Friday, January 29, 2016

जोगेन्द्रनाथ मँडल- एक ऐसा नाम जिनका हम आदिवासी,दलित,पिछड़े लोगों को शुक्रगुजार होना चाहिये

जोगेन्द्रनाथ मँडल- एक ऐसा नाम जिनका हम आदिवासी,दलित,पिछड़े लोगों को शुक्रगुजार होना चाहिये. जिन्होने बाबा साहब डॉ. आंबेडकर जी को संविधान सभा में चुनकर भेजने का काम किया. जब संविधान बनाने वाली कमेटी का चुनाव हो रहा था तो कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि हमने बाबा साहब के लिए दरवाजे तो छोड़ो,खिड़कियां भी बंद कर दी हैं. देखते हैं बाबा साहब कहां से चुनकर संविधान सभा में पहुंचता है. जब देश के किसी भी कोने से बाबा साहब का जीतकर जाना नामुमकिन हो गया तो निराश हताश बाबा साहब को उम्मीद की किरण दिखाई महाप्राण जोगेंद्र नाथ मंडल ने. उन्होंने बाबा साहब को बंगाल से चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीट को खाली कर दिया. और बाबा साहब को बंगाल के जैसोर खुलना से चंडालों ने जिताकर भेजा. लेकिन बाबा साहब के प्रति और देश के दलितों,आदिवासियों,पिछडों के प्रति पहले से दुर्भावना रखने वाली कांग्रेस ने भारत पाक विभाजन के समय जैसोर खुलना क्षेत्र को पाकिस्तान में शामिल करवा दिया. और बंगाल के चंडालों(नमोशूद्रों) के विस्थापन के समय देश के 18 राज्यों के बीहड़ों में फिंकवा दिया. इनको आज तक भारत का नागरिक का दर्जा नहीं दिया. इनके साथ ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि इन्होने बाबा साहब को जिताने का काम किया. आज महाप्राण जोगेंद्रनाथ मंडल जी की जयंती पर उन्हे शत शत नमन.....!!!

Thursday, January 21, 2016

रोहित को याद करने और उनकी स्मृति को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका

रोहित को याद करने और उनकी स्मृति को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि हम इस खालीपन को भरने के लिए एक-दूसरे के करीब बने रहें. कमियों की अनदेखी करके संवाद बनाए रखने की कोशिश करेहैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला ने आत्महत्या करने से पहले जो पत्र लिखाउसमें उन्होंने खालीपन के अहसास को आत्महत्या जैसा कदम उठाने का कारण माना है. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ब्राह्मणवादी करतूतों का विरोध करते हुए खालीपन के अहसास से भर जाना बहुत बड़ी त्रासदी है. यह हमारी सामूहिक त्रासदी है. रोहित जैसे न जाने कितने लोग व्यवस्था के खिलाफ लड़ते हुए इस खालीपन से भर जाते हैं. यह एक ऐसी कड़वी सच्चाई है जिसे हम देखकर भी अनदेखा कर देते हैं. रोहित को याद करने और उनकी स्मृति को सम्मान देने का सबसे अच्छा तरीका यह होगा कि हम इस खालीपन को भरने के लिए एक-दूसरे के करीब बने रहें. कमियों की अनदेखी करके संवाद बनाए रखने कीकोशिश करें.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जैसे संगठनों की जनविरोधी विचारधारा और पूंजीवाद की विचारहीनता ने हमारे देश के माहौल को इतना जहरीला बना दिया है कि बदलाव की छोटी-मोटी कोशिशें अपने छोटे दायरे में ही दम तोड़ देती हैं. अगर प्रगतिशील ताकतों में एकजुटता रहे तो यह छोटा दायरा बड़ा भी हो सकता है.रोहित के लिए अपने संघर्ष को जारी रखना कितना मुश्किल बना दिया गया था इसे समझने के लिए उस मामले को ठीक से समझना होगा जिसने अंत में रोहित की जान ले ली. पिछले साल अगस्त में दिल्ली विश्वविद्यालय में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सदस्यों और अन्य हिंदूवादी संगठनों के सदस्यों ने हिंसा की धमकी देकर 'मुजफ्फरनगर बाकी है' नाम की डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग रोक दी थी. भारतीय लोकतंत्र के लिए यह बहुत शर्मनाक घटना थी. जब देश की राजधानी में ऐसा हो सकता है तो दूसरी जगहों पर क्या-क्या हो सकता है इसकी कल्पना करके ही दिल भय और निराशा से भर जाता है. हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में इस घटना का विरोध हुआ और बाद में इस कैंपस में अखिल भारतीयविद्यार्थी परिषद के एक सदस्य ने रोहित और दूसरे छात्रों पर हिंसा का आरोप लगाया. जांच-पड़ताल के बाद यह आरोप झूठा सिद्ध हुआ. लेकिन इसके बाद कुछ ऐसा हुआ जो हमारे देश की ब्राह्मणवादी व्यवस्था की मानसिक गंदगी और कुटिलता को हमारे सामने लाता है.भयानक गरीबी का सामना करते हुए उच्च शिक्षा तक पहुंचने वाले इन छात्रों ने ऐसा कौन-सा अपराध कर दिया था जिसके लिए उन्हें इतनी बड़ी सजा दी गई? यह अपराध था अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसात्मक और अलोकतांत्रिक गतिविधियों का विरोध करनाभाजपा विधायक रामचंद्र राव ने इस मामले में 'दोषियों' को सजा दिलाने की मुहिम छेड़ दी. बंडारू दत्तात्रेय ने तो मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर 'राष्ट्रविरोधी'छात्रों को सजा दिलवाने की मांग की थी. पुराने वीसी के कार्यकाल में प्रशासन ने मेडिकल रिपोर्ट में मारपीट की बात के गलत साबित होने के बावजूद भाजपा के दबाव में रोहित और चार दूसरे दलित छात्रों को निलंबन की सजा दे दी. बाद में जब विद्यार्थियों ने इस सजा का जोरदार विरोध किया तो यह सजा वापस ले ली गई और नई जांच समिति गठित करने की घोषणा की गई. नए वीसी ने इस समिति को भंग करके नई समिति बनाई जिसने संबंधित पक्षों से पूछताछ किए बिना रोहित और उनके चार साथियों के हॉस्टल, प्रशासनिक भवन समेत मेस, लाइब्रेरी जैसी सार्वजनिक जगहों पर जाने पर पाबंदी लगा दी.आप रोहित के रूप में एक व्यक्ति को एक तरफ रखिए और दूसरी तरफ हमारे शासन तंत्र को. हमें रोहित की आत्महत्या को सही राजनीतिक संदर्भों में देखना होगा. जब आपको इस बात का अहसास हो जाए कि पूरातंत्र आपके खिलाफ खड़ा है तो आप क्या महसूस करेंगे? इस पाबंदी को कैंपसों में जाति प्रथा लागू करने के उदाहरण के तौर पर ही देखा जाना चाहिए. चार दलित छात्रों के पिता खेतिहर मजदूर हैं. एक के माता-पिता गुजर चुके हैं. भयानक गरीबी का सामना करते हुए उच्च शिक्षा तक पहुंचने वाले इन छात्रों ने ऐसा कौन-सा अपराध कर दिया था जिसके लिए उन्हें इतनी बड़ी सजा दी गई? यह अपराध था अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसात्मक और अलोकतांत्रिक गतिविधियों का विरोध करना. हम भारत के शिक्षा संस्थानों के भगवाकरण को रोकने में नाकामयाब हो रहे हैं. रोहित इस सामूहिक नाकामयाबी से उपजी निराशा से उबरने की कोशिश कर रहे थे.उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण लागू होने के बाद अनुसूचित जाति-जनजाति और ओबीसी के विद्यार्थियों की मौजूदगी बढ़ी है. हालांकि जनसंख्या के अनुपात के हिसाब से यह मौजूदगी संतोषप्रद नहीं है, लेकिन असमानता और शोषण को ही जीवन मूल्य मानने वाले लोग इस बदलाव से न केवल चिढ़ते हैं बल्कि इस प्रक्रिया को रोकने के लिए कोई भी कदम उठाने को तैयार रहते हैं. जब हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय कैंपस में पानी की दिक्कत चल रही थी तब इस कैंपस के सौंदर्यीकरण के नाम पर फव्वारे लगाए गए. यही हाल तमाम दूसरे कैंपसों का है. रोहित को सात महीने से फेलोशिप नहीं मिली थी. उन्होंने आत्महत्या से पहले लिखे अपने पत्र में इस पैसे को अपने घरवालों तक पहुंचाने का अनुरोध किया है. पैसे की यह दिक्कत उन लाखों विद्यार्थियों को होती है जो तमाम असुविधाओं का सामना करते हुए अपनी पढ़ाई जारी रखते हैं. यूजीसी ने फेलोशिप बंद करने का जो फैसला सुनाया है उसका सबसे खराब असर दलितों और महिलाओं पर पड़ेगा.हम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की हिंसक गतिविधियों को तो फिर भी देख लेते हैं लेकिन उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बौद्धिक हिंसा पर उतना ध्यान नहीं दे पाते जितना देना चाहिए. जब 2011 में एके रामानुजम के प्रसिद्ध निबंध '300 रामायणें : पांच उदाहरण और अनुवाद पर तीन विचार' को दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास के पाठ्यक्रम से हटाया गया तब यही हिंसा काम कर रही थी. वेंडी डोनिगर की हिंदुओं पर लिखी किताब को नष्ट करवाने वाली हिंसा भी हमारी चिंता के दायरे में होनी चाहिए. यही हिंसा दीनानाथ बत्रा जैसे लोगों को बौद्धिकता का तमगादेकर रोमिला थापर के सामने खड़ा कर देती है. इस बौद्धिक हिंसा की काट ढूंढ़े बिना रोहित जैसे लोगों का संघर्ष हर दिन ज्यादा जटिल और कठिन होता जाएगा. तमाम शिक्षा संस्थानों में अयोग्य दक्षिणपंथियों को बड़े पदों पर बैठाना भी इसी हिंसा का हिस्सा है. यही लोग रोहित जैसे साथियों की जिंदगी को इतना बोझिल और कष्टप्रद बना देते हैं कि उन्हें आत्महत्या का विकल्प चुनना पड़ता है.अभी यह खबर मिली है कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में रोहित के शव के इर्द-गिर्द खड़े प्रदर्शनकारियोंको पुलिस ने बेरहमी से पीटा है और आठ विद्यार्थियों को गिरफ्तार किया गया है. दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सामने विरोध-प्रदर्शन कर रहे लोगों पर वाटर कैनन से पानी डाला गया है. जनवरी की ठंड में पुलिस की लाठी-ठंडे और पानी का सामना करते हुए कैंपसों के भगवाकरण का विरोध कर रहे ये लोग ही हमारे लोकतंत्र के असली पहरेदार हैं. जो जैसा चल रहा है उसे वैसा ही चलने दो, इस मानसिकता ने हमारे देश को दलितों, स्त्रियों, मजदूरों आदि के लिए खुली जेल बना दिया है. एक तरफ इस जेल के कैदी आत्महत्या कर रहे हैं तो दूसरी तरफ वैश्विक पूंजी के बाजार में हमारे देश को विश्व की उभरती ताकत के रूप में पेश किया जा रहा है. इस बौद्धिक अश्लीलता पर जितनी जल्दी रोक लगे उतना अच्छा होगा.

Monday, January 18, 2016

Shudro Ka Itihas

Shudro Ka Itihas
आज कल हमारे भारत के स्कूलों और कॉलेजों में जो भारत का इतिहास पढाया जाता है, उस इतिहास और वास्तविक इतिहास में बहुत अंतर है । वेदों और पुराणों में जो इतिहास वर्णित है, वो भी मात्र एक कोरा झूठ है । क्या कभी किसी ने सोचा जो भी इतिहास हमारे पुराणों, वेदों और किताबों में वर्णित है उस में कितना झूठ लिखा है । जो कभी घटित ही नहीं हुआ उसे आज भारत का इतिहास बना कर भारत की नयी पीढ़ी को गुमराह किया जा रहा है । पुराणों-वेदों में वर्णित देवता और असुरों का इतिहास? क्या कभी भारत में देवता का हुआ करते थे‌? जो हमेशा असुरों से लड़ते रहते थे. आज वो देवता और असुर कहाँ है?
भारत में कभी भी ना तो कभी देवता थे, ना है और ना ही कभी होंगे । ना ही भारत में कभी असुर थे, ना है और ना ही कभी होंगे । ये शास्वत सत्य है ।
shudro ka itihas1आज नहीं तो कल पुरे भारत को यह बात माननी ही होगी । क्योकि इन बातों का कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है । जिन बातों का कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं है, उन बातों को इतिहासकारों ने सच कैसे मान लिया? इतिहासकारों ने बहुत घृणित कार्य किया है । उन्होंने बिना किसी वैज्ञानिक आधार पर बिना कोई शोध किये देवी-देवताओं को भारत के इतिहास की शान बना दिया । देवता भी इसे अजीब अजीब की कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति विश्वास ही नहीं कर सकता । विष्णु जो एक अच्छा खासा इन्सान हुआ करता था, आज वेदों और पुराणों के झूठ के कारण सारी दुनिया का पालक भगवान् बना बैठा है । ऊपर से विष्णु के नाम के साथ ऐसे ऐसे कार्य जोड़ दिए है कि आज स्वयं विष्णु इस धरती पर आ जाये तो बेचारा शर्म के मारे डूब मरे । ये सिर्फ एक विष्णु की ही बात नहीं है, कुल मिला कर 33 करोड़ ऐसे अजीब नमूने हमारे इतिहास में भरे पड़े है । ऊपर से इतिहास में ब्राह्मणों के ऐसे कृत्य लिखे हुए है, अगर ब्राह्मणों में शर्म नाम की और मानवता नाम की कोई चीज होती तो आज पूरा ब्राह्मण समाज डूब के मर जाता । क्या पूरा देश सिर्फ एक ही वर्ग के लोगों ने चलाया? क्या पिछले 2000 सालों में समाज के दुसरे वर्गों ने भारत के लोगों के लिए कुछ भी नहीं किया? अगर किया.. तो इतिहासकारों ने दुसरे वर्गों के बारे क्यों नहीं लिखा? और जो लिखा है उस में इतना झूठ क्यों? इन सब बातों का एक ही अर्थ निकालता है कि भारत के इतिहासकार बिकाऊ थे और आज भी भारत के बिकाऊ इतिहासकार चंद सिक्को के बदले पुरे देश की जनता की भावनाओं से खेल रहे है । हमारे समाज के 5% ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों को दुनिया की सबसे ऊँची जाति लिख कर बाकि सभी जातियों (95% लोगों) के साथ इन इतिहासकारों ने नाइंसाफी की है । अगर किसी से पूछा जाये कि ईसा से 3200 साल पहले के इतिहास का कोई वर्णन क्यों नहीं है? तो उत्तर मिलाता है इस पहले कोई विवरण कही नहीं है । लेकिन हम पूछते है, क्या इतिहासकरों ने कोई अच्छा शोध किया? इतिहासकारों ने इतिहास लिखने से पहले पुराणी किताबों को पढ़ा? क्या इतिहासकारों ने देश के सभी एतिहासिक स्थानों पर शोध किये? अगर किये तो वो शोध साफ़ और स्पष्ट क्यों नहीं है? तो कहा है भारत का इतिहास?
आज भारत के बाहर निकालो तो सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है । अगर कोई भारतीय विदेशियों को अपना इतिहास बताता है तो सभी विदेशी बहुत हंसते है, मजाक बनाते है । सारी दुनिया को भारत का इतिहास पता है, फिर भी भारत के 95% लोगों को अँधेरे में रखा गया है । क्योकि अगर भारत का सच्चा इतिहास सामने आ गया तो ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों द्वारा समाज के सभी वर्गों पर किये गए अत्याचार सामने आ जायेंगे, और देश के लोग हिन्दू नाम के तथाकथित धर्म की सचाई जानकर हिन्दू धर्म को मानने से इनकार कर देंगे । कोई भी भारतवासी हिन्दू धर्म को नहीं मानेगा । ब्राह्मणों का समाज में जो वर्चस्व है वो समाप्त हो जायेगा ।

बहुत से लोग ये नहीं जानते कि भारत में कभी देवता थे ही नहीं, और न ही असुर थे । ये सब कोरा झूठ है, जिसको ब्राह्मणों ने अपने अपने फायदे के लिए लिखा था, और आज भी ब्राह्मण वर्ग इन सब बातों के द्वारा भारत के समाज के हर वर्ग को बेबकुफ़ बना रहा है । अगर आम आदमी अपने दिमाग पर जोर डाले और सोचे, तो सारी सच्चाई सामने आ जाती है । ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य ईसा से 3200 साल पहले में भारत में आये थे । आज ये बात विज्ञान के द्वारा साबित हो चुकी है । लेकिन ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य इतने चतुर है कि वो विज्ञान के द्वारा प्रमाणित इतिहास और जानकारी भारत के अन्य लोगों के साथ बांटना ही नहीं चाहते । क्योकि अगर ये जानकारी भारत के लोगो को पता चल गई तो भारत के लोग ब्राह्मणों, राजपूतो और वैश्यों को देशद्रोही, अत्याचारी और अधार्मिक सिद्ध कर के देश से बाहर निकल देंगे । भारत के लोगों को सच्चाई पता ना चले इस के लिए आज भी ब्राह्मणों ने ढेर सारे संगठन जैसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, विश्व हिन्दू परिषद्, बजरंग दल, दुर्गा वाहिनी, शिवसेना और भारतीय जनता पार्टी बना रखे है. हजारों धर्मगुरु बना रखे है. जो सिर्फ ढोग, पाखंड और भारत के लोगों को झूठ बता कर अँधेरे में रखते है, क्यों रखते है? ताकि भारत के 95% लोगों को भारत का सच्चा इतिहास पता ना चल जाये । और वो 95% लोग ब्राह्मणों को देशद्रोही करार दे कर भारत से बाहर ना निकल दे । भारत से ब्राह्मणों का वर्चस्व ही ख़त्म ना हो जाये ।

