Monday, January 11, 2016

150 साल तक स्तन खुले रखने को मजबूर थीं

150 साल तक स्तन खुले रखने को मजबूर थीं नीची जाति की औरतें! DECEMBER 7, 2015 · PUBLIC तब ब्रिटिश भारत में आए नहीं थे, उसके पहले से ही हमारे देश का एक हिस्सा औरतों के प्रति एक बहुत अमानवीय परंपरा का पालन करता आ रहा था। दक्षिण में त्रावणकोर की औरतों के लिए शरीर का ऊपरी हिस्सा कपड़ों से ढकने की मनाही थी। 150 साल पहले हालत यह थी कि औरतों का अपने ब्रेस्ट ढकना अपराध की श्रेणी में आता था। यह परंपरा 19वीं सदी के मध्य तक चली। तब केवल नंबूदिरी, ब्राह्मण, क्षत्रिय और नायर वंश की ऊंची जाति की औरतें ही स्तन ढक सकती थीं।  नीची जाति की औरतों को मजबूरन अपना वक्षस्थल खुला रखना पड़ता था।  यहां तक कि ऊंची जाति में भी इस नियम के कई पहलू थे। मसलन, एक क्षत्रिय औरत को एक ब्राह्मण (तुलनात्मक रूप से ऊंची जाति) के सामने अपना वक्षस्थल ढकने की मनाही थी। सजा के डर से विभिन्न जातियों की लगभग सभी औरतें अपना वक्षस्थल खुला ही रखती थीं। एक बार एक रानी ने अपने महल में एक दलित औरत को देखा, जिसका वक्षस्थल ढका हुआ था, तो रानी ने उस औरत के स्तन कटवाने का आदेश दे दिया।  शाही परिवार ने भी इस सामाजिक बुराई पर कोई ध्यान नहीं दिया। जब भी राजा का कारवां शहर की सड़कों पर निकलता था, तब ऊंची जाति की औरतें वक्षस्थल खुला रखकर उनपर पुष्पवर्षा करती थीं।  19वीं सदी की शुरुआत में परिस्थितियां सुधरने लगीं। काम की तलाश में केरल से लोग श्रीलंका गए और उन्हें अपने सामाजिक अधिकारों के बारे में पता चला। उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार किया, जिससे औरतों को घर में और घर के बाहर अपने शरीर को ढकने की आजादी मिली।  लेकिन, पुरुषों ने इसे अपनी बेइज्जती समझा और इस बदलाव के जवाब में उन्होंने औरतों पर हिंसक हमले करने और उनके कपड़े फाड़ने शुरू कर दिए।  1814 में त्रावणकोर के दीवान ने एक घोषणा-पत्र जारी किया, जिसने औरतों को अपना वक्षस्थल ढकने की अनुमति दी। इसके बावजूद यह लड़ाई जारी रही। लेकिन, कुछ औरतों ने पुरुषों के हमलों के जवाब में पूरे शरीर को ढकना शुरू कर दिया।  आखिर में 26 जुलाई 1859 को ब्रिटिशर्स के आगमन के साथ एक कानून पास किया गया, जिसने इस सामाजिक बुराई पर लगाम कसते हुए औरतों को इस अमानवीय परंपरा से आजादी दिलाई और इस तरह केरल राज्य के आधुनिक सामाजिक ढांचे का मार्ग प्रशस्त हुआ।

1 comment:

  1. मेरे मित्रों !!! कुछ जरा पीछे भी जा कर पढ़ लिया करो , केवल जो सामने आया बस वही जानकारी सत्य ना होती।
    कब
    क्यों
    कैसे
    के साथ स्वयं का विवेक प्रयोग करोगे और आस पास की सामाजिक गीतविधयों की जानकारी के साथ जब देखोगे तो राजनितिक विद्वेष से परे भी कुछ है।
    खैर लो पढ़ो।
    स्तन न ढकना एक परम्परा थी और यह कोई जातीय विद्वेष न था।
    यहां तक की वहां की रानी भी ऊपर भाग पर केवल दुपट्टा कमर से कंधे पर लेती थी।
    केरल के लोगों ने कभी भी ऊपरी वस्त्र नहीं पहना था जैसे पिक में दिया है ।
    इसका कारण है केरल की जलवायु केरल एक अच्छा उष्णकटिबंधीय वाला स्थान है , और इतने सारे कपड़ों के साथ खुद को कवर करने की कोई जरूरत नहीं थी। पुराने केरल के पुरुषों के पारंपरिक पोशाक बिना किसी शर्ट के, मोंदू या लुंगी ही थी ।
    http://dharmsamrat442.blogspot.com/2018/04/breasttax-afalsestorytoattackhindus.html

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