Friday, January 29, 2016

जोगेन्द्रनाथ मँडल- एक ऐसा नाम जिनका हम आदिवासी,दलित,पिछड़े लोगों को शुक्रगुजार होना चाहिये

जोगेन्द्रनाथ मँडल- एक ऐसा नाम जिनका हम आदिवासी,दलित,पिछड़े लोगों को शुक्रगुजार होना चाहिये. जिन्होने बाबा साहब डॉ. आंबेडकर जी को संविधान सभा में चुनकर भेजने का काम किया. जब संविधान बनाने वाली कमेटी का चुनाव हो रहा था तो कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि हमने बाबा साहब के लिए दरवाजे तो छोड़ो,खिड़कियां भी बंद कर दी हैं. देखते हैं बाबा साहब कहां से चुनकर संविधान सभा में पहुंचता है. जब देश के किसी भी कोने से बाबा साहब का जीतकर जाना नामुमकिन हो गया तो निराश हताश बाबा साहब को उम्मीद की किरण दिखाई महाप्राण जोगेंद्र नाथ मंडल ने. उन्होंने बाबा साहब को बंगाल से चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीट को खाली कर दिया. और बाबा साहब को बंगाल के जैसोर खुलना से चंडालों ने जिताकर भेजा. लेकिन बाबा साहब के प्रति और देश के दलितों,आदिवासियों,पिछडों के प्रति पहले से दुर्भावना रखने वाली कांग्रेस ने भारत पाक विभाजन के समय जैसोर खुलना क्षेत्र को पाकिस्तान में शामिल करवा दिया. और बंगाल के चंडालों(नमोशूद्रों) के विस्थापन के समय देश के 18 राज्यों के बीहड़ों में फिंकवा दिया. इनको आज तक भारत का नागरिक का दर्जा नहीं दिया. इनके साथ ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि इन्होने बाबा साहब को जिताने का काम किया. आज महाप्राण जोगेंद्रनाथ मंडल जी की जयंती पर उन्हे शत शत नमन.....!!!

Thursday, January 21, 2016

रोहित को याद करने और उनकी स्मृति को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका

रोहित को याद करने और उनकी स्मृति को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि हम इस खालीपन को भरने के लिए एक-दूसरे के करीब बने रहें. कमियों की अनदेखी करके संवाद बनाए रखने की कोशिश करेहैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या करने से पहले जो पत्र लिखाउसमें उन्होंने खालीपन के अहसास को आत्महत्या जैसा कदम उठाने का कारण माना है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ब्राह्मणवादी करतूतों का विरोध करते हुए खालीपन के अहसास से भर जाना बहुत बड़ी त्रासदी है. यह हमारी सामूहिक त्रासदी है. रोहित जैसे न जाने कितने लोग व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हुए इस खालीपन से भर जाते हैं. यह एक ऐसी कड़वी सच्चाई है जिसे हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं. रोहित को याद करने और उनकी स्मृति को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि हम इस खालीपन को भरने के लिए एक-दूसरे के करीब बने रहें. कमियों की अनदेखी करके संवाद बनाए रखने कीकोशिश करें.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसे संगठनों की जनविरोधी विचारधारा और पूंजीवाद की विचारहीनता ने हमारे देश के माहौल को इतना जहरीला बना दिया है कि बदलाव की छोटी-मोटी कोशिशें अपने छोटे दायरे में ही दम तोड़ देती हैं. अगर प्रगतिशील ताकतों में एकजुटता रहे तो यह छोटा दायरा बड़ा भी हो सकता है.रोहित के लिए अपने संघर्ष को जारी रखना कितना मुश्किल बना दिया गया था इसे समझने के लिए उस मामले को ठीक से समझना होगा जिसने अंत में रोहित की जान ले ली. पिछले साल अगस्त में दिल्ली विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों और अन्य हिंदूवादी संगठनों के सदस्यों ने हिंसा की धमकी देकर 'मुजफ्फरनगर बाकी है' नाम की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रोक दी थी. भारतीय लोकतंत्र के लिए यह बहुत शर्मनाक घटना थी. जब देश की राजधानी में ऐसा हो सकता है तो दूसरी जगहों पर क्या-क्या हो सकता है इसकी कल्पना करके ही दिल भय और निराशा से भर जाता है. हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में इस घटना का विरोध हुआ और बाद में इस कैंपस में अखिल भारतीयविद्यार्थी परिषद के एक सदस्य ने रोहित और दूसरे छात्रों पर हिंसा का आरोप लगाया. जांच-पड़ताल के बाद यह आरोप झूठा सिद्ध हुआ. लेकिन इसके बाद कुछ ऐसा हुआ जो हमारे देश की ब्राह्मणवादी व्यवस्था की मानसिक गंदगी और कुटिलता को हमारे सामने लाता है.भयानक गरीबी का सामना करते हुए उच्च शिक्षा तक पहुंचने वाले इन छात्रों ने ऐसा कौन-सा अपराध कर दिया था जिसके लिए उन्हें इतनी बड़ी सजा दी गई? यह अपराध था अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसात्मक और अलोकतांत्रिक गतिविधियों का विरोध करनाभाजपा विधायक रामचंद्र राव ने इस मामले में 'दोषियों' को सजा दिलाने की मुहिम छेड़ दी. बंडारू दत्तात्रेय ने तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर 'राष्ट्रविरोधी'छात्रों को सजा दिलवाने की मांग की थी. पुराने वीसी के कार्यकाल में प्रशासन ने मेडिकल रिपोर्ट में मारपीट की बात के गलत साबित होने के बावजूद भाजपा के दबाव में रोहित और चार दूसरे दलित छात्रों को निलंबन की सजा दे दी. बाद में जब विद्यार्थियों ने इस सजा का जोरदार विरोध किया तो यह सजा वापस ले ली गई और नई जांच समिति गठित करने की घोषणा की गई. नए वीसी ने इस समिति को भंग करके नई समिति बनाई जिसने संबंधित पक्षों से पूछताछ किए बिना रोहित और उनके चार साथियों के हॉस्टल, प्रशासनिक भवन समेत मेस, लाइब्रेरी जैसी सार्वजनिक जगहों पर जाने पर पाबंदी लगा दी.आप रोहित के रूप में एक व्यक्ति को एक तरफ रखिए और दूसरी तरफ हमारे शासन तंत्र को. हमें रोहित की आत्महत्या को सही राजनीतिक संदर्भों में देखना होगा. जब आपको इस बात का अहसास हो जाए कि पूरातंत्र आपके खिलाफ खड़ा है तो आप क्या महसूस करेंगे? इस पाबंदी को कैंपसों में जाति प्रथा लागू करने के उदाहरण के तौर पर ही देखा जाना चाहिए. चार दलित छात्रों के पिता खेतिहर मजदूर हैं. एक के माता-पिता गुजर चुके हैं. भयानक गरीबी का सामना करते हुए उच्च शिक्षा तक पहुंचने वाले इन छात्रों ने ऐसा कौन-सा अपराध कर दिया था जिसके लिए उन्हें इतनी बड़ी सजा दी गई? यह अपराध था अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसात्मक और अलोकतांत्रिक गतिविधियों का विरोध करना. हम भारत के शिक्षा संस्थानों के भगवाकरण को रोकने में नाकामयाब हो रहे हैं. रोहित इस सामूहिक नाकामयाबी से उपजी निराशा से उबरने की कोशिश कर रहे थे.उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण लागू होने के बाद अनुसूचित जाति-जनजाति और ओबीसी के विद्यार्थियों की मौजूदगी बढ़ी है. हालांकि जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से यह मौजूदगी संतोषप्रद नहीं है, लेकिन असमानता और शोषण को ही जीवन मूल्य मानने वाले लोग इस बदलाव से न केवल चिढ़ते हैं बल्कि इस प्रक्रिया को रोकने के लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार रहते हैं. जब हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय कैंपस में पानी की दिक्कत चल रही थी तब इस कैंपस के सौंदर्यीकरण के नाम पर फव्वारे लगाए गए. यही हाल तमाम दूसरे कैंपसों का है. रोहित को सात महीने से फेलोशिप नहीं मिली थी. उन्होंने आत्महत्या से पहले लिखे अपने पत्र में इस पैसे को अपने घरवालों तक पहुंचाने का अनुरोध किया है. पैसे की यह दिक्कत उन लाखों विद्यार्थियों को होती है जो तमाम असुविधाओं का सामना करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं. यूजीसी ने फेलोशिप बंद करने का जो फैसला सुनाया है उसका सबसे खराब असर दलितों और महिलाओं पर पड़ेगा.हम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसक गतिविधियों को तो फिर भी देख लेते हैं लेकिन उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बौद्धिक हिंसा पर उतना ध्यान नहीं दे पाते जितना देना चाहिए. जब 2011 में एके रामानुजम के प्रसिद्ध निबंध '300 रामायणें : पांच उदाहरण और अनुवाद पर तीन विचार' को दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास के पाठ्यक्रम से हटाया गया तब यही हिंसा काम कर रही थी. वेंडी डोनिगर की हिंदुओं पर लिखी किताब को नष्ट करवाने वाली हिंसा भी हमारी चिंता के दायरे में होनी चाहिए. यही हिंसा दीनानाथ बत्रा जैसे लोगों को बौद्धिकता का तमगादेकर रोमिला थापर के सामने खड़ा कर देती है. इस बौद्धिक हिंसा की काट ढूंढ़े बिना रोहित जैसे लोगों का संघर्ष हर दिन ज्यादा जटिल और कठिन होता जाएगा. तमाम शिक्षा संस्थानों में अयोग्य दक्षिणपंथियों को बड़े पदों पर बैठाना भी इसी हिंसा का हिस्सा है. यही लोग रोहित जैसे साथियों की जिंदगी को इतना बोझिल और कष्टप्रद बना देते हैं कि उन्हें आत्महत्या का विकल्प चुनना पड़ता है.अभी यह खबर मिली है कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में रोहित के शव के इर्द-गिर्द खड़े प्रदर्शनकारियोंको पुलिस ने बेरहमी से पीटा है और आठ विद्यार्थियों को गिरफ्तार किया गया है. दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सामने विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों पर वाटर कैनन से पानी डाला गया है. जनवरी की ठंड में पुलिस की लाठी-ठंडे और पानी का सामना करते हुए कैंपसों के भगवाकरण का विरोध कर रहे ये लोग ही हमारे लोकतंत्र के असली पहरेदार हैं. जो जैसा चल रहा है उसे वैसा ही चलने दो, इस मानसिकता ने हमारे देश को दलितों, स्त्रियों, मजदूरों आदि के लिए खुली जेल बना दिया है. एक तरफ इस जेल के कैदी आत्महत्या कर रहे हैं तो दूसरी तरफ वैश्विक पूंजी के बाजार में हमारे देश को विश्व की उभरती ताकत के रूप में पेश किया जा रहा है. इस बौद्धिक अश्लीलता पर जितनी जल्दी रोक लगे उतना अच्छा होगा.