यह भारत के सच्चे इतिहास की शुरुआत है तो यहाँ कुछ बातों पर प्रकाश डालना बहुत जरुरी है । ताकि लोगों को थोडा तो पता चले कि आखिर ब्राह्मणों, राजपूतों और वैश्यों ने भारत में आते ही क्या किया जिस से उनका वर्चस्व भारत पर कायम हो पाया:
1.ईसा से 3200 साल पहले जब भारत में रुद्रों का शासन हुआ करता था । भारत में एक विदेशी जाति आक्रमण करने और देश को लूटने के उदेश्य आई । वह जाति मोरू से यहाँ आई जिनको "मोगल" कहा जाता था । मोरू प्रदेश, काला सागर के उत्तर में यूरेशिया को बोला जाता था । यही यूरेशियन लोग कालांतर में पहले "देव" और आज ब्राह्मण कहलाते है । यूरेशियन लोग भारत पर आक्रमण के उदेश्य से यहाँ आये थे । लेकिन भारत में उस समय गण व्यवस्था थी, जिसको पार पाना अर्थात जीतना युरेशिनों के बस की बात नहीं थी । भारत के मूल-निवासियों और यूरेशियन आर्यों के बीच बहुत से युद्ध हुए । जिनको भारत के इतिहास और वेद पुराणों में सुर-असुर संग्राम के रूप में लिखा गया है । भारत की शासन व्यवस्था दुनिया की श्रेष्ठतम शासन व्यवथा थी । जिसे गण व्यवस्था कहा जाता था और आज भी दुनिया के अधिकांश देशों ने इसी व्यवस्था को अपनाया है । ईसा पूर्व 3200 के बाद युरेशियनों और मूल निवासियों के बीच बहुत से युद्ध हुए जिन में यूरेशियन आर्यों को हार का मुंह देखना पड़ा।
2.पिछले कई सालों में भारत में इतिहास विषय पर हजारों शोध हुए । जिस में कुछ शोधों का उलेख यहाँ किया जाना बहुत जरुरी है । जैसे संस्कृत भाषा पर शोध, संस्कृत भाषा के लाखों शब्द रूस की भाषा से मिलते है । तो यह बात यहाँ भी सिद्ध हो जाती है ब्राहमण यूरेशियन है । तभी आज भी इन लोगों की भाषा रूस के लोगों से मिलती है । कालांतर में यूरेशिया में इन लोगों का अस्तिव ही मिट गया तो भारत में आये हुए युरेशियनों के पास वापिस अपने देश में जाने रास्ता भी बंद हो गया और यूरेशियन लोग भारत में ही रहने पर मजबूर हो गए । युरेशियनों को मजबूरी में भारत में ही रहना पड़ा और आज यूरेशियन भारत का ही एक अंग बन गए है, जिनको आज के समय में ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य कहा जाता है ।
3.ईसा पूर्व 3200 में यूरेशिया से आये लोगों की चमड़ी का रंग गोरा था, आँखों का रंग हल्का था और इनकी खोपड़ी लम्बाई लिए हुए थी । ब्राह्मण, राजपूत और वैश्य यूरेशिया से आये है. यह बात 2001 में प्रसिद्ध शोधकर्ता माइकल बामशाद ने वाशिंगटन विश्वविद्यालय में भारत की सभी जातियों के लोगों का DNA परिक्षण करके सिद्ध कर दी थी । DNA परिक्षण में यह बात साफ़ हो गई थी कि क्रमश: ब्राह्मण का 99.90%, राजपूत का 99.88% और वैश्य का 99.86% DNA यूरेशियन लोगों से मिलता है । बाकि सभी जाति के लोगों का DNA सिर्फ भारत के ही लोगों के साथ मिलाता है ।
4.जब यूरेशियन भारत में आये तो यह आक्रमणकारी लोग नशा करते थे । जिसको कालांतर में "सोमरस" और आज शराब कहा जाता है । यूरेशियन लोग उस समय सोमरस पीते थे तो अपने आपको "सुर" और अपने समाज को "सुर समाज" कहते थे । यूरेशियन लोग ठंडे प्रदेशों से भारत में आये थे, ये लोग सुरापान करते थे तो इन लोगों ने भारत पर कुटनीतिक रूप से विजय पाने के लिए अपने आपको देव और अपने समाज को देव समाज कहना प्रारम्भ कर दिया ।
5.भारत के लोग अत्यंत उच्च कोटि के विद्वान हुआ करते थे । इस बात का पता गण व्यवस्था के बारे अध्ययन करने से चलता है । आज जिस व्यवथा को दुनिया के हर देश ने अपनाया है, और जिस व्यवस्था के अंतर्गत भारत पर सरकार शासन करती है । वही व्यवस्था 3200 ईसा पूर्व से पहले भी भारत में थी । पुरे देश का एक ही शासन कर्ता हुआ करता था । जिसको गणाधिपति कहा जाता था । गणाधिपति के नीचे गणाधीश हुआ करता था, और गणाधीश के नीचे विभिन्न गण नायक हुआ करते थे जो स्थानीय क्षेत्रों में शासन व्यवस्था देखते या संभालते थे । यह व्यवस्था बिलकुल वैसी थी । जैसे आज भारत का राष्ट्रपति, फिर प्रधानमंत्री और प्रधानमंत्री के नीचे अलग अलग राज्यों के मुख्मंत्री । कालांतर में भारत पर रुद्रों का शासन हुआ करता था । भारत में कुल 11 रूद्र हुए जिन्होंने भारत पर ईसा से 3200 साल के बाद तक शासन किया। सभी रुद्रों को भारत का सम्राट कहा जाता था और आज भी आप लोग जानते ही होंगे कि शिव से लेकर शंकर तक सभी रुद्रों को देवाधिदेव, नागराज, असुरपति जैसे शब्दों से बिभुषित किया जाता है । रुद्र भारत के मूल निवासी लोगों जिनको उस समय नागवंशी कहा जाता था पर शासन करते थे । इस बात का पता "वेदों और पुराणों" में वर्णित रुद्रों के बारे अध्ययन करने से चलता है । आज भी ग्यारह के ग्यारह रुद्रों को नाग से विभूषित दिखाया जाता है । नागवंशियों में कोई भी जाति प्रथा प्रचलित नहीं थी । इसी बात से पता चलता है कि भारत के लोग कितने सभ्य, सुशिक्षित और सुशासित थे । इसी काल को भारत का "स्वर्ण युग" कहा जाता था और भारत को विश्व गुरु होने का गौरव प्राप्त था ।
6.असुर कौन थे? ये भी एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न है । क्योकि भारत के बहुत से धार्मिक गर्न्थो में असुरों का वर्णन आता है । लेकिन ये बात आज तक सिद्ध नहीं हो पाई कि असुर थे भी या नहीं । अगर थे, तो कहा गए? और आज वो असुर कहा है? इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए हमे वेदों और पुराणों का अध्ययन करना पड़ेगा । आज भी हम खास तौर पर "शिव महापुराण" का अध्ययन करे तो असुरों के बारे सब कुछ स्पष्ट हो जाता है । असुराधिपति भी रुद्रों को ही कहा गया है । शिव से लेकर शंकर तक सभी रुद्रों को असुराधिपति कहा जाता है । आज भी रुद्रों को असुराधिपति होने के कारण अछूत या शुद्र देवता कहा जाता है । कोई भी ब्राह्मण रूद्र पूजा के बाद स्नान करने के बाद ही मंदिरों में प्रवेश करते है या गंगा जल इत्यादि अपने शरीर पर छिड़क कर दुसरे देवताओं की पूजा करते है । नागवंशी लोग सांवले या काले रंग के हुआ करते थे और नागवंशी सुरापान नहीं करते थे । आज भी आपको जगह जगह वेदों और पुराणों में लिखा हुआ मिल जायेगा कि नाग दूध पीते है कोई भी नाग "सूरा" अर्थात शराब का सेवन नहीं करते थे । अर्थात भारत के मूल निवासी कालांतर में असुर कहलाये और आज उन्ही नागवंशियों को शुद्र कहा जाता है ।
7.युरेशियनों ने भारत कूटनीति द्वारा भारत की सता हासिल की और पहले तीन महत्वपूर्ण नियम बनाये जिनके करना आज भी ब्राहमण पुरे समाज में सर्वश्रेठ माने जाते है:
8.वर्ण-व्यवस्था: युरेशियनों ने सबसे पहले वर्ण-व्यवस्था को स्थापित किया अर्थात यूरेशियन साफ़ रंग के थे तो उन्हों ने अपने आपको श्रेष्ठ पद दिया । यूरेशियन उस समय देवता कहलाये और आज ब्राह्मण कहलाते है । भारत के लोग देखने में सांवले और काले थे तो मूल निवासियों को नीच कोटि का बना दिया गया । 400 ईसा पूर्व या उस से पहले भारत के मूल निवासियों को स्थान और रंग के आधार पर 3000 जातियों में बांटा गया । आधार बनाया गया वेदों और पुराणों को, जिनको यूरेशियन ने संस्कृत में लिखा । भारत के मूल निवासियों को संस्कृत का ज्ञान नहीं था तो उस समय जो भी यूरेशियन बोल देते थे उसी को भारत के मूल निवासियों ने सच मान लिया । जिस भी मूल निवासी राजा ने जाति प्रथा का विरोध किया उसको युरेशियनों ने छल कपट या प्रत्यक्ष युद्धों में समाप्त कर दिया । जिस का वर्णन सभी वेदों और पुराणों में सुर-असुर संग्रामों के रूप में मिलाता है । लाखों मूल निवासियों को मौत के घाट उतारा गया । कालांतर में उसी जाति प्रथा को 3000 जातियों को 7500 उप जातियों में बांटा गया ।
9.शिक्षा-व्यवस्था: इस व्यवस्था के अंतर्गत युरेशियनों ने भारत के लोगों के पढ़ने लिखने पर पूर्ण पाबन्दी लगा दी । कोई भी भारत का मूल-निवासी पढ़ लिख नहीं सकता था । सिर्फ यूरेशियन ही पढ़ लिख सकते थे । भारत के लोग पढ़ लिख ना पाए इस के लिए कठोर नियन बनाये गए । मनु-स्मृति का अध्ययन किया जाये तो यह बात सामने आती है । कोई भी भारत का मूल निवासी अगर लिखने का कार्य करता था तो उसके हाथ कट देने का नियम था । अगर कोई मूल-निवासी वेदों को सुन ले तो उसके कानों में गरम शीशा या तेल से भर देने का नियम था । इस प्रकार भारत के लोगों को पढने लिखने से वंचित कर के युरेशियनों ने वेदों और पुराणों में अपने हित के लिए मनचाहे बदलाव किये । ये व्यवस्था पहली इसवी से 1947 तक चली । जब 1947 में देश आज़ाद हुआ तो डॉ भीमा राव अम्बेडकर के प्रयासों से भारत के मूल-निवासियों को पढ़ने लिखने का अधिकार मिला । आज भी ब्राह्मण वेदों और पुराणों में नए नए अध्याय जोड़ते जा रहे है और भारत के मूल निवासियों को कमजोर बनाने का प्रयास सतत जारी है ।
10.धर्म व्यवस्था: धर्म व्यवस्था ही भारत के मूल निवासियों के पतन के सबसे बड़ा कारण था । धर्म व्यवस्था कर के युरेशियनों ने अपने आपको भगवान् तक घोषित के दिया । धर्म व्यवस्था कर के युरेशियनों ने खुद को देवता बना कर हर तरह से समाज में श्रेष्ठ बना दिया । धर्म व्यवस्था में "दान का अधिकार" बना कर युरेशियनों ने अपने आपको काम करने से मुक्त कर दिया और अपने लिए मुफ्त में ऐश करने प्रबंध भी इसी दान के अधिकार से कर लिया । धर्म व्यवस्था के नियम भी बहुत कठोर थे । जैसे कोई भी भारत का मूल निवासी मंदिरों, राज महलों और युरेशियनों के आवास में नहीं जा सकता था । अगर कोई मूल निवासी ऐसा करता था तो उसको मार दिया जाता था । आज भी यूरेशियन पुरे भारत में अपने घरों में मूल निवासियों को आने नहीं देते । आज भी दान व्यवस्था के चलते भारत के मंदिरों में कम से कम 10 ट्रिलियन डॉलर की संम्पति युरेशियनों के अधिकार में है । जो मुख्य तौर पर भारत में गरीबी और ख़राब आर्थिक हालातों के लिए जिमेवार है । संम्पति के अधिकार हासिल कर के तो युरेशियनों ने मानवता की सारी सीमा ही तोड़ दी । यहाँ तक भारत में रूद्र शासन से समय से पूजित नारी को भी संम्पति में शामिल कर लिया । नारी को संम्पति में शामिल करने से भी भारत के मूल निवासियों का पतन हुआ । संम्पति के अधिकार भी बहुत कठोर थे । जैसे यूरेशियन सभी प्रकार की संम्पतियों का मालिक था । भारत के मूल निवासियों को संम्पति रखने का अधिकार नहीं था । यूरेशियन भारत की किसी भी राजा की संम्पति को भी ले सकता था । यूरेशियन किसी भी राजा की उसके राज्य से बाहर निकल सकता था । यूरेशियन किसी की भी स्त्री की ले सकता था । यहाँ तक युरेशियनों को राजा की स्त्री के साथ संम्भोग की पूर्ण आज़ादी थी । अगर किसी राजा के सन्तान नहीं होती थी तो यूरेशियन राजा की स्त्री के साथ संम्भोग कर बच्चे पैदा करता था । जिसे कालांतर में "नियोग" पद्धति कहा जाता था । इस प्रकार राजा की होने वाली संतान भी यूरेशियन होती थी । शुद्र व्यवस्था के द्वारा तो युरेशियनों ने सारे देश के मूल निवासियों को अत्यंत गिरा हुआ बना दिया । हज़ारों कठोर नियम बनाये गए । मूल निवासियों का हर प्रकार से पतन हो गया । मूल निवासी किसी भी प्रकार से ऊपर उठने योग्य ही नहीं रह गए । मूल निवासियों पर शासन करने के लिए और बाकायदा मनु-स्मृति जैसे बृहद ग्रन्थ की रचना की गई । आज भी लोग 2002 से पहले प्रकाशित के मनु-स्मृति की प्रतियों को पढेंगे तो सारी सच्चाई सामने आ जाएगी ।

ये कुछ महत्वपूर्ण बातें थी जिन पर भारत का इतिहास लिखने से पहले प्रकाश डालना जरुरी था । यही कुछ बातें है जिनका ज्ञान भारत के मूल निवासियों को होना बहुत जरुरी है । अगर भारत के मूल निवासी युरेशियनों के बनाये हुए नियमों को मानने से मना कर दे । युरेशियनों की बनायीं हुई वर्ण व्यवस्था, जाति व्यवस्था, संम्पति व्यवस्था, वेद व्यवस्था, धर्म व्यवस्था को ना माने । सभी मूल निवासी ब्राह्मणों के बनाये हुए जातिवाद के बन्धनों से स्वयं को मुक्त करे और सभी मूल निवासी नागवंशी समाज की फिर से स्थापना करे । सभी मूल निवासी मिलजुल कर देश का असली इतिहास अपने लोगों को बताये । सभी नागवंशी अपनी क़ाबलियत को समझे । तभी भारत के मूल निवासी पुन: उसी विश्व गुरु के पद को प्राप्त कर सकते है और भारत में फिर से स्वर्ण युग की स्थापना कर सकते है । जल्दी ही भारत का विस्तृत इतिहास अलग अलग अध्यायों के रूप में प्रस्तुत किया जायेगा । हमारी टीम रात दिन भारत के इतिहास पर हुए हजारों शोधों और पुस्तकों का अध्ययन कर रही है, और भारत का सच्चा इतिहास लिखा जा रहा है ।

आप सभी से विनम्र प्रार्थना है कि भारत का इतिहास सभी लोगों तक पहुंचाए।

मार ही डाला मनुवादियो ने एक अम्बेडकरवादी

अच्छे दिन ,,,,
बांमनो के (bJP के) राम राज्य मे बहुजनो के अच्छे दिन ,,,,,
आखिरीकार मार ही डाला मनुवादियो ने एक अम्बेडकर वादी को ,,,,,,
"दो सप्‍ताह पहले हैदराबाद विश्वविद्यालय के हॉस्‍टल से निकाले गए पांच दलित PHD  छात्र (शोधार्थियों ) में से एक रोहित वेमुला ने रविवार को खुदकुशी कर ली। उसका शव कैंपस के एक हॉस्‍टल में पंखे से लटका मिला। वह पिछले कई दिनों से अपने निष्कासन के खिलाफ खुले में सो रहा था। "
साइबराबाद पुलिस आयुक्त सीवी आनंद ने बताया, करीब 26 वर्षीय रोहित वेमुला का शव हॉस्‍टल के कमरे में फांसी से लटका मिला। पिछले साल अगस्त में हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय (एचसीयू) द्वारा निलंबित किए गए पांच शोधकर्ताओं में से वह एक था।
अंबेडकर स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन से जुड़े इन दलित छात्रों को अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक नेता पर कथित हमले के मामले में हैदराबाद यूनिवर्सिटी ने छात्रावास से निष्‍कासित कर दिया गया था।यहां तक कि विश्‍वविद्याालय के हॉस्‍टल, मैस, प्रशासनिक भवन और कॉमन एरिया में भी इनके घुसने पर रोक लगा दी गई थी। दलित छात्रों के इस 'बहिष्‍कार' के खिलाफ कई छात्र संगठन विरोध-प्रदर्शन कर रहे थे और इस मुद्दे पर विश्‍वविद्यालय में काफी दिनों से विवाद चल रहा था। रोहित समेत पांचों छात्र अपने निष्‍कासन के खिलाफ कई दिनों से कैंपस में खुले आसमान के नीचे सो रहे थे। 
मिली जानकारी के अनुसार, रविवार को एक तरफ जहां दलित छात्रों के समर्थन में कई छात्र संगठनों का धरना चल रहा था, रोहित चुपके से यूनिवर्सिटी के एनआरएस हॉस्‍टल गए और खुद को एक कमरे में बंद कर खुदकुशी कर ली। बताया जाता है कि इससे पहले रोहित की विरोधी गुट के छात्रों के साथ तीखी बहस हुई थी। पुलिस के मुताबिक, रोहित के पास से पांच पन्‍नों का एक सुसाइड नोट बरामद हुआ है। 
रोहित की खुदकुशी के लिए अंबेडकर स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन ने विश्‍वविद्यालय प्रशासन के रवैये को जिम्‍मेदार ठहराया है। इस बीच, कैंपस में तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए सुरक्षा बढ़ा दी गई। रोहित की मौत से आक्रोशित कई छात्र संगठनों ने उसके शव को लेकर विरोध-प्रदर्शन किया और भाजपा नेता व केंद्रीय मंत्री बंगारू दत्‍तात्रेय के खिलाफ एससी-एसटी उत्‍पीड़न का मामला दर्ज करने की मांग की। अंबेडकर स्‍टूडेंट्स एसोसिएशन का आरोप है कि बंगारू दत्‍तात्रेय ने ही इन दलित शोधार्थियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय को पत्र लिखा था।    
छात्र संगठनों ने किया बंद का आह्वान 
दलित छात्र की खुदकुशी के खिलाफ एसएफआई, डीएसयू, एआईएसएफ समेत कई छात्र संगठनों ने राज्‍य व्‍यापी बंद का आह्वान किया है। इस मामले में केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता का नाम आने से दलित छात्र की ख़ुदकुशी का मुद्दा और ज्यादा गरमा सकता है।

