पड़े घृणित शब्दों से छुटकारा पाने के लिए अपनी शुद्र की उपाधि अछूतों को सौंपता फिरता है और स्वम ब्राम्हण एवम् क्षत्रियत्व के दम्भ में रहता है। शुद्र राजा रहे हैं, इसमें कोई शंका की बात नहीं है, इसी कारण से वो अपने शुद्र न समझकर क्षत्रिय मानते हैं। इसके लिए हमें आर्यो के प्रारंभिक तीन वर्णों के सिद्धांत को जानना होगा। बाबा साहेब डॉ आंबेडकर जी ने अपने शोध में पाया है कि 1 शूद्र सूर्यवंशी आर्यजातियो के वंश के थे। 2 भारतीय आर्य समुदाय में शूद्र का स्तर क्षत्रिय वर्ण का था। 3 एक समय आर्यो में केवल तीन वर्ण ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य हई थे। शुद्र अलग वर्ण नहीं था, बल्कि क्षत्रिय वर्ण का ही भाग था। 4 शूद्र राजाओ और ब्राम्हणो में निरंतर संघर्ष चलता रहा, जिससे ब्राम्हणो को अत्याचार, उत्पीड़न और अपमान सहना पड़ा। 5 शुद्रो के अत्याचार व् उत्पीड़न से त्रस्त ब्राम्हणो ने प्रतिशोध के कारण उनका उपनयन बंद कर दिया। 6 उपनयन पर प्रतिबन्ध से शुद्रो का सामाजिक पतन हुआ और वे वैश्यों से निचली सीढ़ी पर आ गये। उनका स्तर वैश्यों से भी निम्न हो गया। परिणामस्वरुप वे समाज का चौथा वर्ण बना दिये गए। दूसरी तरफ sc st अर्थात अतिशूद्र या अछूत - "ये छितरे आदमी बौद्ध थे। इसलिए वे ब्राम्हणो का आदर नहीं करते थे, उन्हें पुरोहित नहीं बनाते थे और उन्हें अपवित्र समझते थे। दूसरी ओर ब्राम्हण भी इन छितरे आदमियोँ को पसंद नहीं करते थे, क्योंकि वे बौद्ध थे। उनके विरुद्ध घृणा का प्रचार करते थे। इसका परिणाम यह हुआ कि छितरे आदमी अछूत समझे जाने लगे।" -डॉ आंबेडकर (सम्पूर्ण वाड्मय खंड 14)  
मनु भी अछूत एवम् अतिशूद्र को चातुर्वर्ण्य के बाहर ही रखते थे- इनका आशय था कि मूलतः चार वर्ण हैं और अतिशूद्र इन वर्णों से बाहर ही रहे इसलिए उन्होंने अश्यप्रश्य को वर्णबाह्य ( वर्ण व्यवस्था से बाहर के लोग) ही कहा है। यही कारण है कि बाबा साहेब ने लिखा है कि ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र सवर्ण हैं। अछूत अथवा अतिशूद्र अवर्ण कहलाते हैं।  और यही कारण रहा है कि अछूत कभी भी हिन्दू धर्म का अंग नहीं बन पाया है कि क्योंकि यह मानव शरीर के अलग आवश्यकता की वस्तु मात्र है।
     स्पष्टतः Obc अपने आपको आज तक शुद्र क्यों स्वीकार नहीं कर सका और क्षत्रियत्व का दम्भ भरता रहा यही ऊपरी कारण है और इसी कारण से वह obc भाई अछूत अर्थात sc st से भी भाईचारा नहीं निभा पाया। उल्टा वह भाईचारा छोड़ obc vr sc st बना हुआ है। व्यवहारतः देख सकते हैं कि sc st पर आज ब्राम्हण क्षत्रिय वैश्य से अधिक दमन, पीढ़ा का कार्य obc भाई कर रहा है और वह sc st का शोषक वर्ग बना बैठा है। यह पोस्ट सिर्फ obc भाइयो को अपनी पीढ़ा जानने एवम् वास्तविकता से अवगत होने के उद्देश्य है कि स्मृतियाँ वास्तव में अछूतों के लिए नहीं, आपके लिए तैयार की गई थीं और उनका पालन कर आपका ही दमन किया गया है, sc st के साथ। - नीरज बौद्ध
जय भीम, नमो बुद्धाय। भवतु सब्ब मंगलम!

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