Monday, January 18, 2016

Shudro Ka Itihas

Shudro Ka Itihas
आज कल हमारे भारत के स्कूलों और कॉलेजों में जो भारत का इतिहास पढाया जाता है, उस इतिहास और वास्तविक इतिहास में बहुत अंतर है । वेदों और पुराणों में जो इतिहास वर्णित है, वो भी मात्र एक कोरा झूठ है । क्या कभी किसी ने सोचा जो भी इतिहास हमारे पुराणों, वेदों और किताबों में वर्णित है उस में कितना झूठ लिखा है । जो कभी घटित ही नहीं हुआ उसे आज भारत का इतिहास बना कर भारत की नयी पीढ़ी को गुमराह किया जा रहा है । पुराणों-वेदों में वर्णित देवता और असुरों का इतिहास? क्या कभी भारत में देवता का हुआ करते थे‌? जो हमेशा असुरों से लड़ते रहते थे. आज वो देवता और असुर कहाँ है?
भारत में कभी भी ना तो कभी देवता थे, ना है और ना ही कभी होंगे । ना ही भारत में कभी असुर थे, ना है और ना ही कभी होंगे । ये शास्वत सत्य है ।
shudro ka itihas1आज नहीं तो कल पुरे भारत को यह बात माननी ही होगी । क्योकि इन बातों का कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है । जिन बातों का कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है, उन बातों को इतिहासकारों ने सच कैसे मान लिया? इतिहासकारों ने बहुत घृणित कार्य किया है । उन्होंने बिना किसी वैज्ञानिक आधार पर बिना कोई शोध किये देवी-देवताओं को भारत के इतिहास की शान बना दिया । देवता भी इसे अजीब अजीब की कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति विश्वास ही नहीं कर सकता । विष्णु जो एक अच्छा खासा इन्सान हुआ करता था, आज वेदों और पुराणों के झूठ के कारण सारी दुनिया का पालक भगवान् बना बैठा है । ऊपर से विष्णु के नाम के साथ ऐसे ऐसे कार्य जोड़ दिए है कि आज स्वयं विष्णु इस धरती पर आ जाये तो बेचारा शर्म के मारे डूब मरे । ये सिर्फ एक विष्णु की ही बात नहीं है, कुल मिला कर 33 करोड़ ऐसे अजीब नमूने हमारे इतिहास में भरे पड़े है । ऊपर से इतिहास में ब्राह्मणों के ऐसे कृत्य लिखे हुए है, अगर ब्राह्मणों में शर्म नाम की और मानवता नाम की कोई चीज होती तो आज पूरा ब्राह्मण समाज डूब के मर जाता । क्या पूरा देश सिर्फ एक ही वर्ग के लोगों ने चलाया? क्या पिछले 2000 सालों में समाज के दुसरे वर्गों ने भारत के लोगों के लिए कुछ भी नहीं किया? अगर किया.. तो इतिहासकारों ने दुसरे वर्गों के बारे क्यों नहीं लिखा? और जो लिखा है उस में इतना झूठ क्यों? इन सब बातों का एक ही अर्थ निकालता है कि भारत के इतिहासकार बिकाऊ थे और आज भी भारत के बिकाऊ इतिहासकार चंद सिक्को के बदले पुरे देश की जनता की भावनाओं से खेल रहे है । हमारे समाज के 5% ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों को दुनिया की सबसे ऊँची जाति लिख कर बाकि सभी जातियों (95% लोगों) के साथ इन इतिहासकारों ने नाइंसाफी की है । अगर किसी से पूछा जाये कि ईसा से 3200 साल पहले के इतिहास का कोई वर्णन क्यों नहीं है? तो उत्तर मिलाता है इस पहले कोई विवरण कही नहीं है । लेकिन हम पूछते है, क्या इतिहासकरों ने कोई अच्छा शोध किया? इतिहासकारों ने इतिहास लिखने से पहले पुराणी किताबों को पढ़ा? क्या इतिहासकारों ने देश के सभी एतिहासिक स्थानों पर शोध किये? अगर किये तो वो शोध साफ़ और स्पष्ट क्यों नहीं है? तो कहा है भारत का इतिहास?
आज भारत के बाहर निकालो तो सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है । अगर कोई भारतीय विदेशियों को अपना इतिहास बताता है तो सभी विदेशी बहुत हंसते है, मजाक बनाते है । सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है, फिर भी भारत के 95% लोगों को अँधेरे में रखा गया है । क्योकि अगर भारत का सच्चा इतिहास सामने आ गया तो ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों द्वारा समाज के सभी वर्गों पर किये गए अत्याचार सामने आ जायेंगे, और देश के लोग हिन्दू नाम के तथाकथित धर्म की सचाई जानकर हिन्दू धर्म को मानने से इनकार कर देंगे । कोई भी भारतवासी हिन्दू धर्म को नहीं मानेगा । ब्राह्मणों का समाज में जो वर्चस्व है वो समाप्त हो जायेगा ।