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हम सब गुनाहगार हैं.
रोहित वेमुला की हत्या बेशक आधुनिक युग के द्रोणाचार्यों यानी प्रोफेसरों ने की है, लेकिन उसके खून के छींटे हम सबके बदन पर हैं.
हम तो जानते थे कि RSS ने हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में आंबेडकर स्टूडेंट्स एसोसिएशन के पांच छात्रों का सामाजिक बहिष्कार सुनिश्चित कराया है. हॉस्टल से निकाले गए ये बच्चे खुले में रातें बिता रहे थे. उन पर तमाम तरह की पाबंदियां लगी थी. उनका करियर तबाह हो रहा था. परिवार से कितने तरह के दबाव आ रहे होंगे.
हम और आप, जी हां आप भी, और हम भी, यह सब बातें जान रहे थे. पर हम रोहित को कहां बचा पाए?
हम तो इंसानियत और न्याय के पक्ष में थे.... फिर हम क्यों हार गए रोहित?
एकलव्य यह देश शर्मिंदा है
द्रोणाचार्य अब तक जिंदा है!
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हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के होनहार दलित छात्र Rohith Vemula की आत्महत्या ने हम सबको हिलाकर रख दिया है। देश भर के विश्वविद्यालयों में आज भी मनु के औलाद भरे पड़े हैं। अब समय आ गया है कि इनसे निपटने का नया तरीका ढूँढा जाए। इनको इन्हीं की भाषा में समझाने का समय अब आ गया है, वर्ना निर्दोष दलित-आदिवासी छात्र ऐसे ही बेमौत मरते रहेंगे और मनु के औलाद फलते-फूलते रहेंगे। रोहिथ की कुर्बानी को हम व्यर्थ नहीं जाने देंगे। बाबासाहेब, आज हम शर्मिंदा हैं ! देश में अभी मनुवाद-जातिवाद ज़िंदा है। अब आर-पार की लड़ाई लड़नी होगी। आपसी मतभेद भुलाकर सारे वंचित एक हों- इसकी जरूरत आज सबसे ज्यादा है, तभी रोहिथ को हम सच्ची श्रद्धांजलि दे पाएँगे।

जयभीम जयभारत ॥
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आरक्षण की जड़ भारतीय इतिहास में 5 हजार वर्ष पूर्व तक जाती है

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सादर प्रणाम 
साथियों ,
आजकल कुछ कथाकथित विद्वान एवं मिट्टी के शेर चारों तरफ़ चिल्लाते /चीखते घूम रहे हैं कि आरक्षण समाप्त होना चाहिये इससे प्रतिभा का हनन हो रहा है ,आरक्षण का आधार जाति नहीं आर्थिक होना चाहिये ?इस आरक्षण रूपी जंजीर के बाँधने से गधे धोड़ों से आगे रेस में निकल रहे हैं ,जो बहुत बड़ा ही अन्याय है !-
तो मित्रों प्रश्न बहुत बड़ा है इसलिये इसके प्रत्येक खंड पर विचार किया जाना चाहिये !-:
मेरा इस विषय में कहना है कि आरक्षण कोई महज सात दशक पुराना नहीं ,जिसकी शुरुआत 1947के बाद मानी जाती है !यदि कुछ लोग ऐसा मानते हैं तो निसंदेह वह बहुत बड़े बेवक़ूफ़ और अज्ञान हैं !इसलिये इस विषय पर बोलने से पहले उन्हे ठीक से भारत के इतिहास का अध्ययन करलेना चाहिये !
               आरक्षण बहुत पुराना है जिसकी जड़ भारतीय इतिहास में 5 हजार वर्ष पूर्व तक जाती हैं ,जिसे "मनु "जैसे पाखंडी और मनुष्यता के दुश्मनों ने लागू क्या !ऐसे धूर्त और मक्कारो ने भारतीय जनमानस को पहले वर्गों में बाँटा तत्पश्चात आरक्षण का प्रावधान किया !ब्राह्ममण के लिये 100%शिक्षा में आरक्षण ,क्षत्रियों के लिये युद्ध शिक्षा व शासन में 100%आरक्षण ,वैश्य के लिये व्यापार में शतप्रतिशत आरक्षण और चौथे एवं अंतिम वर्ग को इन तीनो वर्गों की सेवा यानी गुलामी का आरक्षण !
दोस्तो यह आरक्षण सन् 1947ई .तक यथावत एवं उसके बाद थोड़े से बदलाव के साथ अनवरत रुप से आज भी जारी है !लेकिन मजे की बात ये कि इन 5हजार वर्षोके दौरान इस खुली गुंडा-गर्दी के खिलाफ़ किसी भी विद्वान ने आवाज़ उठाने की हिमाकत नहीं की ?जिस चौथे वर्ग ने इन तीनो आरक्षित वर्गों की पाँच हजार वर्ष तक गुलामी की ,इनके मरे हुए पशुओं को ढोया ,इनके कपड़े साफ़ किये ,इनके खेतों की जुताई की ,इनके लिये शीतल जल हेतु मिट्टी के घड़े तैय्यार किये ,इनके विश्राम हेतु चारपाई तैय्यार की ,यहाँ तक कि इनके मलमूत्रों को सिर पर ढोया ! तब इस अत्याचार के खिलाफ़ किसी समाज सुधार का ध्यान क्यों नहीं गया ?और आज स्वतंत्र भारत में उनके जीवन में सुधार एवं उनन्यन व समृद्धि हेतु संविधान में कुछ थोड़े बहुत प्रावधान क्या किये इनके लिये आफत आगई ?ये विरोध पर उतारू हो गये ? तुमको शर्म भी नहीं आती ?अरे बईमानों ये आरक्षण की अवधारणा हमारी नहीं ,अपितु तुम्हारे कथाकथित मनीषियों की थी जो किसी भी कीमत पर इसे बनाये रखना चाहते हैं ? तुम  गधे और घोड़े की बात करते हो ?जंजीर बाँधने की बात करते हो ?तो सुनो ये जंजीर बाँधने का काम भी ,तुम्हारी षणयंत्रकरी योजनाओं का ही हिस्सा है ,अन्यथा आरक्षण का पुजारी महा भारत का द्रोणाचार्य एकलब्य जैसे वीर के हाथ का अँगूठा छल से काट कर ,एक घोड़े के पैरों में जंजीर बाँध कर ,उस अर्जुन जैसे गधे को आगे नहीं करता ? ऐसी प्रपंच युक्त एवं षणयंत्रकरी योजनाओं से इतिहास भरा पड़ा है !और बात करते हो जंजीरों की ,बात करते हो अन्याय की तुन्हे लज्जा नहीं आती ?"थू " तुम्हारी इस घिनौनी एवं घृणित दकियानूसी सोच पर !ये छल और प्रपंच तो तुम और तुम्हारे देवता ही कर सकते हैं !जो रात में ब्रह्म मुहूर्त के दौरान जब किसी स्त्री का पति स्नान के लिये बाहर जाता है ,तो इनके देवताअँधेरे का लाभ उठाकर उस स्त्री के छद्द्म पति के रुप में उसके साथ धोखा कर जाते हैं ,उसके साथ सम्भोग कर जाते हैं ,और उसके पति के आने से पूर्व नदारद भी हो जाते हैं ,जब तुम्हारे देवताओं का ये हाल रहा है तो तुम जैसे साधारण लोगों की क्या हालात होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है ?अरे जितना नीच काम आपके देवता करते थे उतना तो गुण्डे और बदमाश भी नहीं कर सकते करते ?जिन्हे अपनी योग्यता का सही से आंकलन नहीं वो दूसरों को गधा बताने का प्रयास करते हैं ?
यही नहीं धरम के नाम पर आज भी ब्राह्मणों का 100%आरक्षण है ,मंडलेश्वर ,महा मंडलेश्वर ,पीठाधीस्वर एवं शंकराचार्य जैसे धार्मिक पदों पर सिर्फ़ और सिर्फ़ ब्राह्मण ही विराजित होते हैं ,पर ये आरक्षण किसी को दिखाई नहीं देता क्यों ?क्या चमार ,धोबी ,पासी ,वर्मा ,यादव आदि इसके योग्य नहीं या फ़िर इन जातियों का काम सिर्फ़ ब्राह्मणों की जूतियाँ उठाना मात्र् है ?
आज भारत के मंदिरों से 80 हजार करोड़ सालाना होने वाली आय को आरक्षित ब्राह्मण ही डकार जाता है ये आरक्षण किसी को दिखाई नहीं देता ?
यदि बात की जाती है जातिगत आरक्षण की तो ये जातियां बनाई किसने उसने जो आज भी इसके नाम पर पग-पग पर अपमानित होता है ?या उसने जो इसके नाम पर अपनी झूठी श्रेष्ठता केआधार पर हजारों सालों से मुफ्त की रोटियाँ तोडता आया है ?ए आरक्षण कोई खैरात में नहीं मिला है उस खून  पसीने की कमाई का एक छोटा सा हिस्सा है जिसे तुम जैसे तुच्छ सोच वाले इंसानों ने दबा कर रखा है जिसकी दम पर आज गधे और घोड़े की बात करते हो ?
आज तमाम आंकड़े बताते हैं कि भारत में महज 5%लोगों के पास उसकी कुल सम्पत्ति का 95%हिस्सा है और 95%लोगों के पास मातृ 5%!ए 5%वही लोग हैं जो आरक्षण का विरोध करते है?उसे समाप्त करने की वकालत करते हैं ?आरक्षण को समाप्त करने से पहले उस 95%सम्पदा का बँटवारा होना चाहिये जिसे 5%लोग दबाये बैठे हैं ?आरक्षण को समाप्त करने से पहले "आर्थिक जातिगत "जनगणना होनी चाहिये ?आरक्षण समाप्त करने से पहले ये बताना होगा कि विदेशों में जमा काला धन किस जाती के लोगों का है ?आरक्षण समाप्त करने से पहले देश में घोटले बाज नेताओं की जाती का खुलासा करना होगा जिससे पता तो चले कि आरक्षण का विरोध करने वाले देश का कितना भला चाहते हैं ?आरक्षण समाप्त करने से पहले नाम के पीछे से सर नेम हटाना पड़ेगा ?और आरक्षण समाप्त करने से पहले उच्च जातियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने होंगे ,जातिवाद को जड़से समाप्त करना होगा ?
आरक्षण विरोधी अपने आप को ज्यादा काबिल समझते हैं तो जब इस देश को हुण ,कुषाण ,मंगोल ,यूनान ,तुर्क ,मुगल और अंगेजों ने बारी -बारी से गुलाम बनाया ,तब इनकी काबिलियत क्या घास चरने गयी थी ?
मैं दावे के साथ कहता हूँ कि यदि आरक्षण विरोधियों की सुविधायें आरक्षण समर्थको के बराबर करदी जायें तो घोड़े के बात तो छोड़ो इनकी औकात सूअर जितनी भी नहीं रहेगी ?
आरक्षण समाप्त करने से पहले हर जगह शिक्षा ,स्वास्थ्य ,सड़क ,रेल,बेंक एवं विधुत का राष्ट्रीयकरण करना होगा ?हर जगह से निजीकरण समाप्त करना होगा ?आरक्षण समाप्त करने से पहले जल ज़मीन और जायदाद का बँटवारा भारत की जनता में समान रुप से करना होगा ?
यदि इससे पहले आरक्षण समाप्त हुआ तो सारा भारत निसंदेह ग्रह युद्ध की आग में दहक उठेगा !और तब उस युद्द को नियंत्रित करने के लिये भारत को नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ को कर्फ्यू लगाना पड़ेगा ,जिसकी जिम्बेदार स्वम भारत सरकार होंगी ?
परंतु फिलहाल ऐसा हम होने नहीं देंगे ,क्योंकि हमें अपने देश से प्रेम है !!
धन्यवाद !
दीपक कुमार (एडवोकेट)
आज़मगढ़।।

कृपया इस मेसेज को अधिक से अधिक फैलायें ताकि आरक्षण का विरोध करने वालों की समझ में आये कि आरक्षण का लाभ कौन ले रहा है !और उनके प्रश्न का सही जवाब भी उन्हे मिल सके !!

मुलायम का परिवार बना देश का सबसे बड़ा सियासी कुनबा

मुलायम का परिवार बना देश का सबसे बड़ा सियासी कुनबा

लखनऊ-
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव के परिवार के 2 और सदस्यों ने राजनीति में कदम रखा है। 20 सदस्यों के साथ मुलायम का कुटुंब अब किसी भी पार्टी में सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के होने का दावा कर सकता है। जिला पंचायत चुनाव में सपा सुप्रीमो परिवार के दो सदस्यों ने राजनीतिक एंट्री की है। संध्या यादव को मैनपुरी से जबकि अंशुल यादव को इटावा से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुना गया है। बता दें कि संध्या यादव सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन हैं, जबकि अंशुल यादव, राजपाल और प्रेमलता यादव के बड़े बेटे हैं।


मुलायम सिंह यादव
मुलायम समाजवादी पार्टी के अगुआ और पार्टी संस्थापक हैं। उन्होंने 4 अक्टूबर 1992 को समाजवादी पार्टी का गठन किया था। अपने राजनीतिक करियर में वह तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रहे।

शिवपाल सिंह यादव
शिवपाल 1988 में पहली बार इटावा के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष चुने गए। 1996 में सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने अपनी जसवंतनगर की सीट छोटे भाई शिवपाल के लिए खाली कर दी थी। इसके बाद से ही शिवपाल का जसवंतनगर की विधानसभा सीट पर का कब्जा बरकरार है।

रामगोपाल सिंह यादव
मुलायम सिंह ने 2004 में संभल सीट रामगोपाल के लिए छोड़ दी थी और खुद मैनपुरी से सांसद का चुनाव लड़ा था। रामगोपाल ने भी इस सीट से जीत हासिल करके संसद पहुंचे थे। अभी वह राज्यसभा सांसद हैं।

अखिलेश यादव
मुलायम ने1999 की लोकसभा चुनाव संभल और कन्नौज दोनों सीटों लड़ा और जीता। इसके बाद सीएम अखिलेश के लिए कन्नौज की सीट खाली कर दी। अखिलेश ने कन्नौज की सीट से चुनाव लड़ा और जीता। इसी के साथ उनकी भी राजनीति में एंट्री हो चुकी थी। इसके बाद वह 2012 में मुख्यमंत्री बने।

धर्मेंद्र यादव
2004 में सीएम रहते हुए मुलायम सिंह यादव मैनपुरी से चुनाव लड़ा और जीता। बाद में यह सीट अपने भतीजे धर्मेंद्र यादव के लिए खाली कर दी। उस वक्त उन्होंने 14वीं लोकसभा में सबसे कम उम्र के सांसद बनने का रिकार्ड बनाया।

डिंपल यादव
अखिलेश यादव ने 2009 के लोकसभा चुनाव में कन्नौज और फिरोजाबाद से जीतकर फिरोजाबाद की सीट की अपनी पत्नी डिंपल यादव के लिए छोड़ दी, लेकिन इस बार पासा उलट पड़ गया और डिंपल को कांग्रेस उम्मीदवार राजबब्बर ने हारा दिया। पहली बार में इस खेल में मात खाने बावजूद अखिलेश का भरोसा इस फार्मूले से नहीं टूटा। 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने अपनी कन्नौज लोकसभा सीट एक बार फिर डिंपल के लिए खाली की। इसबार सूबे में सपा की लहर का आलम ये था कि किसी भी पार्टी की डिंपल के खिलाफ प्रत्याशी उतारने की हिम्मत नहीं हुई और वो निर्विरोध जीती।

तेज प्रताप यादव
तेजप्रताप यादव सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव के पोते हैं। वे मैनपुरी से सांसद हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी और आजमगढ़ दोनों सीटों से चुनाव लड़ा था। इसके बाद उन्होंने अपनी पारंपरिक सीट मैनपुरी खाली कर दी थी। इस सीट पर उन्होंने अपने पोते तेज प्रताप यादव को चुनाव लड़ाया। तेजप्रताप ने भी अपने दादा को निराश नहीं किया और बंपर वोटों से चुनाव में जीत हासिल की। साथ ही इस राजनीति में धमाकेदार एंट्री की।

अक्षय यादव
अक्षय यादव मौजूदा समय में फिरोजाबाद से सपा सांसद हैं। अक्षय यादव भी पहली बार चुनाव जीतकर सक्रिया राजनीति में उतरे हैं। यह सीट यादव परिवार की पारंपरिक संसदीय सीट रही है। जब अखिलेश यादव ने वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद और कन्नौज से चुनाव लड़ा था, उस समय फिरोजाबाद के चुनाव प्रबंधन की कमान अक्षय यादव ने संभाली थी। इसके बाद अखिलेश ने फिरोजाबाद सीट छोड़ दी और उपचुनाव में पत्नी डिंपल यादव को चुनाव लड़ाया। भाभी डिंपल का चुनाव प्रबंधन भी अक्षय ने संभाला था, लेकिन कांग्रेस नेता राज बब्बर ने डिंपल को हरा दिया था।

प्रेमलता यादव
मुलायम सिंह यादव के भाई राजपाल यादव की पत्नी हैं प्रेमलता यादव। 2005 में वह इटावा की जिला पंचायत अध्यक्ष चुनी गई थीं।

सरला यादव
यूपी के कैबिनेट मिनिस्टर शिवपाल यादव की पत्नी हैं सरला यादव। 2007 में जिला सहकारी बैंक इटावा की राज्य प्रतिनिधि बनाया गया था।

आदित्य यादव
शिवपाल यादव के बेटे आदित्य यादव को जसवंत नगर लोकसभा सीट से एरिया इंचार्ज थे। मौजूदा समय में वह यूपीपीसीएफ के चेयरमैन हैं।