बहुत से लोग ये नहीं जानते कि भारत में कभी देवता थे ही नहीं, और न ही असुर थे । ये सब कोरा झूठ है, जिसको ब्राह्मणों ने अपने अपने फायदे के लिए लिखा था, और आज भी ब्राह्मण वर्ग इन सब बातों के द्वारा भारत के समाज के हर वर्ग को बेबकुफ़ बना रहा है । अगर आम आदमी अपने दिमाग पर जोर डाले और सोचे, तो सारी सच्चाई सामने आ जाती है । ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य ईसा से 3200 साल पहले में भारत में आये थे । आज ये बात विज्ञान के द्वारा साबित हो चुकी है । लेकिन ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य इतने चतुर है कि वो विज्ञान के द्वारा प्रमाणित इतिहास और जानकारी भारत के अन्य लोगों के साथ बांटना ही नहीं चाहते । क्योकि अगर ये जानकारी भारत के लोगो को पता चल गई तो भारत के लोग ब्राह्मणों, राजपूतो और वैश्यों को देशद्रोही, अत्याचारी और अधार्मिक सिद्ध कर के देश से बाहर निकल देंगे । भारत के लोगों को सच्चाई पता ना चले इस के लिए आज भी ब्राह्मणों ने ढेर सारे संगठन जैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी बना रखे है. हजारों धर्मगुरु बना रखे है. जो सिर्फ ढोग, पाखंड और भारत के लोगों को झूठ बता कर अँधेरे में रखते है, क्यों रखते है? ताकि भारत के 95% लोगों को भारत का सच्चा इतिहास पता ना चल जाये । और वो 95% लोग ब्राह्मणों को देशद्रोही करार दे कर भारत से बाहर ना निकल दे । भारत से ब्राह्मणों का वर्चस्व ही ख़त्म ना हो जाये ।

यह भारत के सच्चे इतिहास की शुरुआत है तो यहाँ कुछ बातों पर प्रकाश डालना बहुत जरुरी है । ताकि लोगों को थोडा तो पता चले कि आखिर ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों ने भारत में आते ही क्या किया जिस से उनका वर्चस्व भारत पर कायम हो पाया:
1.ईसा से 3200 साल पहले जब भारत में रुद्रों का शासन हुआ करता था । भारत में एक विदेशी जाति आक्रमण करने और देश को लूटने के उदेश्य आई । वह जाति मोरू से यहाँ आई जिनको "मोगल" कहा जाता था । मोरू प्रदेश, काला सागर के उत्तर में यूरेशिया को बोला जाता था । यही यूरेशियन लोग कालांतर में पहले "देव" और आज ब्राह्मण कहलाते है । यूरेशियन लोग भारत पर आक्रमण के उदेश्य से यहाँ आये थे । लेकिन भारत में उस समय गण व्यवस्था थी, जिसको पार पाना अर्थात जीतना युरेशिनों के बस की बात नहीं थी । भारत के मूल-निवासियों और यूरेशियन आर्यों के बीच बहुत से युद्ध हुए । जिनको भारत के इतिहास और वेद पुराणों में सुर-असुर संग्राम के रूप में लिखा गया है । भारत की शासन व्यवस्था दुनिया की श्रेष्ठतम शासन व्यवथा थी । जिसे गण व्यवस्था कहा जाता था और आज भी दुनिया के अधिकांश देशों ने इसी व्यवस्था को अपनाया है । ईसा पूर्व 3200 के बाद युरेशियनों और मूल निवासियों के बीच बहुत से युद्ध हुए जिन में यूरेशियन आर्यों को हार का मुंह देखना पड़ा।
2.पिछले कई सालों में भारत में इतिहास विषय पर हजारों शोध हुए । जिस में कुछ शोधों का उलेख यहाँ किया जाना बहुत जरुरी है । जैसे संस्कृत भाषा पर शोध, संस्कृत भाषा के लाखों शब्द रूस की भाषा से मिलते है । तो यह बात यहाँ भी सिद्ध हो जाती है ब्राहमण यूरेशियन है । तभी आज भी इन लोगों की भाषा रूस के लोगों से मिलती है । कालांतर में यूरेशिया में इन लोगों का अस्तिव ही मिट गया तो भारत में आये हुए युरेशियनों के पास वापिस अपने देश में जाने रास्ता भी बंद हो गया और यूरेशियन लोग भारत में ही रहने पर मजबूर हो गए । युरेशियनों को मजबूरी में भारत में ही रहना पड़ा और आज यूरेशियन भारत का ही एक अंग बन गए है, जिनको आज के समय में ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य कहा जाता है ।
3.ईसा पूर्व 3200 में यूरेशिया से आये लोगों की चमड़ी का रंग गोरा था, आँखों का रंग हल्का था और इनकी खोपड़ी लम्बाई लिए हुए थी । ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य यूरेशिया से आये है. यह बात 2001 में प्रसिद्ध शोधकर्ता माइकल बामशाद ने वाशिंगटन विश्वविद्यालय में भारत की सभी जातियों के लोगों का DNA परिक्षण करके सिद्ध कर दी थी । DNA परिक्षण में यह बात साफ़ हो गई थी कि क्रमश: ब्राह्मण का 99.90%, राजपूत का 99.88% और वैश्य का 99.86% DNA यूरेशियन लोगों से मिलता है । बाकि सभी जाति के लोगों का DNA सिर्फ भारत के ही लोगों के साथ मिलाता है ।
4.जब यूरेशियन भारत में आये तो यह आक्रमणकारी लोग नशा करते थे । जिसको कालांतर में "सोमरस" और आज शराब कहा जाता है । यूरेशियन लोग उस समय सोमरस पीते थे तो अपने आपको "सुर" और अपने समाज को "सुर समाज" कहते थे । यूरेशियन लोग ठंडे प्रदेशों से भारत में आये थे, ये लोग सुरापान करते थे तो इन लोगों ने भारत पर कुटनीतिक रूप से विजय पाने के लिए अपने आपको देव और अपने समाज को देव समाज कहना प्रारम्भ कर दिया ।
5.भारत के लोग अत्यंत उच्च कोटि के विद्वान हुआ करते थे । इस बात का पता गण व्यवस्था के बारे अध्ययन करने से चलता है । आज जिस व्यवथा को दुनिया के हर देश ने अपनाया है, और जिस व्यवस्था के अंतर्गत भारत पर सरकार शासन करती है । वही व्यवस्था 3200 ईसा पूर्व से पहले भी भारत में थी । पुरे देश का एक ही शासन कर्ता हुआ करता था । जिसको गणाधिपति कहा जाता था । गणाधिपति के नीचे गणाधीश हुआ करता था, और गणाधीश के नीचे विभिन्न गण नायक हुआ करते थे जो स्थानीय क्षेत्रों में शासन व्यवस्था देखते या संभालते थे । यह व्यवस्था बिलकुल वैसी थी । जैसे आज भारत का राष्ट्रपति, फिर प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री के नीचे अलग अलग राज्यों के मुख्मंत्री । कालांतर में भारत पर रुद्रों का शासन हुआ करता था । भारत में कुल 11 रूद्र हुए जिन्होंने भारत पर ईसा से 3200 साल के बाद तक शासन किया। सभी रुद्रों को भारत का सम्राट कहा जाता था और आज भी आप लोग जानते ही होंगे कि शिव से लेकर शंकर तक सभी रुद्रों को देवाधिदेव, नागराज, असुरपति जैसे शब्दों से बिभुषित किया जाता है । रुद्र भारत के मूल निवासी लोगों जिनको उस समय नागवंशी कहा जाता था पर शासन करते थे । इस बात का पता "वेदों और पुराणों" में वर्णित रुद्रों के बारे अध्ययन करने से चलता है । आज भी ग्यारह के ग्यारह रुद्रों को नाग से विभूषित दिखाया जाता है । नागवंशियों में कोई भी जाति प्रथा प्रचलित नहीं थी । इसी बात से पता चलता है कि भारत के लोग कितने सभ्य, सुशिक्षित और सुशासित थे । इसी काल को भारत का "स्वर्ण युग" कहा जाता था और भारत को विश्व गुरु होने का गौरव प्राप्त था ।
6.असुर कौन थे? ये भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है । क्योकि भारत के बहुत से धार्मिक गर्न्थो में असुरों का वर्णन आता है । लेकिन ये बात आज तक सिद्ध नहीं हो पाई कि असुर थे भी या नहीं । अगर थे, तो कहा गए? और आज वो असुर कहा है? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमे वेदों और पुराणों का अध्ययन करना पड़ेगा । आज भी हम खास तौर पर "शिव महापुराण" का अध्ययन करे तो असुरों के बारे सब कुछ स्पष्ट हो जाता है । असुराधिपति भी रुद्रों को ही कहा गया है । शिव से लेकर शंकर तक सभी रुद्रों को असुराधिपति कहा जाता है । आज भी रुद्रों को असुराधिपति होने के कारण अछूत या शुद्र देवता कहा जाता है । कोई भी ब्राह्मण रूद्र पूजा के बाद स्नान करने के बाद ही मंदिरों में प्रवेश करते है या गंगा जल इत्यादि अपने शरीर पर छिड़क कर दुसरे देवताओं की पूजा करते है । नागवंशी लोग सांवले या काले रंग के हुआ करते थे और नागवंशी सुरापान नहीं करते थे । आज भी आपको जगह जगह वेदों और पुराणों में लिखा हुआ मिल जायेगा कि नाग दूध पीते है कोई भी नाग "सूरा" अर्थात शराब का सेवन नहीं करते थे । अर्थात भारत के मूल निवासी कालांतर में असुर कहलाये और आज उन्ही नागवंशियों को शुद्र कहा जाता है ।
7.युरेशियनों ने भारत कूटनीति द्वारा भारत की सता हासिल की और पहले तीन महत्वपूर्ण नियम बनाये जिनके करना आज भी ब्राहमण पुरे समाज में सर्वश्रेठ माने जाते है:
8.वर्ण-व्यवस्था: युरेशियनों ने सबसे पहले वर्ण-व्यवस्था को स्थापित किया अर्थात यूरेशियन साफ़ रंग के थे तो उन्हों ने अपने आपको श्रेष्ठ पद दिया । यूरेशियन उस समय देवता कहलाये और आज ब्राह्मण कहलाते है । भारत के लोग देखने में सांवले और काले थे तो मूल निवासियों को नीच कोटि का बना दिया गया । 400 ईसा पूर्व या उस से पहले भारत के मूल निवासियों को स्थान और रंग के आधार पर 3000 जातियों में बांटा गया । आधार बनाया गया वेदों और पुराणों को, जिनको यूरेशियन ने संस्कृत में लिखा । भारत के मूल निवासियों को संस्कृत का ज्ञान नहीं था तो उस समय जो भी यूरेशियन बोल देते थे उसी को भारत के मूल निवासियों ने सच मान लिया । जिस भी मूल निवासी राजा ने जाति प्रथा का विरोध किया उसको युरेशियनों ने छल कपट या प्रत्यक्ष युद्धों में समाप्त कर दिया । जिस का वर्णन सभी वेदों और पुराणों में सुर-असुर संग्रामों के रूप में मिलाता है । लाखों मूल निवासियों को मौत के घाट उतारा गया । कालांतर में उसी जाति प्रथा को 3000 जातियों को 7500 उप जातियों में बांटा गया ।
9.शिक्षा-व्यवस्था: इस व्यवस्था के अंतर्गत युरेशियनों ने भारत के लोगों के पढ़ने लिखने पर पूर्ण पाबन्दी लगा दी । कोई भी भारत का मूल-निवासी पढ़ लिख नहीं सकता था । सिर्फ यूरेशियन ही पढ़ लिख सकते थे । भारत के लोग पढ़ लिख ना पाए इस के लिए कठोर नियन बनाये गए । मनु-स्मृति का अध्ययन किया जाये तो यह बात सामने आती है । कोई भी भारत का मूल निवासी अगर लिखने का कार्य करता था तो उसके हाथ कट देने का नियम था । अगर कोई मूल-निवासी वेदों को सुन ले तो उसके कानों में गरम शीशा या तेल से भर देने का नियम था । इस प्रकार भारत के लोगों को पढने लिखने से वंचित कर के युरेशियनों ने वेदों और पुराणों में अपने हित के लिए मनचाहे बदलाव किये । ये व्यवस्था पहली इसवी से 1947 तक चली । जब 1947 में देश आज़ाद हुआ तो डॉ भीमा राव अम्बेडकर के प्रयासों से भारत के मूल-निवासियों को पढ़ने लिखने का अधिकार मिला । आज भी ब्राह्मण वेदों और पुराणों में नए नए अध्याय जोड़ते जा रहे है और भारत के मूल निवासियों को कमजोर बनाने का प्रयास सतत जारी है ।
10.धर्म व्यवस्था: धर्म व्यवस्था ही भारत के मूल निवासियों के पतन के सबसे बड़ा कारण था । धर्म व्यवस्था कर के युरेशियनों ने अपने आपको भगवान् तक घोषित के दिया । धर्म व्यवस्था कर के युरेशियनों ने खुद को देवता बना कर हर तरह से समाज में श्रेष्ठ बना दिया । धर्म व्यवस्था में "दान का अधिकार" बना कर युरेशियनों ने अपने आपको काम करने से मुक्त कर दिया और अपने लिए मुफ्त में ऐश करने प्रबंध भी इसी दान के अधिकार से कर लिया । धर्म व्यवस्था के नियम भी बहुत कठोर थे । जैसे कोई भी भारत का मूल निवासी मंदिरों, राज महलों और युरेशियनों के आवास में नहीं जा सकता था । अगर कोई मूल निवासी ऐसा करता था तो उसको मार दिया जाता था । आज भी यूरेशियन पुरे भारत में अपने घरों में मूल निवासियों को आने नहीं देते । आज भी दान व्यवस्था के चलते भारत के मंदिरों में कम से कम 10 ट्रिलियन डॉलर की संम्पति युरेशियनों के अधिकार में है । जो मुख्य तौर पर भारत में गरीबी और ख़राब आर्थिक हालातों के लिए जिमेवार है । संम्पति के अधिकार हासिल कर के तो युरेशियनों ने मानवता की सारी सीमा ही तोड़ दी । यहाँ तक भारत में रूद्र शासन से समय से पूजित नारी को भी संम्पति में शामिल कर लिया । नारी को संम्पति में शामिल करने से भी भारत के मूल निवासियों का पतन हुआ । संम्पति के अधिकार भी बहुत कठोर थे । जैसे यूरेशियन सभी प्रकार की संम्पतियों का मालिक था । भारत के मूल निवासियों को संम्पति रखने का अधिकार नहीं था । यूरेशियन भारत की किसी भी राजा की संम्पति को भी ले सकता था । यूरेशियन किसी भी राजा की उसके राज्य से बाहर निकल सकता था । यूरेशियन किसी की भी स्त्री की ले सकता था । यहाँ तक युरेशियनों को राजा की स्त्री के साथ संम्भोग की पूर्ण आज़ादी थी । अगर किसी राजा के सन्तान नहीं होती थी तो यूरेशियन राजा की स्त्री के साथ संम्भोग कर बच्चे पैदा करता था । जिसे कालांतर में "नियोग" पद्धति कहा जाता था । इस प्रकार राजा की होने वाली संतान भी यूरेशियन होती थी । शुद्र व्यवस्था के द्वारा तो युरेशियनों ने सारे देश के मूल निवासियों को अत्यंत गिरा हुआ बना दिया । हज़ारों कठोर नियम बनाये गए । मूल निवासियों का हर प्रकार से पतन हो गया । मूल निवासी किसी भी प्रकार से ऊपर उठने योग्य ही नहीं रह गए । मूल निवासियों पर शासन करने के लिए और बाकायदा मनु-स्मृति जैसे बृहद ग्रन्थ की रचना की गई । आज भी लोग 2002 से पहले प्रकाशित के मनु-स्मृति की प्रतियों को पढेंगे तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी ।