अंशुल यादव
राजपाल और प्रेमलता यादव के बड़े बेटे हैं अंशुल यादव। 2016 में इटावा से निर्विरोध जिला पंचायत अध्यक्ष चुने गए हैं अंशुल यादव।

संध्या यादव
सपा सुप्रीमो की भतीजी और सांसद धर्मेंद्र यादव की बहन संध्या यादव ने जिला पंचायत अध्यक्ष के जरिए राजनीतिक एंट्री की है। उन्हें मैनपुरी से जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए निर्विरोध चुना गया है।
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आरक्षण कौन से वर्ष की जनगणना पर आधारित है

जय भीम 🙏 जय मूलनिवासी

✒ मित्रो आश्चर्य किन्तु सत्य 
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मैंने आज एक छोटा सा सवाल देश के आरक्षित वर्ग के छात्र, प्रबुद्ध वर्ग के समक्ष रखा कि आज देश में SC ST का आरक्षण कौन से वर्ष की जनगणना पर आधारित है। मेरा मकसद किसी की परीक्षा लेना नहीं था। उक्त प्रश्न कई ग्रुप में डालने के बाद अव्वल तो लाइक ही मिले। कुछ ने ही जवाब देने की हिम्मत की। मात्र एक भाई चरण सिंह मीणा ने ही इसका सटीक जवाब दिया। घोर आश्चर्य है की दिन रात सोशल मिडिया पर हम सक्रिय रहने के बावजूद अपने मुलभूत अधिकारों और तथ्यों के प्रति अत्यन्त लापरवाह हैं। आप इसे अन्यथा न ले मैं स्वयं भी इसमें ही शामिल हूँ। 

भाइयों आपको आश्चर्य होगा कि आज भी देश के SC ST वर्ग का आरक्षण अंग्रेजों द्वारा 1931 में करवाई गयी पहली जातिगत जनगणना पर ही आधारित है।
अब प्रश्न उठता है की देश 1947 में आजाद भी हो गया और हर 10 साल में जनगणना भी हो रही है तो फिर भी SC ST का आरक्षण 1931 की जनगणना से क्यों तय हो रहा है।
देश के 3% ब्राह्मण वर्ग का हम 90% लोगों पर राज करने का रहस्य बस इसी में छुपा हुआ है। ब्राह्मण वर्ग (गांधी+नेहरू) ने 1931 में ही ये ताड़ लिया था की कालांतर में देश के बहुसंख्यक दलित वर्ग, जो कि संख्या में 90% है,  को यदि ये पता लग गया की वे बहुमत में है। लेकिन हासिल उन्हें मात्र रत्तीभर ही हो रहा है तो वे कुछ ही समय में हमें (बणिया, बामण, ठाकुर) को देश से बाहर निकाल फेंकेंगे। अपने मूल देश यूरेशिया ले जा पटकेंगे।

इसलिए न केवल इन ब्राह्मणों के वर्ग ने अम्बेडकर जी का विरोध ही किया बल्कि अंग्रेजों, जो कि भारत में समतामूलक समाज की स्थापना के लिए लोकल गवर्नेस, आधुनिक शिक्षा, चुनाव प्रणाली, दलितवर्ग को अधिकार दिलाने के लिए आरक्षण व्यवस्था को लागू करने सहित अन्य सामाजिक सुधार लागु कर रहे थे, का तीव्र विरोध किया। और चालाकी से अंग्रेजो को भारत से जल्दी से जल्दी बाहर निकालने के लिये अपनी (ब्राह्मण + बणिया की) आजादी के लिए आंदोलन को तीव्र किया। 

जब 1947 में देश आजाद तो हुआ लेकिन हम आजाद नही हुए ? आजाद हुए सिर्फ ब्राह्मण और उनके पिछलग्गू। यदि हम आजाद हुए होते तो आज भी हमारे साथ छूआछूत न होती और न ही भुखमरी हमारी संगदिल होती, न ही रोजाना हमारे वर्ग की 10-20 महिलाओं को बलात्कार का शिकार होना पड़ता। देश के चौराहों पर रोजाना रोजगार की आस में हमारे मेले नहीं लगते। मरे हुए जानवर उठाने और सर पर मैला ढोने की परम्परा का निर्वाह भी हमें नही करना पड़ता। न ही हमारे जंगल, खेत, खलिहान, नदी, नाले हमसे जबरदस्ती ही छिनते।

1947 की आजादी को हमारे लोग सिर्फ "TRANSFER OF POWER " से ज्यादा कुछ नहीँ मानते। क्योंकि एक शोषक ने दूसरे शोषक वर्ग को सत्ता सौपी। यदि हम आजाद हुए होते तो हमें भी गरिमामयी जीवन जीने का अधिकार मिलता जो आज तक नही मिला है।
साथियों अब सवाल वहीं कि
आजादी के बाद जातिगत जनगणना क्यों नही की गयी? कौन इसका विरोधी है और क्यों??

मित्रों जैसे ही चालाक ब्राह्मणों के हाथों में देश की बागडोर आयी उन्होंने सबसे पहले देश की कार्यपालिका, न्यायपालिका, विधायिका, के हर महत्वपूर्ण हिस्से को अपनी जकड़ में ले लिया। अपनी जमात के अयोग्य लोगों को भी महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया। चूँकि उस समय हमारे गिनती के लोग ही पढे लिखे थे। इसलिए इनकी तरफ कुछ टुकड़े फेंक दिए गए।
तत्पश्चात प्रति 10 साल की जनगणना में ये हमारी (SC ST) गणना तो करते आ रहे हैं। मगर आंकड़े उजागर नही करते। कारण साफ है। हमें हमारी ताकत का अंदाजा न होने देना। ताकि हम हमारे संवैधानिक आरक्षण को हमारी अनवरत बढ़ती आबादी के अनुपात में बढ़ाने की मांग न कर बैठे और उनका देश पर राज अनवरत रूप से बना रहे।
देश की चालाक मनूवादी न्यायपालिका जिस पर देश की 1 अरब जनसंख्या का विश्वास टिका है उसने भी देश की जनता से गद्दारी ही की है। वो 1952 से ही हमारे आरक्षण को खत्म करने के लिए वाद तो लेती रही लेकिन उसके सामने जब कभी भी हमने आरक्षण को बढ़ाने के लिए हमारे लेटेस्ट आंकड़े उपलब्ध कराने के लिए सरकार को निर्देश देने के लिए आग्रह किया गया वे बेशर्मी से अपनी लुटेरी जमात BBT (ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर) का साथ देते रहे। हमारे हकों को लूटने में सहायक बनते रहे और आज भी बने हुए हैं।

1991 में देश में मण्डल आयोग का धमाका। पिछडे वर्ग के नेतृत्व का उदय।
ब्राह्मणों का राजनैतिक पराभव का प्रारम्भ।
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मित्रों 1991 में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने ब्राह्मणों से परेशान होकर बाबा साहब अम्बेडकर के द्वारा पिछड़े वर्ग के विकास के लिए किये गए प्रावधान को असली जामा पहना कर श्री बी.पी.मण्डल द्वारा तैयार रिपोर्ट को देश में लागु कर दिया। उस समय OBC की आबादी का खुलासा हुआ की ये 52% है। लेकिन आरक्षण स्वीकार किया मात्र 27% । लेकिन आज तक दिया गया 4% से भी कम।

अब आप सोचो कि 52+23 = 75% आबादी OBC+SC+ST की और इसमें 15% आबादी मुस्लिम वर्ग को जोड़ ले तो देश की कुल आबादी 52+23+15=90% किसकी है। SC ST OBC MINORITY की। तो फिर सुप्रीमकोर्ट ने आरक्षण को 50+50% में कैसे बाँट दिया। कहाँ से लाये ब्राह्मणी जज और वकील जनरल की 50% आबादी। हम आज भी जानना चाहते हैं कि देश के किस गांव कस्बे और शहर में है इनकी 50% आबादी। कोई बताये तो सही......

इस पोस्ट का सार
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बस यही वो गणित है जो ब्राह्मण जानबूझकर देश में हमें बाँटने के लिए जातिवाद तो बनाये रखना चाहते हैं। मगर हमारी आबादी के अनुसार हिस्सेदारी नही देना चाहते। इसी कारण से आज भी हमारा आरक्षण आजादी से पूर्व और 84 साल पहले 1931 में की गयी पहली जतिगत जनगणना पर ही आधारित है।
आजाद भारत की पहली 2011 में की गयी आधी अधूरी आधी आबादी की आर्थिक जातिगत जनगणना के आंकड़े अभी भी उजागर क्यों नही किये जा रहे ?

दोस्तों ज्यों ज्यों देश के दलित, आदिवासी, पिछड़ों में चेतना आ रही है। ब्राह्मण वर्ग की परेशानी भी बढ़ रही है। 1991 के मण्डल आंदोलन के बाद से ही देश में ब्राह्मणों का निर्बाध राजनैतिक वर्चस्व टूट गया है। हम लोगों को थोडा ही सही वोट का महत्व समझ में आने लगा है। हमारे मुखर होने से बिहार, UP, MP, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, गुजरात आदि कई राज्यों से ब्राह्मण वर्ग का राजनैतिक वर्चस्व् कमजोर हो गया है। जिसके कारण 2011 में हमारे (पिछड़े वर्ग) के सहयोग से केंद्र में टिकी मनमोहन सरकार को हमारे लोगों के दबाव के कारण 2011 की जनसंख्या को जातिगत जनगणना आधारित मानना पड़ा। लेकिन दुर्भाग्य से वर्ष 2013 में केंद्र में ब्राह्मण पोषित और हितैषी सरकार के मेजोरिटी में आने से ये आंकड़े आज तक उजागर नही किये जा रहे क्योंकि इन आंकड़ो से ब्राह्मण वर्ग के पैरों से जमीं सरक चुकी है। उन्हें पता लग चूका है कि स्वर्ण वर्ग की कुल आबादी 10% से भी कम रह गयी है। इसलिये वे इन आंकडों को दबाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। कभी गाय के नाम पर तो कभी आरक्षण उन्माद फैलाकर,  धार्मिक तनाव फैलाकर दलितों पर अत्याचार बढ़ाकर इस विषय को दफन करना चाह रहे हैं। संसद का पिछला सत्र भी कांग्रेस और बीजेपी के ब्राह्मणों ने आपसी मिली भगत से हो हुल्लड़ में खत्म करवा दिया। क्योंकि मायावती और लालू यादव इस जनगणना पर सरकार को नंगा करने की ठान चुके थे। लेकिन हमारी गुलामी की बेड़िया तोड़ने के लिए हमें इन आंकडों को हर हल में उजागर करवाना है।

 निष्कर्ष    निचोड़   अपेक्षा

मित्रों यह पोस्ट बहुत ही सरल शब्दों में कालक्रम को जोड़ते हुए मैंने बहुत मेहनत से तैयार की है। लेकिन इसकी सार्थकता तभी पूरी होगी जब आप इसे कम से कम 2 बार पढ़ेंगे और अपने विचारों से अवगत कराएंगे।