ये कुछ महत्वपूर्ण बातें थी जिन पर भारत का इतिहास लिखने से पहले प्रकाश डालना जरुरी था । यही कुछ बातें है जिनका ज्ञान भारत के मूल निवासियों को होना बहुत जरुरी है । अगर भारत के मूल निवासी युरेशियनों के बनाये हुए नियमों को मानने से मना कर दे । युरेशियनों की बनायीं हुई वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, संम्पति व्यवस्था, वेद व्यवस्था, धर्म व्यवस्था को ना माने । सभी मूल निवासी ब्राह्मणों के बनाये हुए जातिवाद के बन्धनों से स्वयं को मुक्त करे और सभी मूल निवासी नागवंशी समाज की फिर से स्थापना करे । सभी मूल निवासी मिलजुल कर देश का असली इतिहास अपने लोगों को बताये । सभी नागवंशी अपनी क़ाबलियत को समझे । तभी भारत के मूल निवासी पुन: उसी विश्व गुरु के पद को प्राप्त कर सकते है और भारत में फिर से स्वर्ण युग की स्थापना कर सकते है । जल्दी ही भारत का विस्तृत इतिहास अलग अलग अध्यायों के रूप में प्रस्तुत किया जायेगा । हमारी टीम रात दिन भारत के इतिहास पर हुए हजारों शोधों और पुस्तकों का अध्ययन कर रही है, और भारत का सच्चा इतिहास लिखा जा रहा है ।

आप सभी से विनम्र प्रार्थना है कि भारत का इतिहास सभी लोगों तक पहुंचाए।

मार ही डाला मनुवादियो ने एक अम्बेडकरवादी

अच्छे दिन ,,,,
बांमनो के (bJP के) राम राज्य मे बहुजनो के अच्छे दिन ,,,,,
आखिरीकार मार ही डाला मनुवादियो ने एक अम्बेडकर वादी को ,,,,,,
"दो सप्‍ताह पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय के हॉस्‍टल से निकाले गए पांच दलित PHD  छात्र (शोधार्थियों ) में से एक रोहित वेमुला ने रविवार को खुदकुशी कर ली। उसका शव कैंपस के एक हॉस्‍टल में पंखे से लटका मिला। वह पिछले कई दिनों से अपने निष्कासन के खिलाफ खुले में सो रहा था। "
साइबराबाद पुलिस आयुक्त सीवी आनंद ने बताया, करीब 26 वर्षीय रोहित वेमुला का शव हॉस्‍टल के कमरे में फांसी से लटका मिला। पिछले साल अगस्त में हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू) द्वारा निलंबित किए गए पांच शोधकर्ताओं में से वह एक था।
अंबेडकर स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े इन दलित छात्रों को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक नेता पर कथित हमले के मामले में हैदराबाद यूनिवर्सिटी ने छात्रावास से निष्‍कासित कर दिया गया था।यहां तक कि विश्‍वविद्याालय के हॉस्‍टल, मैस, प्रशासनिक भवन और कॉमन एरिया में भी इनके घुसने पर रोक लगा दी गई थी। दलित छात्रों के इस 'बहिष्‍कार' के खिलाफ कई छात्र संगठन विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे और इस मुद्दे पर विश्‍वविद्यालय में काफी दिनों से विवाद चल रहा था। रोहित समेत पांचों छात्र अपने निष्‍कासन के खिलाफ कई दिनों से कैंपस में खुले आसमान के नीचे सो रहे थे। 
मिली जानकारी के अनुसार, रविवार को एक तरफ जहां दलित छात्रों के समर्थन में कई छात्र संगठनों का धरना चल रहा था, रोहित चुपके से यूनिवर्सिटी के एनआरएस हॉस्‍टल गए और खुद को एक कमरे में बंद कर खुदकुशी कर ली। बताया जाता है कि इससे पहले रोहित की विरोधी गुट के छात्रों के साथ तीखी बहस हुई थी। पुलिस के मुताबिक, रोहित के पास से पांच पन्‍नों का एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है। 
रोहित की खुदकुशी के लिए अंबेडकर स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन ने विश्‍वविद्यालय प्रशासन के रवैये को जिम्‍मेदार ठहराया है। इस बीच, कैंपस में तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए सुरक्षा बढ़ा दी गई। रोहित की मौत से आक्रोशित कई छात्र संगठनों ने उसके शव को लेकर विरोध-प्रदर्शन किया और भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री बंगारू दत्‍तात्रेय के खिलाफ एससी-एसटी उत्‍पीड़न का मामला दर्ज करने की मांग की। अंबेडकर स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन का आरोप है कि बंगारू दत्‍तात्रेय ने ही इन दलित शोधार्थियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखा था।    
छात्र संगठनों ने किया बंद का आह्वान 
दलित छात्र की खुदकुशी के खिलाफ एसएफआई, डीएसयू, एआईएसएफ समेत कई छात्र संगठनों ने राज्‍य व्‍यापी बंद का आह्वान किया है। इस मामले में केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता का नाम आने से दलित छात्र की ख़ुदकुशी का मुद्दा और ज्यादा गरमा सकता है।

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हम सब गुनाहगार हैं.
रोहित वेमुला की हत्या बेशक आधुनिक युग के द्रोणाचार्यों यानी प्रोफेसरों ने की है, लेकिन उसके खून के छींटे हम सबके बदन पर हैं.
हम तो जानते थे कि RSS ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के पांच छात्रों का सामाजिक बहिष्कार सुनिश्चित कराया है. हॉस्टल से निकाले गए ये बच्चे खुले में रातें बिता रहे थे. उन पर तमाम तरह की पाबंदियां लगी थी. उनका करियर तबाह हो रहा था. परिवार से कितने तरह के दबाव आ रहे होंगे.
हम और आप, जी हां आप भी, और हम भी, यह सब बातें जान रहे थे. पर हम रोहित को कहां बचा पाए?
हम तो इंसानियत और न्याय के पक्ष में थे.... फिर हम क्यों हार गए रोहित?
एकलव्य यह देश शर्मिंदा है
द्रोणाचार्य अब तक जिंदा है!
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हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के होनहार दलित छात्र Rohith Vemula की आत्महत्या ने हम सबको हिलाकर रख दिया है। देश भर के विश्वविद्यालयों में आज भी मनु के औलाद भरे पड़े हैं। अब समय आ गया है कि इनसे निपटने का नया तरीका ढूँढा जाए। इनको इन्हीं की भाषा में समझाने का समय अब आ गया है, वर्ना निर्दोष दलित-आदिवासी छात्र ऐसे ही बेमौत मरते रहेंगे और मनु के औलाद फलते-फूलते रहेंगे। रोहिथ की कुर्बानी को हम व्यर्थ नहीं जाने देंगे। बाबासाहेब, आज हम शर्मिंदा हैं ! देश में अभी मनुवाद-जातिवाद ज़िंदा है। अब आर-पार की लड़ाई लड़नी होगी। आपसी मतभेद भुलाकर सारे वंचित एक हों- इसकी जरूरत आज सबसे ज्यादा है, तभी रोहिथ को हम सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएँगे।

जयभीम जयभारत ॥
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आरक्षण की जड़ भारतीय इतिहास में 5 हजार वर्ष पूर्व तक जाती है

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सादर प्रणाम 
साथियों ,
आजकल कुछ कथाकथित विद्वान एवं मिट्टी के शेर चारों तरफ़ चिल्लाते /चीखते घूम रहे हैं कि आरक्षण समाप्त होना चाहिये इससे प्रतिभा का हनन हो रहा है ,आरक्षण का आधार जाति नहीं आर्थिक होना चाहिये ?इस आरक्षण रूपी जंजीर के बाँधने से गधे धोड़ों से आगे रेस में निकल रहे हैं ,जो बहुत बड़ा ही अन्याय है !-
तो मित्रों प्रश्न बहुत बड़ा है इसलिये इसके प्रत्येक खंड पर विचार किया जाना चाहिये !-:
मेरा इस विषय में कहना है कि आरक्षण कोई महज सात दशक पुराना नहीं ,जिसकी शुरुआत 1947के बाद मानी जाती है !यदि कुछ लोग ऐसा मानते हैं तो निसंदेह वह बहुत बड़े बेवक़ूफ़ और अज्ञान हैं !इसलिये इस विषय पर बोलने से पहले उन्हे ठीक से भारत के इतिहास का अध्ययन करलेना चाहिये !
               आरक्षण बहुत पुराना है जिसकी जड़ भारतीय इतिहास में 5 हजार वर्ष पूर्व तक जाती हैं ,जिसे "मनु "जैसे पाखंडी और मनुष्यता के दुश्मनों ने लागू क्या !ऐसे धूर्त और मक्कारो ने भारतीय जनमानस को पहले वर्गों में बाँटा तत्पश्चात आरक्षण का प्रावधान किया !ब्राह्ममण के लिये 100%शिक्षा में आरक्षण ,क्षत्रियों के लिये युद्ध शिक्षा व शासन में 100%आरक्षण ,वैश्य के लिये व्यापार में शतप्रतिशत आरक्षण और चौथे एवं अंतिम वर्ग को इन तीनो वर्गों की सेवा यानी गुलामी का आरक्षण !
दोस्तो यह आरक्षण सन् 1947ई .तक यथावत एवं उसके बाद थोड़े से बदलाव के साथ अनवरत रुप से आज भी जारी है !लेकिन मजे की बात ये कि इन 5हजार वर्षोके दौरान इस खुली गुंडा-गर्दी के खिलाफ़ किसी भी विद्वान ने आवाज़ उठाने की हिमाकत नहीं की ?जिस चौथे वर्ग ने इन तीनो आरक्षित वर्गों की पाँच हजार वर्ष तक गुलामी की ,इनके मरे हुए पशुओं को ढोया ,इनके कपड़े साफ़ किये ,इनके खेतों की जुताई की ,इनके लिये शीतल जल हेतु मिट्टी के घड़े तैय्यार किये ,इनके विश्राम हेतु चारपाई तैय्यार की ,यहाँ तक कि इनके मलमूत्रों को सिर पर ढोया ! तब इस अत्याचार के खिलाफ़ किसी समाज सुधार का ध्यान क्यों नहीं गया ?और आज स्वतंत्र भारत में उनके जीवन में सुधार एवं उनन्यन व समृद्धि हेतु संविधान में कुछ थोड़े बहुत प्रावधान क्या किये इनके लिये आफत आगई ?ये विरोध पर उतारू हो गये ? तुमको शर्म भी नहीं आती ?अरे बईमानों ये आरक्षण की अवधारणा हमारी नहीं ,अपितु तुम्हारे कथाकथित मनीषियों की थी जो किसी भी कीमत पर इसे बनाये रखना चाहते हैं ? तुम  गधे और घोड़े की बात करते हो ?जंजीर बाँधने की बात करते हो ?तो सुनो ये जंजीर बाँधने का काम भी ,तुम्हारी षणयंत्रकरी योजनाओं का ही हिस्सा है ,अन्यथा आरक्षण का पुजारी महा भारत का द्रोणाचार्य एकलब्य जैसे वीर के हाथ का अँगूठा छल से काट कर ,एक घोड़े के पैरों में जंजीर बाँध कर ,उस अर्जुन जैसे गधे को आगे नहीं करता ? ऐसी प्रपंच युक्त एवं षणयंत्रकरी योजनाओं से इतिहास भरा पड़ा है !और बात करते हो जंजीरों की ,बात करते हो अन्याय की तुन्हे लज्जा नहीं आती ?"थू " तुम्हारी इस घिनौनी एवं घृणित दकियानूसी सोच पर !ये छल और प्रपंच तो तुम और तुम्हारे देवता ही कर सकते हैं !जो रात में ब्रह्म मुहूर्त के दौरान जब किसी स्त्री का पति स्नान के लिये बाहर जाता है ,तो इनके देवताअँधेरे का लाभ उठाकर उस स्त्री के छद्द्म पति के रुप में उसके साथ धोखा कर जाते हैं ,उसके साथ सम्भोग कर जाते हैं ,और उसके पति के आने से पूर्व नदारद भी हो जाते हैं ,जब तुम्हारे देवताओं का ये हाल रहा है तो तुम जैसे साधारण लोगों की क्या हालात होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है ?अरे जितना नीच काम आपके देवता करते थे उतना तो गुण्डे और बदमाश भी नहीं कर सकते करते ?जिन्हे अपनी योग्यता का सही से आंकलन नहीं वो दूसरों को गधा बताने का प्रयास करते हैं ?
यही नहीं धरम के नाम पर आज भी ब्राह्मणों का 100%आरक्षण है ,मंडलेश्वर ,महा मंडलेश्वर ,पीठाधीस्वर एवं शंकराचार्य जैसे धार्मिक पदों पर सिर्फ़ और सिर्फ़ ब्राह्मण ही विराजित होते हैं ,पर ये आरक्षण किसी को दिखाई नहीं देता क्यों ?क्या चमार ,धोबी ,पासी ,वर्मा ,यादव आदि इसके योग्य नहीं या फ़िर इन जातियों का काम सिर्फ़ ब्राह्मणों की जूतियाँ उठाना मात्र् है ?
आज भारत के मंदिरों से 80 हजार करोड़ सालाना होने वाली आय को आरक्षित ब्राह्मण ही डकार जाता है ये आरक्षण किसी को दिखाई नहीं देता ?
यदि बात की जाती है जातिगत आरक्षण की तो ये जातियां बनाई किसने उसने जो आज भी इसके नाम पर पग-पग पर अपमानित होता है ?या उसने जो इसके नाम पर अपनी झूठी श्रेष्ठता केआधार पर हजारों सालों से मुफ्त की रोटियाँ तोडता आया है ?ए आरक्षण कोई खैरात में नहीं मिला है उस खून  पसीने की कमाई का एक छोटा सा हिस्सा है जिसे तुम जैसे तुच्छ सोच वाले इंसानों ने दबा कर रखा है जिसकी दम पर आज गधे और घोड़े की बात करते हो ?
आज तमाम आंकड़े बताते हैं कि भारत में महज 5%लोगों के पास उसकी कुल सम्पत्ति का 95%हिस्सा है और 95%लोगों के पास मातृ 5%!ए 5%वही लोग हैं जो आरक्षण का विरोध करते है?उसे समाप्त करने की वकालत करते हैं ?आरक्षण को समाप्त करने से पहले उस 95%सम्पदा का बँटवारा होना चाहिये जिसे 5%लोग दबाये बैठे हैं ?आरक्षण को समाप्त करने से पहले "आर्थिक जातिगत "जनगणना होनी चाहिये ?आरक्षण समाप्त करने से पहले ये बताना होगा कि विदेशों में जमा काला धन किस जाती के लोगों का है ?आरक्षण समाप्त करने से पहले देश में घोटले बाज नेताओं की जाती का खुलासा करना होगा जिससे पता तो चले कि आरक्षण का विरोध करने वाले देश का कितना भला चाहते हैं ?आरक्षण समाप्त करने से पहले नाम के पीछे से सर नेम हटाना पड़ेगा ?और आरक्षण समाप्त करने से पहले उच्च जातियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने होंगे ,जातिवाद को जड़से समाप्त करना होगा ?
आरक्षण विरोधी अपने आप को ज्यादा काबिल समझते हैं तो जब इस देश को हुण ,कुषाण ,मंगोल ,यूनान ,तुर्क ,मुगल और अंगेजों ने बारी -बारी से गुलाम बनाया ,तब इनकी काबिलियत क्या घास चरने गयी थी ?
मैं दावे के साथ कहता हूँ कि यदि आरक्षण विरोधियों की सुविधायें आरक्षण समर्थको के बराबर करदी जायें तो घोड़े के बात तो छोड़ो इनकी औकात सूअर जितनी भी नहीं रहेगी ?
आरक्षण समाप्त करने से पहले हर जगह शिक्षा ,स्वास्थ्य ,सड़क ,रेल,बेंक एवं विधुत का राष्ट्रीयकरण करना होगा ?हर जगह से निजीकरण समाप्त करना होगा ?आरक्षण समाप्त करने से पहले जल ज़मीन और जायदाद का बँटवारा भारत की जनता में समान रुप से करना होगा ?
यदि इससे पहले आरक्षण समाप्त हुआ तो सारा भारत निसंदेह ग्रह युद्ध की आग में दहक उठेगा !और तब उस युद्द को नियंत्रित करने के लिये भारत को नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ को कर्फ्यू लगाना पड़ेगा ,जिसकी जिम्बेदार स्वम भारत सरकार होंगी ?
परंतु फिलहाल ऐसा हम होने नहीं देंगे ,क्योंकि हमें अपने देश से प्रेम है !!
धन्यवाद !
दीपक कुमार (एडवोकेट)
आज़मगढ़।।

कृपया इस मेसेज को अधिक से अधिक फैलायें ताकि आरक्षण का विरोध करने वालों की समझ में आये कि आरक्षण का लाभ कौन ले रहा है !और उनके प्रश्न का सही जवाब भी उन्हे मिल सके !!