#गजानंद जाम
राजस्थान।

Saturday, January 16, 2016

ब्राह्मणों के त्योहारों का सच

ब्राह्मणों के त्योहारों का सच 
1)महाराष्ट्र में गुडीपाडवा त्यौहार का सच!
गुडीपाडवा ये त्यौहार महाराष्ट्र में खासकर मनाया जाता है। लेकिन बहोत सारे मूलनिवासी, obc sc st मराठा समाज ने अब तक इसके पीछे का इतिहास जानने की कभी कोशिशनहीं कि। हालाकि बामसेफ / संभाजी ब्रिगेड ने सच्चा इतिहास बताने का काम शुरू किया है। लेकीन अभी भी बहोत सारे लोगों को इसका ज्ञान नहीं है।
गुडीपाडवा के दिन शिवाजी महाराज के पुत्र संभाजी महाराज को ब्राह्मणों ने औरंगजेब को धोका देके पकडवा़ के दिया था"
और उनको मनुस्मृति के अनुसार सजा दी गयी थि। ब्राह्मणों ने उनका सर काटके भाले पे लटका दीया और उसका जुलूस निकाला. क्यों की उन्होंने बुद्ध भूषण नाम का ग्रन्थ बहोत कम उम्र में लिखा था और ब्राह्मणों की दादागिरी को ललकारा था। बहोत सारे ब्राह्मण चोरो को भी उन्होंने पकडवाके संभाजी महाराज ने सजा भी दि। इसका बदला लेने के लिए ब्रह्मनोने संभाजी महाराज की बदनामी की 
और उनको धोके से मार डाला, वो आज ही के दिन, 
गुडीपाडवा !
कह जाता है के ये त्यौहार श्री राम अयोध्या वापिस आने पर उनके स्वागत के लिए मनाया जाता है, लेकिन जहा श्री राम वापस आये थे उस अयोध्या नगरी में तो कोई गुडीपाडवा ये उत्सव नहीं मनाया जाता? 
तो फिर महाराष्ट्र में ही क्यों? 
क्या मराठा समाज को ये विचार कभी आया है?
जब मराठा लोग एक दूसरों को गुडीपाडवा दिन की बधाई देते है तो हमें बड़ा दुःख होता है 
और उनके अज्ञान पर बड़ा तरस आता है।
औरंगजेब ने संभाजी महाराज कि तऱ्ह आज तक किसी कि भी हत्या नाही कि थी !
महाराज को सरल तरीके से मारणे के बजाय अलग-अलग दंड क्यो दिया? 
सबसे पहले महाराज कि जीवा काटी गयी ! इससे अनुमान लागाया जाता है कि संभाजी महाराज ने संस्कृत भाषा पर प्रभुत्व हासिल किया था ! 
उन्होने चार ग्रंथो कि रचना कि थी, इसलिये सबसे पहले उनकी जीवा काटने कि ब्राह्मनोने सलाह दि ! 
उसके बाद महाराज के कान,नाक आंखे और चमडी निकाली गयी ! 
यह घीनौना दंड "मनुस्मृती" संहिता के अनुसार दिया गया !
मतलब औरंगजेब के माध्यम से ब्राह्मनोने संभाजी महाराज को यह दंड दिया !
कवी कुलेश को भी औरंगजेब ने जिंदा नाही छोडा ! क्योंकी अपनी जान से भी ज्यादा चाहनेवाले संभाजी महाराज जैसे स्वाभिमानी ,निर्मल और चाहिते दोस्त के साथ यदि कुलेश गद्दारी कर सकता है,तो वह हमारे साथ भी गद्दारी कर सकता है,इस बात को सोचते हुये औरंगजेब ने कुलेश कि भी जान ले ली ! औरंगजेब ने अपने सगे भाई तथा चाहिते सरदार दिलेरखान ,मिर्झाराजे ,जयसिंग इन वफादार सर्दारो को भी मार डाला! इसलिये मदत करनेवाले कवी कुलेश को जिंदा रखना औरंगजेब को संभाव नहि था ! क्योंकी औरंगजेब ने कवी कुलेश को उसके काम कि पुरी किमत अदा कि थी !
औरंगजेब ने संभाजी महाराज को राजनीतिक संघर्ष कि वजह से मारा !
औरंगजेब ने संभाजी महाराज को केवळ दो सवाल पूछे ! पहला सवाल ,'आपके खजाने कि चाबिया कहा है?
' और दुसरा सवाल था ,'हमारे सर्दारोमे आपकी मुख् बिरी करणेवाला सरदार कौन है?' 
इसका मतलब औरंगजेब ने संभाजी महाराज को धर्मांतरण करणे का आग्रह नाही किया और ना हि संभाजी महाराज ने इसके बदले मे औरंगजेब के सामने उसकी लडकी कि मांग रखी ! 
संभाजी महाराज कि हत्या के पाश्च्यात ब्राह्मनोने जल्लोष के तौर पर " गुडीपाडवा ' शुरू कीया.
यही सचाइ है....
२)हनुमान का सच 
 देश में उसकी जयंती मनाई जा रही है जिसके बारे में कहा जाता है वो हवा में उड़ सकता था सूर्य को निगल सकता था।मतलब पृथ्वी के ऑर्बिट से बाहर जा सकता था और आ सकता था।विज्ञान कहता है किसी वस्तु को 11.2 km/s मतलब 40320 किलोमीटर प्रति घण्टा के रफ़्तार से फेंकने पर ही वह वस्तु अंतरिक्ष में चली जायेगी। -185 ℃ के लिक्विड ऑक्सीजन को क्रोयोजेनिक इंजन में विस्फोट कर अंतरिक्ष यान को इससे भी ज्यादा गति से धक्का दिया जाता है।तब कोई यान अंतरिक्ष में जा पाता है।
वैज्ञानिक यह भी सिध्द कर चुके है भूमध्य रेखा किसी अंतरिक्ष यान को प्रक्षेपित करने के लिए आदर्श स्थान है क्योकि भूमध्य रेखा में पृथ्वी की गति 1670 किलोमीटर/घण्टा होने से अंतरिक्ष यान को 500 किलोमीटर/घण्टा की अतिरिक्त गति प्राप्त होती है भूमध्य रेखा के नजदीक होने के कारण ही भारत में थुम्बा को अंतरिक्ष यान प्रक्षेपण के लिए चुना गया है।भारत की सीमा भूमध्य रेखा से 8°4 N में आरम्भ होती है।पर ऐसा कोई भी प्राचीन प्रक्षेपण केंद्र के अवशेस भारत और विश्व में कही प्राप्त नही हुआ है ना धर्म गर्न्थो में किसी टेक्नालाजी का वर्णन है जिससे वो उड़ते थे,उनका प्रक्षेपण केंद्र किस स्थान पर था इसका कही उल्लेख नही है।।
ये तो हो गया लांचिंग स्टेशन और स्पीड का गणित अब नजर डालते है टेम्प्रेचर और आकार पर।
15 मिलियन ℃ डिग्री केंद्र के ताप, 5500 ℃ अँधेरे हिस्से के ताप और 4320℃ बाहरी ताप वाले एवं पृथ्वी की त्रिज्या (40000 किलोमीटर) से 17.5 गुना बड़े (700000 किलोमीटर) सूर्य को निगले थे ऐसा कहा जाता है।पृथ्वी में कुल सूर्य ऊर्जा का मात्र 0.000000724654% पहुंचने पर अप्रैल महीने में ये हाल है।48℃ में चिड़िया मरने लगती है,50℃ रिस्ट वाच काम करना बन्द कर देती है,हम डी हाइड्रेशन के शिकार होने लगते है।विज्ञान अभी तक 1000℃ तक क्षमता वाले फायर प्रूफ जैकेट का निर्माण कर पायाहै। उधर पृथ्वी से 6000 किलोमीटर दूर में तापमान 258°F से 158°F में झूलते रहने, हवा को कोई दबाव नही होने , आक्सीजन की अनुपलब्धता, ध्वनि के आवागमन का साधन नही होने के कारण जीवन असम्भव हो जाता है।
उधर बिना आक्सीजन के 15 करोड़ किलोमीटर दूर पहुंचकर सूर्य को निगलते थे? पता नही कौन सा फायर प्रूफ जैकेट पहन कर उड़ते थे? पता नही 4320℃ तापमान को कैसे बर्दाश्त करते रहे होंगे? उनके पास कौन सा तापमान प्रूफ पोशाक रहा होगा ? 700000 किलोमीटर त्रिज्या वाले सूर्य को निगलने के किये अपने मुंह कितना बड़ा करते रहे होंगे? और उतने बड़े सिर को सम्भालने अपने पैरो को कहाँ स्थिर करते होंगे?
खैर आप लोग ज्यादा सोचो मत दिमाग का दही बन जाएगा .
3)गणपति का सच 
🌹🔥~गणपती का रहस्य~🔥🌹
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~~बुद्ध का मतलब ही अष्टविनायक है~~
पोस्ट जरा बड़ी है लेकिन आँखे खोलकर पढ़े...
🌹~लोकशाही व्यवस्था में देश का प्रमुख "राष्ट्रपति" होता है, उसी प्रकार प्राचीन भारत में गण व्यवस्था होती थी और उस गण व्यवस्था का प्रमुख "गणपति" होता था.
~~~"गणपति बाप्पा मोरया" अर्थात ~~~
मौर्य राजाओ में गणपती ~"चन्द्रगुप्त मोरया"~~~
🌹~:मूलनिवासी मौर्य राजाओ की सूचि :~ 🌹
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मूलनिवासी मौर्य राजाओं का कार्यकाल ई.पू.
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👇👇 👇👇
🌹1~चन्द्रगुप्त मौर्य 323~299 ई.पू.
🌹2~बिन्दुसार 299~274 ई.पू.
🌹3~सम्राट अशोक 274~138 ई.पू.
🌹4~कृंणाल मौर्य। 238~231 ई.पू.
🌹5~दशरथ मौर्य 231~223 ई.पू.
🌹6~सम्प्रति मौर्य 223~215 ई.पू.
🌹7~शाली शुक्त 215~203 ई.पू.
🌹8~देव वर्मा मौर्य 203~196 ई.पू.
🌹9~सत्यधनु मौर्य 196~190 ई.पू.
🌹10~बृहद्रथ मौर्य 190~184 ई.पू.
🌹~और इस मौर्य शासन से पहले प्राचीन भारत में एक राजघराणे में "सिद्धार्थ गौतम" नामक राजकुमार का जन्म हुआ। वही आगे चल कर "शाक्य गण "का प्रमुख हुआ. कालांतर में सिद्धार्थ ने बुद्द्धत्व प्राप्त किया ....।
🌹~अब सच्चे गणपति और काल्पनिक गणपति के बिच में का फरक समझ लेते है... 👇👇
🌹~कूछ चालाक ब्राहमणों ने सच्चे गणपति को काल्पनिक गणपति बनाया। शाक्य गण का प्रमुख इस नाते से लोग "बुद्ध "को गण का पति अर्थात गणपति कहने लगे थे। उसी प्रकार-
🌹~जब बुद्ध लोगों को धर्म का सन्देश देते थे तब उनके संदेशों में दो शब्दों का मुलभुत रूप से उल्लेख होता था, वे शब्द है,
1~" चित्त " और 2 ~" मल्ल "
🌹~चित्त याने शरीर (मन) और मल्ल याने मल (अशुद्धी). तुम्हारे शरीर व मन से मल निकाल देने पर तुम शुद्ध हो जाओगे और दुःख से मुक्त हो जाओगे, ऐसा बुद्ध कहते थे. इसी संकल्पना को विकृत कर ब्राह्मणों ने काल्पनिक पार्वती के शरीर से मल निकालकर एक बालक (अर्थात गणपति) के जन्म की कहानी को प्रसुत किया।
🌹~ गौतम बुद्ध नागवंशी थे। पाली भाषा में "नाग "का अर्थ "हाथी "होता है. अर्थात बुद्ध यह हाथी वंश के थे .... इसलिए इस नए जन्मे बालक (सिद्धार्थ) को हाथी के स्वरुप में बताया गया है।
🌹~ अर्थात, हाथी यह बुद्ध के जन्म का प्रतिक है और हाथी बौद्ध धर्म का भी प्रतिक है। इस सत्य को छुपाने के लिए, ब्राहमणों ने काल्पनिक पार्वती के काल्पनिक पुत्र को हाथी की गर्दन लगाई, किसी अन्य प्राणी जैसे शेर, बैल, घोडा, चूहा की गर्दन नहीं लगाईं......!!!
🌹~ " अष्टविनायक का सत्य "👇
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🌹~ जगत में दुःख है, यह बात दुनिया में सबसे पहले बताने वाला बुद्ध ही था और दुःख को दूर कर सुखी होने के लिए अष्टांगिक मार्ग भी बुद्ध ने ही बताया. "अष्टांगिक" मार्ग का अवलम्ब करने से दुःख नष्ट होता है यह बुद्ध ने सिद्ध कर दिखाया। यह आठ नियम या सिद्धांत विनय से सम्बंधित है. इसलिए, बुद्ध को 'विनायक' कहा गया और " आठ मार्गो " पर विनयशील होने से "अष्टविनायक "भी बुद्ध को ही कहा गया. 
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🌹~ अर्थात, अष्टांगिक मार्ग से अष्टविनायक होकर दुःख को नष्ट कर सुख की प्राप्ति करवाने वाला बुद्ध था. इसलिए, बुद्ध को लोग 'सुखकर्ता और दुखहर्ता' कहने लगे.
🌹~ इस सत्य को दबाने के लिए ब्राहमणों ने काल्पनिक गणपति को अष्टविनायक भी कहा और सुखकर्ता दुखहर्ता भी कहा।
इसका मतलब यह है की, गणपति दूसरा तीसरा कोई नहीं है, बल्कि, तथागत बुद्ध ही गणपती है। ब्राहमणों ने बुद्ध अस्तित्व को नष्ट करने के लिए काल्पनिक गणपति का निर्माण किया। यह करते समय उन्होंने कई गलतियां की, जिससे ब्राहमणों की बदमाशी उजागर होती है। वे गलतियां इस प्रकार है-
(१) 🌹~ शिव शंकर जब देवों का देव है, तो उसे गणपति का सर धड से अलग करते समय यह पता क्यों नहीं चला कि वह उसका ही पुत्र है?
(२) 🌹~ जब गणपति देव था, तो उसे यह कैसे पता नहीं चला की, जिसे वह रोक रहा है वह उसका ही बाप है?
(३) 🌹~ शंकर को यह कैसे पता नहीं चला की उसकी बीवी गर्भवती है?
(४) 🌹~ अगर पार्वती शरीर के मैल से बालक बना सकती है, तो वह उसी मैल से बालक का सर क्यों नहीं बना पाई?
(५) 🌹~ खैर ये कहे की पार्वती नहा कर आई थी। लेकिन, जीवन मृत्यु का शाप वरदान देने वाले शंकर की शक्ति कहाँ गई थी ? शंकर ने एक निष्पाप हाथी की जान क्यों ली ?
(६) 🌹~ और ये सोचे की क्या किसी छोटे से (बालक) की गर्दन में हाथी का सिर फिट कैसे बैठ गया ?
(७) 🌹~ आगे कृतयुग में गणपति का वाहन सिंह था और उसे १० हाथ थे।
👉त्रेतायुग में उसका वाहन मोर और छे हात थे।
👉~ द्वापारयुग में उसका वाहन मूषक अर्थात चूहा और चार हात थे..
अगर अलग अलग युग में वह हाथ और शरीर कम ज्यादा कर सकता था तो उसने खुद के सर का निर्माण क्यों नहीं किया ?
(७) 🌹~ प्राणी हत्या से जन्मे गणपति को सुखकर्ता, दुखहर्ता कैसे कहा जा सकता है ?
(८) 🌹~ "शिव पुराण "के अनुसार पार्वती ने बनाए मल के गोले पर गंगा का पानी गिरा और गणपति का जन्म हुआ .......
~ ब्रम्हवैवर्त पुराण ने तो कहर ही कर दिया !!!👇
🌹~पार्वती वह गोला ब्रह्मदेव के पास ले जाती है और उसे जिन्दा करने के लिए विनती करती है, तब उसपर ब्रम्हदेव अपने विर्य का छिडकाव करता है और उसे गोले का गणपति बनता है....
🌹~ अब प्रश्न यह है कि, गणपती शंकर का पुत्र था या ब्रम्हदेव का...?
(९) 🌹~ गणपती विवाहित है, ऋद्धी और सिद्धी यह ब्रम्हदेव की दोनों लड़कियां उसकी दो पत्नियाँ है। अर्थात, ब्रम्हदेव के विर्य से जन्म लेने पर गणपती ने अपनी ही बहनों के साथ शादी क्यों किया ..?
(१०)🌹~ "सौगन्धि का परिणय" इस संगीत सूत्र के तीसरे अध्याय में गणपति का उल्लेख काम वासना के असुरों में से छठवां असुर ऐसा उल्लेख है ...
🌹~ आगे चन्द्रगुप्त मोर्य यह मोर्य वन्श का गणपति हुआ इसलिए ब्राहमणों ने "गणपति बाप्पा मोरया" ऐसी घोषणाएँ दि ...... मोर्या शब्द के बारे में ब्राहमणों के इतिहास में कोई उत्तर नहीं ....... कर्नाटक में चन्द्रगुप्त मोर्य ने जैन धर्म का प्रचार किया था। इसलिए उस क्षेत्र में कई लोग खुद के नाम के आगे मोरया नाम लगाते थे। .... महाराष्ट्र में मोरे सरनेम भी मोर्य वंश का ही अपभ्रंश है ...... संत तुकाराम यह मोरे थे....इस सत्य को छुपाने के लिए ब्राह्मणों ने यह अफवा फैलाई की १४ वी सदी में एक मोरया नामक गोसवि हुआ और उसके नाम पर से मोरया शब्द गणपती से जुड़ गया! ब्राह्मण लोग भी झूठ की हद कर देते हैं!!
🌹~ तुकाराम महाराज और शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की हत्या करने के बाद ब्राह्मणों ने शिवशाही को पेशवाई में बदल डाला ... और....बौद्ध लेणी (गुफाओं) और विहारो की जगहे काबिज क़र वहां पर काल्पनिक देवी देवता बिठाना शुरू किया ....... कार्ला की बुद्ध लेणी में बुद्ध माता महामाया को ब्राह्मणी एकविरा देवी का स्वरुप दिया, जुन्नर के लेन्याद्रि बुद्ध लेणी में गणपति बिठाकर उसे काल्पनिक अष्टविनायक गणपती का प्रमुख स्थल बता दिया, शेलारवाडी, पुणे की लेणी में शिवलिंग बिठाकर कब्जा किया ..........
कारण...
🌹~ सच्चा इतिहास यह है कि, संपूर्ण प्राचीन भारत बौद्धमय था. अशोक सम्राट ने बुद्ध के बाद सारे भारत को बौद्धमय बनाया था. लेकिन ब्राम्हण समाज ने अशोक के वंश को ख़तम कर बौद्ध धर्म में विचार और इतिहास की मिलावट की और 33 करोड़ देवताओं को जन्म दिया.
🌹~इस भारत देश में वास्तव में शाक्य गण के गणपति हो गए, उसी गणपति शब्द का ब्राह्मणों ने ब्राम्हनिकरण करके समाज में झूठे गणपती को जन्म दिया.
🌹~और इस झूठे काल्पनिक गणपती के नामपर सम्पूर्ण समाज को अन्ध्श्रद्दा में डूबो दिया. और त्यौहार उत्सव के नामपर ब्राहमणों ने समाज से धन दौलत लूटना सुरु कर दिया.
🌹~शिवाजी महाराज महाराष्ट्र के कूर्मि अर्थात मराठा (शुद्र) मूलनिवासी राजा थे । शिवाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों ने ज़हर दे कर कर दी, जिसका बदला संभाजी महाराज ने उन ब्राह्मणों को हाथी के पैर के निचे कूचलवा कर मार कर लिया था। इससे आहत होकर ब्राह्मणों ने धोके से संभाजी महाराज को औरंगज़ेब के हाथों में पकड़वा दिया और बाद में मनुस्मृति के मुताबिक जीभ-सर कटवा कर उन्हें मार डाला।उस दिन ब्राह्मणों ने उनके पेशवा राज्य में उत्सव स्वरूप शक्कर बाटकर उस दिन को गुढीपाडवा नाम दिया । इस तरह ब्राह्मणों ने शिवाजी और संभाजी महाराज दोनों का क़त्ल किया ।
🌹~शिवाजी महाराज के मृत्यु के बाद महात्मा ज्योतिराव फूले ने रायगढ़ में उनकी समाधी ढूंढ़ निकाली थी और जून 1869 में शिवाजी महाराज के मान में " पेवाडा "लिखा। महात्मा ज्योतिराव फूले ने 1874 में महाराष्ट्र के बहुजनो के लिए पहली बार शिवाजी जयंती (शिव जयंती) मनाई। बहुबहुजनो को जागृत करने के लिए फुलेजी ने शिवजयंती उत्सव हर साल दस दिन तक मनाना चालू किया।
🌹 महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिराव फूले द्वारा बहुजन शद्रो~अतिशूद्रों (sc~st~obc) में "शिव जयंती "के प्रभाव और जाग्रति के कारण ब्राह्मण डरने लगे। इसलिए, रत्नागिरी (महाराष्ट्र) के बाल गंगाधर तिलक नामक कट्टर ब्राह्मण ने "शिव जयंती" से बहुजनो में बढ़ते जाग्रति और प्रभाव को ख़त्म करने के लिए सन् 1893-94 में गणपति महोत्सव का सार्वजानिक आयोजन किया ।
👉क्या 1893~94 से पहले महाराष्ट्र में गणोंत्सव मनाया जाता था.....??? बिलकुल नहीं!!!
~~ इसका कोई भी प्रमाण उपलब्ध नहीं है .....!!!!
👉ब्राह्मणों के मुताबिक भगवान् शंकर का ठिकाना हिमालय मे उत्तर भारत के आसपास है, तो उन्होंने गणेश (शंकर पुत्र) को महाराष्ट्र में ज्यादा प्रचलित क्यों कारवाया....उत्तर भारत में क्यों नहीं .......?
🌹~इसका मुख्य कारण यह है कि, शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों ने की थी। इस बात का ब्राह्मणों को डर था की, अगर इस तथ्य का पता बहुजनो चलेंगा तो ब्राह्मणों का अंत निश्चित् है ।इसलिए, ब्राह्मणों ने महाराष्ट्र में महात्मा ज्योतिबा फूले के शिव जयंती उत्सव से जागृत हो रहेे बहुजन शुद्रो को शिवाजी व संभाजी महाराज की हत्या ब्राह्मणों द्वारा हुई है, यह पता ना चले, इसके लिए, उनका ध्यान डाइवर्ट करने के हेतु उन्होंने "शिवजयंती" महोत्सव के विरोध में गणपति महोत्सव को महाराष्ट्रा में सार्वजनिक किया ।
४)क्या है छठ की पूजा ? 💀
👉छठ पूजा की सच्चाई जाने बिना अज्ञानी, अंध विश्वासी बिहारी लोग इसे धूम धूमधाम से मनाते हैं. 
👉तथा धीरे-धीरे वोट के लिये राजनीतिज्ञों द्वारा पूरे देश में ये फैलाया जा रहा है. 
👉ब्राह्मण किस तरह से भोले भाले अंजान लोगों को बेवकूफ बना सकता है, ये एक वर्तमान उदाहरण है. 
👉असल में तथाकथित छठ माता, महाभारत के एक चरित्र कुंती की प्रतीक है जो कुंवारी होते हुये भी सूरज नाम के व्यक्ति से शादी के पहले के सम्बन्ध से प्रेग्नेंट(पेट से) हो जाती है। 
👉 सच ये है की, खुद प्रेग्नेंट है इस बात की कुंती को समझने में देरी हो जाने से, कर्ण नाम का पुत्र पैदा करती है। 
👉 महाभारत की इस घटना ( सूर्य से वरदान वाली जूठी कहानी) को इस दिन मंचित किया जाता है. जो परम्परा का रुप ले लिया है. 
👉शुरू में केवल वो औरतें जिनको बच्चा नहीं होता था, वही छठ मनाती थी तथा कुंवारी लड़कियां नहीं मना सकती थीं क्योंकि इसमे औरत को बिना पेटिकोट ब्लाउज के ऐसी पतली साड़ी पहननी पड़ती है जो पानी में भीगने पर शरीर से चिपक जाय तथा पूरा शरीर सूरज को दिखायी दे जिससे कि वो आसानी से बच्चा पैदा करने का उपक्रम कर सके. 
👉सूरज को औरतों द्वारा अर्घ देना उसको अपने पास बुलाने की प्रक्रिया है जिससे उस औरत को बच्चा हो सके. 
👉ये अंधविश्वास और अनीति की पराकाष्ठा है कि आज इसको त्योहार का रुप दे दिया गया है तथा आज कल अज्ञानी एवं अंध विश्वासी आदमी तथा कुंवारी लड़कियां भी इस भीड़ में शामिल हो गये हैं. 
👉ज्ञात हो कि ये बीमारी बिहार से सटे यू पी के जिलों में भी बड़ी तेजी से फैल रही है।
👉आशा है कि इस पोस्ट को पढ़ने के बाद देश कि औरते इस बीमारी का शिकार होने से बचेगी।
5)★महाशिवरात्रि का रहस्य★
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▼-क्या कारण हे कि ब्राह्मणी ग्रन्थों में और चित्रकारों की चित्रकारी में भगवान् शिव का रंग काला, उसके रहने का ठिकाना श्मशान घाट और गहनों के रूप में गले में सांप लटकते दिखाए जाते रहे हे, जबकि ब्रह्मा व् विष्णु के रंग गोरे निवास के लिए भव्य भवन और हीरे मोती से जडित स्वर्ण आभूषण, ऐसा क्यों ?
▼-क्या कारण है की शिव की पूजा लिंग के रूप में की जाती है ?
▼-क्या कारण है की 'शिव' को "वैश्यानाथ","केदारनाथ(कीचड़ के देवता)","भूतनाथ",भोलेनाथ" आदि-आदि अपमानित नामों की संज्ञा दी गयी है ? 
▼-क्या कारण है की पुराण-कथाओं में असुरों और राक्षसों द्वारा केवल शिव की पूजा का ही वर्णन मिलता हैं,अन्य देवी-देवताओं का नहीं ?
▼-क्या कारण है की शिव से चले 'शैव' और वैष्णव से चले 'वैष्णव-सम्प्रदाय' में बहुत अंतर है ? 
▼-क्या कारण है की 'शैवपंथ' का अनुसरण करने वाले जोगी/योगी (योगीराज), जो योगाभ्यास में विश्वास रखते हैं, जबकि वैष्णव-पंथी कर्म-कांडों और मूर्ति-पूजा में ? 
▼-हम पढ़ते आये है की "सत्यम-शिवम्-सुन्दरम्" अर्थात सत्य ही शिव है और शिव ही सत्य है |
साथ ही 'शिव' को संहारक देव क्यों माना गया है ?
▼-पुराण-कथाओं में प्रायः देवताओं के किसी संकट के निवारण हेतु अन्य देवगण (विष्णुओं) स्वयं शिव के पास जाते हैं; जबकि शिव कभी 'विष्णु' और 'ब्रह्मा' के पास नहीं जाते है, क्यों ?
▼- आदिवासी और हिन्दू धर्म में पिछड़ेवर्ग के लोग अधिकांशतः 'शिवोपासना' ही क्यों करते है ?
इन प्रश्नों से ऐसा लगता है की :-
★★ कही 'शिव' 'अनार्य' वर्ग के महापुरुष/शासक तो नही ?
★काफी समय पहिले हमारे (मूलनिवासियों) के गौरवशाली इतिहास पर 'एक शोध ग्रन्थ 'भाई सतनामजी' द्वारा लिखित में यह दर्शाया गया हे कि शिव का नंदी और कोई नही, बल्कि यह वही चमर पशु (याक) हे जो हिमालय के उपरी हिस्से में पाया जाता हे जो खेती के लिए, बोझा ढोने, पहाड़ों पर यात्रा और इनके बालों के लिए उपयोग में लिया जाता हे, इतना ही नही इसके पूंछ के बाल ही चंवर ढूलाने के काम में लिया जाता हे | इसी को ब्राह्मणी साहित्य कारों ने कारिस्तानी पूर्वक नंदी के रूप में प्रचारित कर दिया वरना चमर पशु का सीधा संबध चमारद्वीप की संस्कृति से हे और हिमालय के उपरी हिस्से पर आज भी पाया जानेवाला यह पशु वाहन के दलितों, आदिवासिओं और पिछड़े-समुदायों की आजीविका का मूलसाधन हे | 
इस प्रकार निश्चयात्मक ढंग से इस बात को बल मिलता है की 'शिव' अनार्यों के आदि-शासक हैं | निसंदेह यह भी तय हे कि 'अनार्य' संस्कृति की नीव पर ही 'ब्राह्मणी' संस्कृति का महल खड़ा हे |
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'अन्य सण पर्व व देवी-देवताओं के मिथकों की तरह राजा 'शंकर' के बारे में भी गहरा व ऐतिहासिक रहस्य छुपा हुआ है |
कुटिल आर्यों (ब्राम्हणों) के गलत प्रचार के कारण भारतीय मूलनिवासी अपने पुरखों का संघर्ष,रक्षक, महापुरुष एवं संस्कृति भुलाकर आर्यों के जाल और षड्यंत्र में फंस गया |
'महा'....'शिव'..... 'रात्री'|
▼-"महा" यानि 'बड़ा, विशाल.' |
"शिव" यानि (अच्छा,सुन्दर राज्य करने वाला शंकर ही शिव)
'शंकर'....रात्री यानि दिन के बाद अंधकार समय काली रात |
'शंकर' राजा कृषिप्रधान भारतीय संस्कृति का प्रजाहितकारी राजा (शंकर) था. उसे तीसरी आँख,चार हाथ नहीं थे.वे प्रायः ध्यानस्थ एक जगह बैठते थे, जैसा की बौद्ध-धम्म के 'गौतम-बुद्ध' की ध्यानावस्थित मुद्रा है |
घुसपेठी आर्य (ब्राहमण) जम्बूद्वीप भारत में आकर अपना वैदिक षड्यंत्र फ़ैलाने का लगातार प्रयास करते थे | यह जानकारी प्रशासन के गुप्तचर विभाग द्वारा शंकर राजा को हर वक्त मिलती थी.इसी कारण आर्यों को धर पकड़ कर उनके गलत कार्य पर दंडित किया जाता था .एक बार शंकरौर विष्णु आर्य ब्राम्हण के बीच आमने-सामने लड़ाई हो गई थी, तब विष्णु खून से लतपथ होकर हारकर भाग गया था |
'शंकर' राजा की बलाढ्य शक्ति का उसे पता लग गया था |
'शंकर-राजा' का राजपाट चलाने में देखरेख में रानी 'गिरिजा' का बहुत बड़ा सक्रीय योगदान था | 
जब गिरिजा नहीं रही तो अचानक युवा अवस्था में यह दुखित घटना होने के कारण शंकर राजा कुछ खास दिन एकांतवास में वैराग्यपूर्ण अवस्था में रहने लगे |
राजा के व्यक्तिगत जीवन पर नजर रखकर मौकापरस्ती आर्यों ने दक्ष नाम के 'आर्य-ब्राहमण' की लड़की 'पार्वती' को प्रशिक्षण देकर, 'शंकर' की हर बात की जानकारी देकर षड़यंत्र पूर्वक शंकर के करीब पहुंचा दिया गया |
इस प्रकार 'राजा शंकर' की दूसरी पत्नी बनने का अवसर आर्यपुत्री 'पार्वती' को मिला, जिस हेतु जो नियोजन आर्यों ने तैयार किया था, उनको अब शत-प्रतिशत कामयाबी मिलने वाली थी | आर्यों ने ही भारत में पावरफुल नशा का स्त्रोत 'सूरा' प्रथमतः लाया | पार्वती ने अपने साथ 'शंकर' राजा को भी नशीला बनाया; जिस रात 'चौरागढ़' पर पूर्व नियोजन के अनुसार शंकर राजा की हत्या की गयी |
इस दिन को यादगार के तौर पर राजाप्रिय प्रजा हजारो के तादाद में शंकर राजा का जीवन समंध बातो का उल्लेख करते हुये गीत गायन करते हुये, बिना चप्पल हाथ में एक शस्त्र (त्रिशूल) लेकर 'चौरागढ' पर इक्कठा होते थे; यही परंपरा आगे चलती रही |
★एक गीत ऐसा भी ...
"एक नामक कवड़ा 'गिरिजा-शंकर' हर बोला हर हर महादेव |" 
त्रिशूल नहीं वो त्रिशुट है.....अर्थात क्रूर आर्य क्रूर हुन हुन क्रूर
शक इनको निशाना बनाकर सदैव रहना |
★शंकर-महादेव, बड़ादेव,भोला शंकर कैसा ???
-सारे भारत में आर्यों (ब्राम्हण) का वर्चस्व प्रस्थापित होने के बाद आर्य ब्राम्हणों ने अपना उक्त घटना और इनके नायक का ब्राहमणीकरण कर व्यक्ति मात्र में इन्हें देव-देवी संबोधित कर जनमानस में मान्यताकृत कर दिया | भारतीय लोग अब 'शंकर-राजा' का ऐतिहासिक गुणगान करने लगे थे |
मगर इस बात से आर्यों का भंडाफोड़ बार बार होता था | 
इस डर के कारण मझबूरन अपने स्वार्थ के लिए शंकर राजा के आर्य ब्राहमण इंद्र, ब्रह्मा, और विष्णु के साथ 'महेश' (शंकर,बद्यादेव, महादेव) का भी संबोधन जोड़ देते हैं |
यह इतिहास ई.पूर्व से प्राचीन भाग है |
★क्या शंकर राजा की अन्य विकृति थी ?
-शंकर राजा को तीसरी आँख नहीं थी, बल्कि वे तर्कशास्त्र व 'योग' के ज्ञाता थे | 
इस कारण उसी के ज़माने से भारत में पहाड़ियों पर भी कृषि होती थी .पानी रोक कर सालभर इस्तेमाल होता था. यही भाग शंकर राजा के मुंडी में गंगा की धार बताई गयी | उनके कोई चार हाथ नहीं थे, वो कोई भी नशा नहीं करते थे बल्कि वे 'असुर' अर्थात- अ+सुर = सोमरस, दारू, सूरा न पीने वाले बल्कि दूध व शाकाहारी भोजन करने वाले थे | 
'शंकर-राजा' शरीर से एकदम बलाढ्य, ऊँचा, भरा-पूरा, प्रभावी, व आकर्षक व्यक्ति मतवाला राजा था | (शंकर राजा के अन्य प्रचलित नाम :- कैलाशपति, नीलकंठ,शिव,भोला,जटाधारी आदि-आदि |
★विष :-(विष-कन्या 'पार्वती' की काली करतुत) :-
आज वर्तमान में एक फोटो प्रचलित है, जिसमे शंकर राजा जमीन पर मरे पड़े हैं और उसके ऊपर एक चार हाथ वाली स्त्री खड़ीं हैं |
इसी चित्र में गहरा रहस्य छुपा हुआ है | विदेशी आर्य ब्राहमण बनाम मूलनिवासी वीर रक्षक संघर्ष का लेखा-जोखा :- प्राचीन ग्रंथ शिव महापुराण,विष्णु महापुराण, मार्कंडेयपुराण, मत्स्य पुराण, आदि में 'काली' के संदर्भ मिलते हैं |
सत्यशोधक संशोधन रिसर्च करने पर सच्चाई इस प्रकार सामने आती हैं | आर्यों ब्राम्हणों के प्रमुख बदमाशों की बदमाशी रचित हत्याकांडो की असलियत छुपाने कई बार हर ग्रंथो में कपोकल्पित कहानियां नए-नए पात्र जोड़कर आर्यों ने खुद को देव-देवी का स्थान देकर इतिहास का विकृतीकरण, ब्राह्मणीकरण किया है |
★दक्ष आर्य ब्राहमण की प्रशिक्षित बेटी पार्वती की काली करतूत :-
शंकर राजा की हत्या छुपाने झूठी कहावत प्रचलन में लाई गई जो इस प्रकार है :- 
'एक बार राक्षस के रूप में राजा शंकर आया और वो देव लोगों का नरसंहार करने लगा तब स्वर्ग लोक से काली देवी प्रगट हुई और उसने शंकर राक्षस (रक्षक) की और साथियों की हत्या कर दी ,उनके हाथ और मुंडी काटकर अपने बदन पर लटका दिये | इस प्रकार की कहानी प्रचारित कर आर्यों-ब्राहमणों ने एक ऐतिहासिक विकृति पैदा की है |
जबकि इसमें सच्चाई यह है, की शंकर राजा की 'स्वजातीय' (नागगोड) पत्नी 'गिरिजा' के मरने के बाद आर्य ब्राहमणों ने दक्ष आर्य की बेटी राजा शंकर के पीछे लगा दी | जिस उद्देश के लिए 'पार्वती' शंकर के जीवन में आई वह उद्देश जिस काली रात को पूर्ण हुआ वह "महाशिवरात्री" के रूप में प्रचलित हुई |
आर्य 'ब्राहमण' पुत्री पार्वती ने न्यायप्रिय कृषिप्रधान गणराज्य का शंकर राजा के साथ काली करतूत की वो ही प्रसंग छुपाने मूलनिवासियों को हजारो साल सच्चाई से दूर रखने के लिए और एक देवी चार हाथ वाली काली देवी प्रचलन में लाई गयी |
विदेशी आर्य ब्राहमणों की टीम और आर्य-पुत्री 'पार्वती' का रचित षड्यंत्र, शंकर राजा का हत्याकांड पर पर्दा डालने के लिए यह सब किया गया | जिस काली रात को पार्वती ने शंकर राजा की हत्या करने के लिए काली करतूत की वो ही दिन 'महाशिवरात्री' के रूप में प्रचलित हुआ | इस घटना को लक्ष्य बनाकर आर्य ब्राहमणों ने 'काली' शब्द पकड़कर रखा | मगर यह एक गहरा रहस्य अब हमें गहराई से समझना होगा |
★रानी गिरिजा का आर्य विरुद्ध संग्राम :-
-'नाग-गोड़ी' संस्कृति का राजा 'शंकर' इनकी पत्नी रानी गिरिजा थी, जिन्हें 'काली' माता ऐसा भी नाम प्रचलित किया है | रानी गिरिजा भी महायुद्ध करने निकली और विदेशी आर्यों का नाश किया | 
रानी की यह वीरता 'मूलनिवासियों' द्वारा सावधानी और अभिमानपूर्वक अपनी संस्कृति द्वारा जपा हुआ है | काली गिरिजा के चित्र और मूर्ति आज भी देखने को मिलती है. रानी गिरिजा के गले में शेंडिधारी विदेशी आर्यों के सरो(धड़) की मालायें (हार) और कंबर में विदेशी आर्यों की उंगलियां और हाथ सजाये हुये दिखती हैं |
★गिरिजा का खून :-
-शंकर के विंनती से गिरिजा(काली) ने युद्ध बंद किया. विदेशी आर्यों ने युद्ध बंदी (करार) के बहाने दिखावा करके नियोजनबद्ध षड्यंत्र रचा | आर्यकन्या पार्वती का विवाह शंकर के साथ रचाया गया. आर्य कन्या पार्वती ने शंकर की मर्जी संपादन करके रानी गिरिजा को अकेले गिराया | 
आर्यों ने शंकर-गिरिजा को पति-पत्नी का गैरसम्बन्ध करके विकृत बीज 'पार्वती' के माध्यम से बोने की शुरुआत की ताकि आर्यों के षड़यंत्र शंकर पहचान नहीं सके | इसीलिए ब्राहमण आर्यों ने मूलनिवासी 'शंकर' को "भोला-शंकर" नाम दिया |
★शंकर का खून अर्थात "महाशिवरात्रि"★
-पुराण में समुद्र मंथन की एक कहानी प्रसिद्ध है जिसके अंतर्गत देव-दानवों अर्थात मूलनिवासी v/s आर्यो (सूर-असुरों) ने मिलकर समुद्र मंथन किया, तब 'मन्दार' पर्वत को मथने का आधार बनाया और घुसने के लिए 'शेषनाग' (प्राचीन नागवंशी रूपी) की रस्सी का उपयोग किया |
इस कारण पृथ्वी हिलने लगी. इससे पृथ्वी पर मानव भयभीत हुये और लोगों को लगने लगा की अब
पृथ्वी का प्रलय निश्चित होगा,तब पृथ्वी को बचाने के लिए विष्णु ने कुर्मावतार (कश्यप) यानि (कछुवा) धारण करके पृथ्वी अपने पीठ पर उठाई.समुद्र मंथन चालू रहने पर उस समुद्र मंथन से 14रत्न बाहर निकले. उन रत्नों में से एक रत्न जहर (विष) भी था | पुराणानुसार इस 'विष' के कारण पृथ्वी का नाश निश्चित था | पृथ्वी को बचाने के लिए वह विष (जहर) पीना आवश्यक था; अतः जहर पीने के लिए कोई 'आर्य-देव' सामने नहीं आया, तब 'शिव-शंकर' ने वह विष ग्रहण करके पृथ्वी को बचाया; ऐसी कहानी प्रचलित है |