मुलायम का परिवार बना देश का सबसे बड़ा सियासी कुनबा

मुलायम का परिवार बना देश का सबसे बड़ा सियासी कुनबा

लखनऊ-
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के परिवार के 2 और सदस्यों ने राजनीति में कदम रखा है। 20 सदस्यों के साथ मुलायम का कुटुंब अब किसी भी पार्टी में सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के होने का दावा कर सकता है। जिला पंचायत चुनाव में सपा सुप्रीमो परिवार के दो सदस्यों ने राजनीतिक एंट्री की है। संध्या यादव को मैनपुरी से जबकि अंशुल यादव को इटावा से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुना गया है। बता दें कि संध्या यादव सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन हैं, जबकि अंशुल यादव, राजपाल और प्रेमलता यादव के बड़े बेटे हैं।


मुलायम सिंह यादव
मुलायम समाजवादी पार्टी के अगुआ और पार्टी संस्थापक हैं। उन्होंने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी का गठन किया था। अपने राजनीतिक करियर में वह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।

शिवपाल सिंह यादव
शिवपाल 1988 में पहली बार इटावा के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए। 1996 में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपनी जसवंतनगर की सीट छोटे भाई शिवपाल के लिए खाली कर दी थी। इसके बाद से ही शिवपाल का जसवंतनगर की विधानसभा सीट पर का कब्जा बरकरार है।

रामगोपाल सिंह यादव
मुलायम सिंह ने 2004 में संभल सीट रामगोपाल के लिए छोड़ दी थी और खुद मैनपुरी से सांसद का चुनाव लड़ा था। रामगोपाल ने भी इस सीट से जीत हासिल करके संसद पहुंचे थे। अभी वह राज्यसभा सांसद हैं।

अखिलेश यादव
मुलायम ने1999 की लोकसभा चुनाव संभल और कन्नौज दोनों सीटों लड़ा और जीता। इसके बाद सीएम अखिलेश के लिए कन्नौज की सीट खाली कर दी। अखिलेश ने कन्नौज की सीट से चुनाव लड़ा और जीता। इसी के साथ उनकी भी राजनीति में एंट्री हो चुकी थी। इसके बाद वह 2012 में मुख्यमंत्री बने।

धर्मेंद्र यादव
2004 में सीएम रहते हुए मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से चुनाव लड़ा और जीता। बाद में यह सीट अपने भतीजे धर्मेंद्र यादव के लिए खाली कर दी। उस वक्त उन्होंने 14वीं लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकार्ड बनाया।

डिंपल यादव
अखिलेश यादव ने 2009 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज और फिरोजाबाद से जीतकर फिरोजाबाद की सीट की अपनी पत्नी डिंपल यादव के लिए छोड़ दी, लेकिन इस बार पासा उलट पड़ गया और डिंपल को कांग्रेस उम्मीदवार राजबब्बर ने हारा दिया। पहली बार में इस खेल में मात खाने बावजूद अखिलेश का भरोसा इस फार्मूले से नहीं टूटा। 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने अपनी कन्नौज लोकसभा सीट एक बार फिर डिंपल के लिए खाली की। इसबार सूबे में सपा की लहर का आलम ये था कि किसी भी पार्टी की डिंपल के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की हिम्मत नहीं हुई और वो निर्विरोध जीती।

तेज प्रताप यादव
तेजप्रताप यादव सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पोते हैं। वे मैनपुरी से सांसद हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी और आजमगढ़ दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था। इसके बाद उन्होंने अपनी पारंपरिक सीट मैनपुरी खाली कर दी थी। इस सीट पर उन्होंने अपने पोते तेज प्रताप यादव को चुनाव लड़ाया। तेजप्रताप ने भी अपने दादा को निराश नहीं किया और बंपर वोटों से चुनाव में जीत हासिल की। साथ ही इस राजनीति में धमाकेदार एंट्री की।

अक्षय यादव
अक्षय यादव मौजूदा समय में फिरोजाबाद से सपा सांसद हैं। अक्षय यादव भी पहली बार चुनाव जीतकर सक्रिया राजनीति में उतरे हैं। यह सीट यादव परिवार की पारंपरिक संसदीय सीट रही है। जब अखिलेश यादव ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद और कन्नौज से चुनाव लड़ा था, उस समय फिरोजाबाद के चुनाव प्रबंधन की कमान अक्षय यादव ने संभाली थी। इसके बाद अखिलेश ने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी और उपचुनाव में पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया। भाभी डिंपल का चुनाव प्रबंधन भी अक्षय ने संभाला था, लेकिन कांग्रेस नेता राज बब्बर ने डिंपल को हरा दिया था।

प्रेमलता यादव
मुलायम सिंह यादव के भाई राजपाल यादव की पत्नी हैं प्रेमलता यादव। 2005 में वह इटावा की जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गई थीं।

सरला यादव
यूपी के कैबिनेट मिनिस्टर शिवपाल यादव की पत्नी हैं सरला यादव। 2007 में जिला सहकारी बैंक इटावा की राज्य प्रतिनिधि बनाया गया था।

आदित्य यादव
शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव को जसवंत नगर लोकसभा सीट से एरिया इंचार्ज थे। मौजूदा समय में वह यूपीपीसीएफ के चेयरमैन हैं।

अंशुल यादव
राजपाल और प्रेमलता यादव के बड़े बेटे हैं अंशुल यादव। 2016 में इटावा से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए हैं अंशुल यादव।

संध्या यादव
सपा सुप्रीमो की भतीजी और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव ने जिला पंचायत अध्यक्ष के जरिए राजनीतिक एंट्री की है। उन्हें मैनपुरी से जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए निर्विरोध चुना गया है।
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आरक्षण कौन से वर्ष की जनगणना पर आधारित है

जय भीम 🙏 जय मूलनिवासी

✒ मित्रो आश्चर्य किन्तु सत्य 
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मैंने आज एक छोटा सा सवाल देश के आरक्षित वर्ग के छात्र, प्रबुद्ध वर्ग के समक्ष रखा कि आज देश में SC ST का आरक्षण कौन से वर्ष की जनगणना पर आधारित है। मेरा मकसद किसी की परीक्षा लेना नहीं था। उक्त प्रश्न कई ग्रुप में डालने के बाद अव्वल तो लाइक ही मिले। कुछ ने ही जवाब देने की हिम्मत की। मात्र एक भाई चरण सिंह मीणा ने ही इसका सटीक जवाब दिया। घोर आश्चर्य है की दिन रात सोशल मिडिया पर हम सक्रिय रहने के बावजूद अपने मुलभूत अधिकारों और तथ्यों के प्रति अत्यन्त लापरवाह हैं। आप इसे अन्यथा न ले मैं स्वयं भी इसमें ही शामिल हूँ। 

भाइयों आपको आश्चर्य होगा कि आज भी देश के SC ST वर्ग का आरक्षण अंग्रेजों द्वारा 1931 में करवाई गयी पहली जातिगत जनगणना पर ही आधारित है।
अब प्रश्न उठता है की देश 1947 में आजाद भी हो गया और हर 10 साल में जनगणना भी हो रही है तो फिर भी SC ST का आरक्षण 1931 की जनगणना से क्यों तय हो रहा है।
देश के 3% ब्राह्मण वर्ग का हम 90% लोगों पर राज करने का रहस्य बस इसी में छुपा हुआ है। ब्राह्मण वर्ग (गांधी+नेहरू) ने 1931 में ही ये ताड़ लिया था की कालांतर में देश के बहुसंख्यक दलित वर्ग, जो कि संख्या में 90% है,  को यदि ये पता लग गया की वे बहुमत में है। लेकिन हासिल उन्हें मात्र रत्तीभर ही हो रहा है तो वे कुछ ही समय में हमें (बणिया, बामण, ठाकुर) को देश से बाहर निकाल फेंकेंगे। अपने मूल देश यूरेशिया ले जा पटकेंगे।