मूलनिवासियों को यह सत्यता पता नहीं चले इसीलिए ब्राह्मणों ने ऐसी गैरसमझ पैदा करके वास्तविकता को बगल देने का प्रयत्न करते, लेकिन 'शंकर' की विष प्राशन की सत्यता को नकारते आये नहीं.विष्णु
ब्राहमण आर्य ने 'शंकर' को गुप्तता से पार्वती के माध्यम से 'विष' दिया होगा या 'शंकर' को विष प्रशन करने की सक्ती की होगी. इन दोनों घटना में से कुछ भी हो, लेकिन इतना मात्र निश्चित है की 'शिवशंकर' का विष प्रयोग द्वारा आर्य ने खून किया और उसकी सिहासत अपने गले में घुसा के मूलनिवासी बहुजनों को गुलाम (दास) बनाया | शंकर का नीला शरीर भी जहर के कारण हुआ है, यह सत्य है | यह सत्यता मूलनिवासियों के ध्यान में आने न पाये इसीलिए शंकर को ही 'नीलकंठ' बोला गया और प्रजा में ऐसी पह्लियों को जोड़कर की साक्षात् तुम्हारा शिवशंकर नीला शरीर धारण करके देव (भगवान) बना |
राजा शंकर का मृतदेह देखने के लिए मूलनिवासियों ने 'पचमढ़ी' में गर्दी की. भूख-प्यास भूलकर शिवजी के शोक दुःख में डूब गए | शंकर के दुःख में मूलनिवासियों ने गीत-गान गाये जो आज भी गावं-देहातो में गाये जाते हैं | 
उस समय के महाशिवरात्रि के दिन से शंकरजी के स्मृति में भीड़ इक्कठा होती है इस दिन अन्न सेवन न करके उपवास करते हैं | 
शिवशंकर के गीत गाते-काव्यात्मक शैली के माध्यम से मूलनिवासी शंकर की याद में, शंकर की जीवनी गानों से जीवित रखी है.
हमारे महापुरुष शंकर का मृत्यु दिन और विदेशी आर्यों ब्राम्हणों का विजय दिन महाशिवरात्रि के रूप में आज भी मूलनिवासी त्यौहार मन रहे हैं.अपनी कपट निति ध्यान में न आने पाये इसीलिए शंकर को देव बना के प्रजा को पूजने लगाया. शंकरजी की महानता बढ़ाने के लिए ब्राहमण संपूर्ण विश्व की निर्मिती करता है | 'विष्णु' को विश्व का पालन पोषण करता और 'शंकर' यह सृष्टि का देखभाल करता यह
झूठी कहानी मनुवादियों (ब्राम्हणों) ने निर्माण करके और 'शंकरजी' को 'श्मशान-भूमि' में बसाया है, यह देखने को आज भी मिलता है |
★मूलनिवासी महाशिवरात्रि :★
- सत्ता और धर्म सत्ता की बात को छोड़ कर यदि भारत के लोग मानस की बात की जाये तो वह हमेशा लोकसत्ता का हामी रहा है.इस लोक सत्ता के जबरदस्त प्रमाण के रूपों में और अनेक नामों से लोग पूजते रहें हैं.ये दो महापुरुष है- शिव और कृष्ण. ये दोनों भी अनार्य(ब्राम्हण नहीं) है | ये कोई देवता एवं अवतार नहीं | इन्हें ब्राहमणी कलम ने देवता और अवतार बना कर लोगों के सामने रख दिया है और इन्हें पूजा का उपदान बना दिया गया है | अभी फरवरी २००७ में कोटा के 'थेगडा' स्थित 'शिवपुरी' धाम में 525 शिवलिंग स्थापित करके लोगों को पूजा-पाठ के ढकोसलों में और इजाफा कर दिया गया है.यह अंध प्रचार दिन रात जारी है |
यहाँ हम केवल शिव की चर्चा करेंगे.आज 'शिव' की पूजा के नाम पर जो वाणिज्य-व्यापार शुरू कर दिया गया है,उस घटनाओं में शिव का वास्तविक व्यक्तित्व दफ़न हो गया है | यह 'शिव' के शत्रु पक्ष अर्थात आर्य ब्राम्हण लोगों की साजिश है की वे पूजा के उपदान बना दिए गए और मूलनिवासियों के परिवर्तन,क्रांति की प्रेरणा नहीं बन पाये.भारत के मूलनिवासियों को शिव ऐतिहासिक व्यक्तित्व और चरित्र का गहराई से अध्ययन करना चाहिए और उनके ब्राम्हण विरोधी परिवर्तनवादी क्रिया कलापों को बहुजन समाज के सामने रखकर उन पर चलने को प्रेरित करना चाहिए |
"शिव" का शाब्दिक अर्थ होता है- 'कल्याणकारी'★
'शिव' को उनके शत्रुओं अर्थात-आर्य ब्राम्हणों ने पहले रूद्र कहा, फिर 'महादेव' और शिव आदि के नाम रख दिए गयें | उन्हें ईश्वर बना दिया गया और 'पिपलेश्वर, गौतमेश्वर, महाकालेश्वर, जैसे हजारों नाम रख दिए | जहाँ शिवलिंग या शिव मंदिर की स्थापना की,वाहन के प्राकृतिक स्थानों,नदी-नालों, पेड़ों, पहाड़ियों आदि के नाम पर शिव का नामकरण करके वहाँ के मूलनिवासियों को पूजा-पाठ में लगा दिया.
'शिव' यज्ञ विरोधी हैं,राज्य-साम्राज्य को नहीं मानते, बल्कि वे "गण" व्यवस्था को मानते हैं | वे व्यक्ति हैं,विचारवान व्यक्ति हैं, विवेकशील व्यक्ति हैं.नायक हैं,उनकी सत्ता लोकसत्ता है.उन्होंने अपनी सत्ता,अपने गणों के साथ दक्ष (ब्राम्हण/पार्वती का पिता) की यज्ञ संस्कृति को ध्वस्त किया. यज्ञ संस्कृति के लोग जीते जी उन्हें अपने पक्ष में नहीं कर सके ,किन्तु उनकी मृत्यु के बाद उन्हें देवता और भगवान बना कर उनका उपयोग करने में वे सफल हुये.यह प्रयास शास्त्रकारों का रहा.
इसके विपरीत शिव लोक में,जन में ,मनुष्य के रूप में विद्यमान है.हिमालय की ऊँचाईयों पर रहने वाले भाट लोग 'शेषनाग' और 'शिव' की पूजा करते हैं. वे ऐसा इसीलिए करते हैं क्यों की 'शिव' उनके पूर्वज हैं .कैलाश पर्वत शिव का घर है.शिव की पत्नी, गौरी, गिरिजा, पार्वती हैं. दक्षिणी राजस्थान की अरावली पर्वत श्रेणियों में रहने वाले आदिवासी गमेती,भील,मीणा,भादवा महीने में सवा महीने तक एक लोक
नाट्य का मंचन करते हैं .इसका नाम हैं "गवरी" गवरी में राई और बुडिया नामक पात्र पार्वती और शिव का स्वांग भरते हैं. हजारो सालों से ये परंपरा चली आ रही है.लोक नाट्य की इस मंचन परंपरा को "गवरी रमना" कहते हैं |
★ "रमना" का अर्थ है "रमण करना".
'शिव' कोई चमत्कारिक और दैवीय पुरुष नहीं वरन मूलनिवासियों की संस्कृति की रक्षा के प्रतीक हैं. वे 'यज्ञ-विध्वंसक' है | यज्ञ करना ब्राम्हणों की संस्कृति है, जिसमे गायों की,अश्वों की बलि दी जाती थी और उन्हें ब्राम्हण खाते थे | 'गौ-मेध' यज्ञ और 'अश्व-मेध' यज्ञ ही क्यों, ये आर्य ब्राम्हण तो 'नरमेध' यज्ञ भी करते थे जिसमे 'नर' की बलियां भी देते थे | 
मूलनिवासी तो पशु-प्रेमी, पशुपालक, कृषि कार्य से अपना जीवन यापन करने वाले थे; इसीलिए वे यज्ञ के नाम पर 'पशुओं' को काट कर खाने वालो का विरोध करते थे | 'शिव' भी 'कृष्ण' की तरह विदेशी लुटेरें
आर्यों का नाश करने वाले थे | 'शिव' और 'कृष्ण' को सेतु बनाकर चालक आर्य ब्राम्हणों ने भारतीय जन मानस में घुसबैठ बनायीं. कृष्ण और शिव मुलिवासियों के नायक थे. इनको ब्राम्हणी वर्ण व्यवस्था शुद्र
और अतिशूद्र मानती है.ये बहुजन नायक हैं. इन्हें ब्राहमणी व्यवस्था में लेने के लिए ब्राहमणों ने इनकी पूजा शुरू की |
अतः समझदार मूलनिवासी बहुजन अपनी महाशिवरात्रि आने ही तरीके से मानते हैं.वे शिवलिंग और
शिवमूर्ति की पूजा उपासना नहीं करके उनके द्वारा किये गए विध्वंस जैसे क्रिया कलापों का गहन अध्ययन करके उसके प्रचार-प्रसार का कम करते हैं |
शिव का रंग रूप भी तो 'ब्रह्मा' और ब्राम्हणों से मेल नहीं खाता है. वह 'श्याम-वर्णी' है और उनकी वेशभूषा आदिवासियों जैसी हैं.उनका ब्रम्हा और 'विष्णु' के साथ जोड़ है,'लेकिन वे तीसरे दर्जे पर है |
उनकी भूमिका 'ब्रह्मा-विष्णु' की तरह स्पष्ट नहीं है.वह शक्तिमान भी है और त्रिशूल को अपने हथियार के रूप में धारण करते हैं, परन्तु वे 'ब्रह्मा-विष्णु' के सहायक की भूमिका निभाते हैं, यह केवल ब्राहमणों की चाल है |
शिव नृत्य के प्रेमी है |
पार्वती 'शिव' की पत्नी है .उन्हें 'गौरी' भी कहा जाता है | सरस्वती और लक्ष्मी की तरह उनकी कोई स्पष्ट भूमिका नहीं है. वह शिव की अनेक गतिविधियों में उनके साथ रहती है. लक्ष्मी और सरस्वती के विपरीत 'पार्वती' शिव के अनेक कार्यों पर सवाल खड़े करती हैं | वह कुछ ऐसी भूमिकाएं अदा करती हैं जो पूरी तरह से हिन्दुवाद के दायरे में नहीं आती हैं. शायद यह जोड़ी 'आदिवासी' मूल की जोड़ी है |
★शिव-पार्वती की जोड़ी के निर्माण का उद्देश :-
'आदिवासियों' (आदिकाल से रहने वाले मूलनिवासी भारतवासी) को धीरे-धीरे पूरी तरह से ब्राम्हणवादी सभ्य समाज के दायरे में खिंचा जा रहा था.लेकिन उनकी आबादी समस्यात्मक और अनियंत्रणीय थी | वे ब्रह्मा और विष्णु के साथ खुद को जोड़ नहीं पा रहे थे, क्योंकी 'ब्रह्मा' और 'विष्णु' दिखने में उनसे भिन्न लगते थे. आदिवासियों में समर्थन का आधार बना पाने में ये देवता पर्याप्त नहीं थे, इसीलिए ब्राम्हणों ने शिव और पार्वती के रूपों की रचना की |
ये दोनों देखने में आदिवासी लगते थे लेकिन वे हर बात में ब्राम्हणवाद के प्रभुत्व को स्वीकार करते थे. इसीलिए यह तथ्य है की 'शिव' और 'पार्वती' के चरित्र आदिवासियों के बीच समर्थन हासिल करने का माध्यम बन गये की 'शिव' ब्राहमणवाद का प्रचार करते हैं, वह हिंसा के जरिये लोगों को ब्राम्हणों के प्राधिकार को मानने के लिए मजबूर करते हैं |
'आदिवासियों' को दबाने में इन दो चरित्रों का बखूबी इस्तेमाल किया गया है | यह ब्राहमणवादी सिद्धांत और सहयोजन के व्यवहार का एक हिस्सा है | 'शिव' के "आत्मसातीकरण" ने ब्राहमणों के सामने अपनी ही तरह की दिक्कतें पेश कीं. एक लम्बे समय की अवधि में 'आदिवासियों' को, खासतौर पर दक्षिण भारत के आदिवासियों को हिंदू ब्राहमणोंवादी व्यवस्था में आने के लिए बाध्य किया गया था, लेकिन आदिवासी पृष्ठभूमि से आने वाले लोगों ने 'हिन्दुवाद' में एक रगड़ पैदा की |
'विष्णु' से 'शिव' का पंथ तुलनात्मक रूप से ज्यादा उदार था. इस आधार पर उन्होंने 'हिन्दुवाद' में अपने लिए स्वायत्तता पर जोर दिया.वैष्णव मत धीरे-धीरे कट्टरतावादी ब्राम्हणवाद बनता जा रहा था, जबकि 'शैवमत' हिन्दुवाद का उदार संप्रदाय था | वासव के वीर शिव आंदोलन के उभार के साथ ही 'शैवमत' ने हिंदू ब्राम्हण वाद को भी चुनौती देना शुरू कर दिया, लेकिन राष्ट्रवादी अवधि के दौरान हिंदुत्व संप्रदाय ने एक अखंड हिंदुत्व की अवधारणा प्रदर्शित करके व्यवस्थित ढंग से इन अंतरविरोधो को सुलझाने की कोशिश की |
आज यह देखने में आता है 'शैववादी' हिंदुत्व, वैष्णवी 'हिंदू-ब्राहमणवाद' के समान ही दलित बहुजन विरोधी है | 80 और 90 के दशक में लड़ाकू 'हिंदुत्व' का पुनरुत्थान हुआ.उसने इन पंथों-पांतो को हमेशा के लिए बंद कर दिया | उसने अपने आपको अखंड राजनितिक शक्ति (हालांकि 'शिवसेना' के हिंदुत्व और भाजपा के 'हिंदुत्व' के बीच जो दरारे हैं वो शैव मत और वैष्णव मत के बीच की दरारों की अभिव्यक्तियाँ हैं, फिर भी वे वोट पाने के लिए राम के चरित्र का इस्तेमाल करने में एक है) के रूप में पेश किया | भविष्य में अगर पढ़े-लिखे दलित बहुजन हिंदुत्व के खिलाफ कोई आधुनिक चुनौतियाँ पेश करते हैं, तो ऐसे में 'वैष्णव-मतवादी' हिंदुत्व शक्तियों और 'शैवमतवादी' हिंदुत्व की शक्तियों के बीच एक होना निश्चित है | ये बहुजनों में सहमती बनाने और उनके खिलाफ ताकत का इस्तेमाल करने के दोनों कामों में एकजुट हो जायेंगे | 
अब तक ब्राहमणवाद 'बहुदेववादी' त्रिमुर्तियों की रचना कर चूका है .वह देवरूप में चरित्रों के सहयोजन करने की कला में और इन चरित्रों के खाकों से जनसमूह को बाहर रखने में महारथ हासिल कर चूका है .इस तरह से व्यापक जनसमुदाय के दमन और शोषण के असली उद्देश को काफी हद्द तक पूरा किया जा चूका है |

Friday, January 15, 2016

आत्महत्या या सत्ता द्वारा की गई हत्या "

सोचिये :- "आत्महत्या या सत्ता द्वारा की गई हत्या "
समस्त बुद्धिजीवी प्रबुद्धजनों, मिडिया, जनसंगठनों, विद्यार्थियों और नौजवानों से अपील कि सुरेंद्र की मौत व्यर्थ न जाए और फिर से किसी घर का चिराग यूँ बुझ न पाए..... 


"बेरोजगारी से तंग आकर जेएनवियू के अंग्रेजी साहित्य का छात्र मालगाड़ी से कटा "

बेरोजगारी से युवाओं में किस कदर हताशा है कि होनहार छात्र को अपनी जीवन लीला खत्म करनी पड़ती है, जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के अंग्रेजी साहित्य में नियमित अध्ययन कर रहे छात्र सुरेन्द्र ने बुधवार तङके जोधपुर में मालगाड़ी के आगे कूदकर आत्महत्या कर ली,उसका सिर धङ से अलग हो गया, सुरेंद्र ने एक पंक्ति के सुसाइड नोट में बेरोजगारी के प्रति हताशा जताई । बालेसर के सेखाला निवासी छात्र रातानाडा स्थित छात्रावास की रहकर पढाई कर रहा था। 


छात्र के शव का पोस्टमार्टम कर के परिजनों को सौंप दिया है, परिजन और मित्रगण शव को लेकर गांव रवाना हो गए हैं। भारतीय जीवन बीमा निगम में कार्यरत पिता पर जैसे पाहङ टूट पड़ा हो, उनको सुरेंद्र से बहुत आशाएं थी। 

सुरेंद्र के सहपाठियों का कहना है कि सुरेंद्र मंगलवार रात को खूब हंसी मजाक कर रहा था, सभी ने साथ में मिलकर खाना खाया, उसने बाकी साथियों को अच्छा पढने की हिदायत भी दी उस समय किसी को आभास ही नहीं हुआ कि इसके दिमाग क्या चल रहा हैं? 
सुरेन्द्र की मौत ने बहुत सारे सवाल खड़े कर दिये, यूँ कहें कि सत्तासीन लोगों के मूँह पर तमाचा मारती हैं सुरेंद्र की मौत, 

ये मौत नहीं शासन द्वारा की गई हत्या है.... शासन को जिम्मेदारी ओढनी चाहिए, कितने युवाओं की बली रोज चढती है, इनको क्या फर्क पड़ता है, सत्ता में बैठे लोग चेहरा बदल बदल कर आते हैं और बङे कोओर्पोरेट घरानों की सेवाओं में लग जाते हैं इन्हें अडानी, अम्बानी, टाटा, बिङला, डालमियाओं की चिंता रहती है उनके लिए बैकों के दरवाजे हर समय खुले रहते हैं परन्तु किसी बेरोजगार युवा के लिए कोई योजना नहीं बनती है, लाखों नौकरियों का झांसा देकर चुनाव में युवाओं को ठगने वाली सत्ताधारी पार्टी ने अच्छे दिन मुहैया कराये है। 
हम इन अच्छे दिनों को एंजॉय कर रहे हैं। 
किसी एक भर्ती के लिए ट्रेनों और बसों में भेङ बकरियों की तरह ढूंढकर अपना भविष्य तलाशने निकलने वाले नौजवान भीषण दुर्घटनाओं का शिकार हो रहे हैं, टोंक की ताजी घटना पर सरकार को कहीं शर्म महसूस हुई??? 

युवाओं से आग्रह है कि हताशा में मौत को गले मत लगाओ, इससे बेशर्म सत्ता को कोई फर्क नहीं पङने वाला, 
यदि मरना ही है तो इस प्रकार की सत्ताओं से टकराते हुए मरो, शहीदों की मौत मरो, इस तरह की शहीदी मौत मरने वाले 100-50 युवा तैयार हो गये तो हजारों -लाखों की मौतों को बचाया जा सकता है। 

साथियों संघर्ष करो , आवाज उठाओ, 
सुरेंद्र के लिए सच्ची श्रद्धांजलि ये ही है कि ये हालात बदलने के लिए लङो और कोशिश करो कि फिर से किसी को सुरेन्द्र जैसी मौत नसीब न हो, सत्ता की गोली सीने में खाना कबूल करना परंतु ऐसा कदम मत उठाना। 

सुरेंद्र के परिवार के प्रति मेरी संवेदनाऐं है, हमारे सभी वामपंथी जनवादी संगठन इस घटना पर गहरे दुख का इजहार करते हैं, सुरेंद्र के पिताजी मेरे व्यक्तिगत मित्र भी है, सुरेंद्र मेरे बेटे के समान था और एसएफआई का सदस्य भी रहा था, कुछ दिन पहले उससे मिलने उसके कमरे में गया तब उसने बोला कि सर एक दिन कुछ बनकर दिखाऊंगा , परंतु अफसोस कि निरंकुश सत्ता ने इसकी हत्या कर दी। 

नम आँखों से फिर से श्रद्धांजलि... 


किशन मेघवाल 
(शोषणकारी व्यवस्था से जंग लड़ रहा एक सिपाही)
एडवोकेट 
राजस्थान हाईकोर्ट, जोधपुर 
09460590286