इसलिए न केवल इन ब्राह्मणों के वर्ग ने अम्बेडकर जी का विरोध ही किया बल्कि अंग्रेजों, जो कि भारत में समतामूलक समाज की स्थापना के लिए लोकल गवर्नेस, आधुनिक शिक्षा, चुनाव प्रणाली, दलितवर्ग को अधिकार दिलाने के लिए आरक्षण व्यवस्था को लागू करने सहित अन्य सामाजिक सुधार लागु कर रहे थे, का तीव्र विरोध किया। और चालाकी से अंग्रेजो को भारत से जल्दी से जल्दी बाहर निकालने के लिये अपनी (ब्राह्मण + बणिया की) आजादी के लिए आंदोलन को तीव्र किया। 

जब 1947 में देश आजाद तो हुआ लेकिन हम आजाद नही हुए ? आजाद हुए सिर्फ ब्राह्मण और उनके पिछलग्गू। यदि हम आजाद हुए होते तो आज भी हमारे साथ छूआछूत न होती और न ही भुखमरी हमारी संगदिल होती, न ही रोजाना हमारे वर्ग की 10-20 महिलाओं को बलात्कार का शिकार होना पड़ता। देश के चौराहों पर रोजाना रोजगार की आस में हमारे मेले नहीं लगते। मरे हुए जानवर उठाने और सर पर मैला ढोने की परम्परा का निर्वाह भी हमें नही करना पड़ता। न ही हमारे जंगल, खेत, खलिहान, नदी, नाले हमसे जबरदस्ती ही छिनते।

1947 की आजादी को हमारे लोग सिर्फ "TRANSFER OF POWER " से ज्यादा कुछ नहीँ मानते। क्योंकि एक शोषक ने दूसरे शोषक वर्ग को सत्ता सौपी। यदि हम आजाद हुए होते तो हमें भी गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार मिलता जो आज तक नही मिला है।
साथियों अब सवाल वहीं कि
आजादी के बाद जातिगत जनगणना क्यों नही की गयी? कौन इसका विरोधी है और क्यों??

मित्रों जैसे ही चालाक ब्राह्मणों के हाथों में देश की बागडोर आयी उन्होंने सबसे पहले देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, के हर महत्वपूर्ण हिस्से को अपनी जकड़ में ले लिया। अपनी जमात के अयोग्य लोगों को भी महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया। चूँकि उस समय हमारे गिनती के लोग ही पढे लिखे थे। इसलिए इनकी तरफ कुछ टुकड़े फेंक दिए गए।
तत्पश्चात प्रति 10 साल की जनगणना में ये हमारी (SC ST) गणना तो करते आ रहे हैं। मगर आंकड़े उजागर नही करते। कारण साफ है। हमें हमारी ताकत का अंदाजा न होने देना। ताकि हम हमारे संवैधानिक आरक्षण को हमारी अनवरत बढ़ती आबादी के अनुपात में बढ़ाने की मांग न कर बैठे और उनका देश पर राज अनवरत रूप से बना रहे।
देश की चालाक मनूवादी न्यायपालिका जिस पर देश की 1 अरब जनसंख्या का विश्वास टिका है उसने भी देश की जनता से गद्दारी ही की है। वो 1952 से ही हमारे आरक्षण को खत्म करने के लिए वाद तो लेती रही लेकिन उसके सामने जब कभी भी हमने आरक्षण को बढ़ाने के लिए हमारे लेटेस्ट आंकड़े उपलब्ध कराने के लिए सरकार को निर्देश देने के लिए आग्रह किया गया वे बेशर्मी से अपनी लुटेरी जमात BBT (ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर) का साथ देते रहे। हमारे हकों को लूटने में सहायक बनते रहे और आज भी बने हुए हैं।

1991 में देश में मण्डल आयोग का धमाका। पिछडे वर्ग के नेतृत्व का उदय।
ब्राह्मणों का राजनैतिक पराभव का प्रारम्भ।
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मित्रों 1991 में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने ब्राह्मणों से परेशान होकर बाबा साहब अम्बेडकर के द्वारा पिछड़े वर्ग के विकास के लिए किये गए प्रावधान को असली जामा पहना कर श्री बी.पी.मण्डल द्वारा तैयार रिपोर्ट को देश में लागु कर दिया। उस समय OBC की आबादी का खुलासा हुआ की ये 52% है। लेकिन आरक्षण स्वीकार किया मात्र 27% । लेकिन आज तक दिया गया 4% से भी कम।

अब आप सोचो कि 52+23 = 75% आबादी OBC+SC+ST की और इसमें 15% आबादी मुस्लिम वर्ग को जोड़ ले तो देश की कुल आबादी 52+23+15=90% किसकी है। SC ST OBC MINORITY की। तो फिर सुप्रीमकोर्ट ने आरक्षण को 50+50% में कैसे बाँट दिया। कहाँ से लाये ब्राह्मणी जज और वकील जनरल की 50% आबादी। हम आज भी जानना चाहते हैं कि देश के किस गांव कस्बे और शहर में है इनकी 50% आबादी। कोई बताये तो सही......

इस पोस्ट का सार
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बस यही वो गणित है जो ब्राह्मण जानबूझकर देश में हमें बाँटने के लिए जातिवाद तो बनाये रखना चाहते हैं। मगर हमारी आबादी के अनुसार हिस्सेदारी नही देना चाहते। इसी कारण से आज भी हमारा आरक्षण आजादी से पूर्व और 84 साल पहले 1931 में की गयी पहली जतिगत जनगणना पर ही आधारित है।
आजाद भारत की पहली 2011 में की गयी आधी अधूरी आधी आबादी की आर्थिक जातिगत जनगणना के आंकड़े अभी भी उजागर क्यों नही किये जा रहे ?

दोस्तों ज्यों ज्यों देश के दलित, आदिवासी, पिछड़ों में चेतना आ रही है। ब्राह्मण वर्ग की परेशानी भी बढ़ रही है। 1991 के मण्डल आंदोलन के बाद से ही देश में ब्राह्मणों का निर्बाध राजनैतिक वर्चस्व टूट गया है। हम लोगों को थोडा ही सही वोट का महत्व समझ में आने लगा है। हमारे मुखर होने से बिहार, UP, MP, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात आदि कई राज्यों से ब्राह्मण वर्ग का राजनैतिक वर्चस्व् कमजोर हो गया है। जिसके कारण 2011 में हमारे (पिछड़े वर्ग) के सहयोग से केंद्र में टिकी मनमोहन सरकार को हमारे लोगों के दबाव के कारण 2011 की जनसंख्या को जातिगत जनगणना आधारित मानना पड़ा। लेकिन दुर्भाग्य से वर्ष 2013 में केंद्र में ब्राह्मण पोषित और हितैषी सरकार के मेजोरिटी में आने से ये आंकड़े आज तक उजागर नही किये जा रहे क्योंकि इन आंकड़ो से ब्राह्मण वर्ग के पैरों से जमीं सरक चुकी है। उन्हें पता लग चूका है कि स्वर्ण वर्ग की कुल आबादी 10% से भी कम रह गयी है। इसलिये वे इन आंकडों को दबाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। कभी गाय के नाम पर तो कभी आरक्षण उन्माद फैलाकर,  धार्मिक तनाव फैलाकर दलितों पर अत्याचार बढ़ाकर इस विषय को दफन करना चाह रहे हैं। संसद का पिछला सत्र भी कांग्रेस और बीजेपी के ब्राह्मणों ने आपसी मिली भगत से हो हुल्लड़ में खत्म करवा दिया। क्योंकि मायावती और लालू यादव इस जनगणना पर सरकार को नंगा करने की ठान चुके थे। लेकिन हमारी गुलामी की बेड़िया तोड़ने के लिए हमें इन आंकडों को हर हल में उजागर करवाना है।

 निष्कर्ष    निचोड़   अपेक्षा

मित्रों यह पोस्ट बहुत ही सरल शब्दों में कालक्रम को जोड़ते हुए मैंने बहुत मेहनत से तैयार की है। लेकिन इसकी सार्थकता तभी पूरी होगी जब आप इसे कम से कम 2 बार पढ़ेंगे और अपने विचारों से अवगत कराएंगे।

#गजानंद जाम
राजस्थान।