गुजरात के SC, ST, OBC समुदाय की 200 से ज्यादा जातियों का बिनपक्षीय सामाजिक संगठन "SSO अधिकार महासंघ गुजरात" का प्रथम राज्य सम्मलेन दि. 13 - 1-'16 को गांधीनगर में संपन्न

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गुजरात के SC, ST, OBC समुदाय की 200 से ज्यादा जातियों का बिनपक्षीय सामाजिक संगठन 
"SSO अधिकार महासंघ गुजरात" 
का प्रथम राज्य सम्मलेन दि. 13 - 1-'16 को गांधीनगर में संपन्न हो गया. 

गुजरात के लोकतान्त्रिक इतिहास में यह प्रथम ऐसा संगठन है, जिस की रचना में भाजप, कोंग्रेस, जनतादल(यु), जनचेतना पार्टी, आमआदमी पार्टी, बसपा, गुरुजन समाजवादी पार्टी और सामाजिक संगठनो के नेताओ पिछड़ेवर्गों के संवैधानिक अधिकारों को लागु करवा के उनकी समस्याओ के समाधान करने के लिए की है.. 

गुजरात में यह ऐसा प्रथम अधिवेशन .है , जिसका उद्घाटन देश के संविधान के समक्ष मोमबती जलाकर हुवा था. 

गुजरात में यह ऐसा प्रथम अधिवेशन .है जिस का नारा  जय संविधान... जय भारत रहा हो.
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"SSO अधिकार महासंघ गुजरात" 
के पदाधिकारियों में:
 कोली-ठाकोर राज्य निगम के पूर्व उपाध्यक्ष मनुभाई चावड़ा संगठन के राज्य प्रमुख, 
पूर्व एमएलए हमीरभाई धुला संगठन के कार्यकारी प्रमुख,
पूर्व संसदीय मंत्री और और एमएलए छोटूभाई वसावा संगठन की स्टेट काउन्सिल के अध्यक्ष. 
पूर्व एमएलए वेचात भाई बारिया संगठन के महामत्री..
पूर्व एमएलए सिध्धार्थ परमार संगठन के राज्य प्रवक्ता, 
करणाभाई मालधारी संगठन के राज्य प्रवक्ता.. 
संगठन की एक्जीक्यूटिव कमिटी
07. पूर्व राज्यमंत्री उदेसिंहभाई बारिया 
08. पूर्व एमएलए और पूर्व मेयर वड़ोदरा दलसुखभाई प्रजापति
09. पूर्व मेयर वड़ोदरा रतिलालभाई देसाई. 
10. BPSS के राष्ट्रिय कोषाध्यक्ष जयंतीभाई मनाणी.
11. ओबीसी समर्थन समिति गुजरात प्रदेश उपप्रमुख भरतभाई  सुथार 
12. ओबीसी समर्थन समिति गुजरात प्रदेश महिला विंग प्रमुख रमा बेन बडमालिया.
कार्यरत होंगे. स्टेट काउन्सिल 51 मेम्बर्स की होगी.. जिला और महानगर के कन्वीनर पद के होते हुवे स्टेट काउन्सिल के मेंबर होंगे...

!! जय मूल निवासी !!

ब्राह्मण विदेशी है प्रमाण

ब्राह्मण विदेशी है प्रमाण
Posted by Bheem Sangh

1. ऋग्वेद में श्लोक 10 में लिखा है कि हम (वैदिक ब्राह्मण ) उत्तर ध्रुव से आये हुए लोग है। जब आर्य व् अनार्यो का युद्ध हुआ ।

2. The Arctic Home At The Vedas बालगंगाधर तिलक (ब्राह्मण) के द्वारा लिखी पुस्तक में मानते है कि हम बाहर आए हुए लोग है ।

3. जवाहर लाल नेहरु ने (बाबर के वंशज फिर कश्मीरी पंडित बने) उनकी किताब Discovery of India में लिखा है कि हम मध्य एशिया से आये हुए लोग है। यह बात कभी भूलना नही चाहिए। ऐसे 30 पत्र इंदिरा जी को लिखे जब वो होस्टल में पढ़ रही थी।

4. वोल्गा टू गंगा में "राहुल सांस्कृतयान" (केदारनाथ के पाण्डेय ब्राहम्ण) ने लिखा है कि हम बाहर से आये हुए लोग है और यह भी बताया की वोल्गा से गंगा तट (भारत) कैसे आए।

5. विनायक सावरकर ने (ब्राम्हण) सहा सोनरी पाने "इस मराठी किताब में लिखा की हम भारत के बाहर से आये लोग है।

6. इक़बाल "काश्मीरी पंडित " ने भी जिसने "सारे जहा से अच्छा" गीत लिखा था कि हम बाहर से आए हुए लोग है।

7. राजा राम मोहन राय ने इग्लेंड में जाकर अपने भाषणों में बोला था कि आज मै मेरी पितृ भूमि यानि अपने घर वापस आया हूँ।

8. मोहन दास करम चन्द गांधी (वेश्य) ने 1894 में दक्षिणी अफ्रीका के विधान सभा में लिखे एक पत्र के अनुसार हम भारतीय होने के साथ साथ युरोशियन है हमारी नस्ल एक ही है इसलिए अग्रेज शासक से अच्छे बर्ताव की अपेक्षा रखते है।

9. ब्रह्म समाज के नेता सुब चन्द्र सेन ने 1877 में कलकत्ता की एक सभा में कहा था कि अंग्रेजो के आने से हम सदियों से बिछड़े चचेरे भाइयों का (आर्य ब्रह्मण और अंग्रेज ) पुनर्मिलन हुआ है।

इस सन्दर्भ में अमेरिका के Salt lake City स्थित युताहा विश्वविधालय (University of Utaha' USA) के मानव वंश विभाग के वैज्ञानिक माइकल बमशाद और आंध्र प्रदेश के विश्व विद्यापीठ विशाखा पट्टनम के Anthropology विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा सयुक्त तरीको से 1995 से 2001 तक लगातार 6 साल तक भारत के विविध जाति-धर्मो और विदेशी देश के लोगो के खून पर किये गये DNA के परिक्षण से एक रिपोर्ट तैयार की। जिसमें बता गया कि भारत देश की ब्राह्मण जाति के लोगों का DNA 99:96 %, कश्त्रिय जाति के लोगों का DNA 99.88% और वेश्य-बनिया जाति के लोगो का DNA 99:86% मध्य यूरेशिया के पास जो "काला सागर 'Blac Sea" है। वहां के लोगो से मिलता है। इस रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकालता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-बनिया विदेशी लोग है और एस सी, एस टी और ओबीसी में बंटे लोग (कुल 6743 जातियां) और भारत के धर्म परिवर्तित मुसलमान, सिख, बुध, ईसाई आदि धर्मों के लोगों का DNA आपस में मिलता है। जिससे साबित होता है कि एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्म परिवर्तित लोग भारत के मूलनिवासी है। इससे यह भी पता चलता है कि एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्मपरिवर्तित लोग एक ही वंश के लोग है। एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्म परिवर्तित लोगों को आपस में जाति के आधार पर बाँट कर ब्राह्मणों ने सभी मूलनिवासियों पर झूटी धार्मिक गुलामी थोप रखी है। 1900 के शुरुआत से आर्य समाज ब्राह्मण जैसे संगठन बनाने वाले इन लोगो ने 1925 से हिन्दु नामक चोला पहनाकर घुमाते आ रहे है। उक्त बात का विचार हमे बहुत ही गहनता से करने की आवश्यकता है। राष्ट्रिय स्वयं सेवकसंघ के जरिये 3% ब्राह्मण 97% मूलनिवासी भारतीयों पर पिछ्ले कई सालों से राज करते आ रहे हैं।

Tuesday, January 12, 2016

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-3 & 4

एक तो उर्दू सारे मुस्लिमो की ज़ुबान नहीं है। ये सिर्फ upper cast मुस्लिमो की strategy है कि उर्दू को मुस्लिमो की ज़ुबान बता कर इसको एक जज़्बाती मुद्दा बना कर अपना उल्लू सीधा किया जाये

दूसरी बात ये कि जनाब अल्पसंख्यक के नाम पे सारा मलाई आक्रमणकारी विदेशी मुस्लिम(सैयद शैख़ मुग़ल तुर्क पठान) खा रहा है और पसमांदा को "all is well" के धोखे में रखे हुए हैं। AMU में सारा खेल इन्ही का है और इंटरनल एक्सटर्नल आरक्षण का सारा खेल का मज़ा यही लोग उठा रहे हैं। पसमांदा सिर्फ बेवक़ूफ़ बन रहा है। obc और s.t. के आरक्षण से पसमांदा मुस्लिमो की भागेदारी बढ़ेगी जो अपने आबादी( कुक मुस्लिम आबादी के 90%) के ratio के हिसाब से AMU में 15% भी नहीं हैं वही upper cast मुस्लिम की भागेदारी 85% से भी ज़्यादा है।

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-3

"अब ना हिल मिल है ना वो पनिया का माहोल है
एक ननदिया थी सो वो भी अब दाखिले स्कूल है"
             अकबर इलाहाबादी

पश-ए-मंज़र(पृष्टभूमि)-:

उस ज़माने में एक बहुत ही मशहूर पुर्बी(भोजपुरी) के  लोकगीत का मुखड़ा था-

"हिलमिल पनिया को जाये रे ननदिया"
उस दौर में पसमांदा की औरते खुद के लिए भी और तथाकथित अशराफ(मुस्लिम विदेशी आक्रमणकारी) के घरो के लिए भी कुआँ और तालाबो से पानी भर के लाया करती थी। पनघट के रास्ते में ये लोग(सैयद शैख़ मुग़ल तुर्क पठान आदि) पानी भरने जाने वाली पसमांदा औरतो का हिलमिल देख के लुत्फ़ अन्दोज़(प्रसन्नचित) हुआ करते थे। ज़ाहिर सी बात है इनके ज़िम्मे कोई काम तो था नहीं, सारा महनत मशक़्क़त का काम तो रैय्यतों(सेवको) के सुपुर्द हुआ करता था।बहरहाल जब सामाजिक बदलाव हुए और पसमांदा मुस्लिमो में भी शिक्षा और धन आने लगा और उन्होंने अपनी औरते को भी तालीम के लिए स्कूल भेजने लगे तो पनघट सुना हो गया। इस बदलाव से दुखी अकबर इलाहाबादी ने अपनी व्यथा को कुछ यूँ वर्णन किया।

अर्थात-:
इस नए बदलाव की वजह से हमारे मनोरंजन का अब ये साधन भी खत्म होने लगा। अब पहले की तरह वो हिलमिल देखने को नहीं मिल रहा है और एक ननदिया भी थी तो वो भी अब स्कूल में चली गयी।
नोट:- मालूम हो कि अकबर इलाहाबादी ने एक ननदिया(पसमांदा मुस्लिम औरत) को अपने घर में डाल रखा था।
और चीज़ों पे तो उन्होंने अशआर कहे और इसे कर के दिखया।

            फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-4

 "बेपर्दा  नज़र  आयीं  जो कल  चन्द  बीबियां
  अकबर ज़मीं में ग़ैरत-ए-क़व्मी से गड़ गया
  पूछा  जो  आप  का  पर्दा  वह  क्या  हुआ
  कहने  लगीं के अक़्ल  के  मर्दों पे पड़  गया"
                                 अकबर इलाहाबादी

बीबी= उच्च वर्ग के मुस्लिम औरतो को ही बीबी कहा जाता है। 
क़व्म = उच्च वर्ग के मुस्लिम समाज के लिए बोला जाने वाला शब्द, उस लफ्ज़ का इस्तेमाल कभी भी इस्लाम और आम मुस्लिमो के लिए नहीं होता था।

पश-ए-मन्ज़र(पृष्टभूमि):-

जब नई तहज़ीब के अण्डों(सामाजिक सुधार) के फलस्वरूप् तथाकथित अशराफ(मुस्लिम उच्च वर्ग) की बीबियाँ घरो से बाहेर निकल के शिक्षा हासिल करने लगीं तब इस बात से अकबर इलाहाबादी को बहोत कष्ट हुआ और वो अपने क़व्म को शर्म दिलाते हुए इसका  विरोध अपने व्यंगात्मक  अंदाज़ में कुछ यूँ किया।
अब आप के दिल में ये ख्याल आ रहा होगा कि अकबर इलाहाबादी को सारे मुस्लिमो की औरतो को बे पर्दा होने का मलाल था। तो जनाब आप ये जान ले कि उस वक़्त पसमांदा(पिछड़े और दलित) मुस्लिमो की औरते तो पहले से ही बेपर्दा थी और अपने रोज़ी रोटी के लिए गली मोहल्लों और बाज़ारो में आया जाया करती थी। हज़रत को तो सिर्फ बीबियों के बेपर्दा होने की फ़िक़्र थी।
                फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी


पसमांदा मुस्लिमो के लिये अच्छी खबर:
"केंद्र सरकार ने AMU को अल्पसंख्यक संस्था मानने से इंकार किया"

इंक़लाब उर्दू डेली,न्यू डेल्ही(वाराणसी),12 जनवरी2016, vol no.3, issue no.356.

ज्ञात रहे की AMU में obc, s.c. और s.t. आरक्षण नहीं है। अगर इसका अल्पसंख्यक दर्जा खत्म हुआ तो वहा भारत सरकार का आरक्षण नियम लागु हो जायेगा और इस तरह पसमांदा मुस्लिमो का ज़्यादा से ज़्यादा प्रतिनिधित्व मिलने लगेगा, जो पहले से ही obc और s.t. आरक्षण में आते हैं।
          फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी

............."ज़रूरी नहीं कि हमेशा अक़्लमंद और उमरा(अमीरो) की बात और तहरीक सही और मुल्क व मिल्लत(देश और समाज) के लिए मुफीद(लाभकारी) हो, कभी कभी गरीबो और पसमांदा क़व्मो और जातियो ने दुनिया में ऐसी ऐसी तहरीके भी चलायी हैं कि उनके एहसानात के बोझ से इंसानी दुनिया क़यामत तक सर नहीं उठा सकती।"
मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी
7 जून 1935, बारह गावाँ की एक सभा में।

Shameem ansari says...
योगंडा मे ईसाई अधिक है एक बार ईदी अमीन मुस्लिम की हुकूमत आईं अमीन ने फरमान जारी किया कि सभी विदेशी योगंडा छोडकर चले जाएँ अमीन से मुसलमान मिले कि हमें तो रहने दो हम तो मुसलमान है अफ्रीका के लोगों का रंग तो पक्का होता ही है।अमीन ने कहा कि अगर तुम हमें मुसलमान समझते हो तो हमारी लड़कियों से शादी तुम करो और अपनी लड़कियों से हमारे लडको की करो ये बात चिकने मुसलमानों ने ना मंजूर कर दी - तब अमीन ने कहा कि फिर कैसे मुसलमान हो बाहर जाओ

Monday, January 11, 2016

समस्त भारत भूमि तुम्हारे पूर्वजों की धरोहर है

एक षड्यंत्र के तहत जातियां बनाकर उनमें ऊंच नीच के आधार पर भेदभाव करने की घटिया हरकतों को धर्म कह रहे हैं

जैसी कि एक कहावत है, एक झूठ को सौ बार बोल दो, वही झूठ लोगों को सच लगने लग जायेगा।

हमारे समाज के साथ सैकड़ों वर्षों से ऐसा ही होता आ रहा है,मनुवादी लोगों ने झूठ को इतना अधिक बार बोला है कि हमारे लोग उस झूठ को झूठ मानने को तैयार नहीं है बल्कि उस झूठ को धर्म की बात समझ रहे हैं जिसके कारण आज भी मूर्खतापूर्ण बातों को मानते चले आ रहे हैं जैसे कि हाथी की सू्ंड लगे हुए गणेश को भगवान समझकर सबसे पहले उसकी पूजा करना। आठ और दस हाथों वाली बनावटी देवियों को माता रानी मानकर उनकी पूजा करना ,पूरा का पूरा पहाड़ उठाकर आकाश में उड़ने वाले एवं सूर्य को अपनी गाल में दबाने वाले झूठ को सच मानकर आज भी बनावटी हनुमान को देवता समझकर पूजने में लगे हुए हैं।

   सड़े हुए बदबूदार पानी में नहा कर स्वर्ग में जाने की चेस्टा कर रहे हैं।


कौवे के द्वारा अपने मृत पूर्वजों को स्वर्ग में हलवा खीर पूड़ी भेजने में अपनी बुद्धिमानी समझने में लगे हुए हैं।

एक षड्यंत्र के तहत जातियां बनाकर उनमें ऊंच नीच के आधार पर भेदभाव करने की घटिया हरकतों को धर्म कह रहे हैं।

ढोल,शुद्र,पशु,नारी ये सब ताड़न के अधिकारी,

ब्राह्मण पूजे ज्ञान गुण हीना

शुद्र न पूजे ज्ञान प्रवीणा 

जैसी घटिया बातें जिन पुस्तकों में लिखी हुई हैं उनको पवित्र धार्मिक ग्रंथ माना जा रहा है और यह सब झूठ को सच मान लेने की वजह से ऐसा हो रहा है।


लेकिन अफसोस और दुख तो तब होता है कि बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे लोगों की बात को भी यह समाज दरकिनार कर देता है एवं उन झूठी बातों को छोड़ने को तैयार नहीं है।

हमारे समाज के सभी लोगों से निवेदन है कि बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा बताई गई निम्नलिखित बातों पर यकीन करें एवं जो बातें आज तक मानते आये हैं उन सभी को आज से ही छोड़दें एवं बाबा साहेब अम्बेडकर के द्वारा बताई गई निम्नलिखित बातों पर  यकीन करें व उनको समझें। 

 १. तुम्हीं भारत के मूलनिवासी और सहोदर भाई हो |

२. तुम्हीं को इससे पहले अनार्य,असुर,राक्षस,शुद्र,अछुत

और अब दलित या हरिजन कहा जाता है |

३. आर्यों और अनार्यों के युद्ध मैं तुम्हारी हार का

परिणाम तुम्हारी गुलामी है |

४. समस्त भारत भूमि तुम्हारे पूर्वजों की धरोहर है |

५. तुम्ही इसके सच्चे और सही उतराधिकारी हो |

६. तुम्हें बलात गुलाम बनाया गया है |

७. तुम्हारे धन और धरती पर बलात कब्ज़ा किया गया है

|

८. तुम्हारी सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, इतिहास,और

धर्म नष्ट कर दिया गया है|

९. तुम्हें धर्म का भी गुलाम बना लिया गया है

१०. तुम हिन्दू कभी नहीं थे, तुम आज भी हिन्दू नहीं हो

११. तुम हिन्दू धर्म के गुलाम हो

१२. हिन्दू धर्म छोडना, धर्म परिवर्तन नहीं बल्कि

गुलामी की जंजीरे तोडना है |

१३. इसे वीर ही कर सकते है , तुम्हारे पूर्वज वीर थे

१४. तुहारी रगों मैं उनका खून है इसे पहचानो

१५. शिक्षित बनो,संगठित रहो,संघर्ष करो ,विजय

तुम्हारी है

१६. जाति के आधार पर किसी को ऊँचा मानना पाप है

और नीचा मनना महापाप

१७. हिन्दू धर्म की आत्मा वर्ण जाति और ब्रह्मण

हितेषी कर्मकांडो मे है |

१८. वर्ण और जाति के बिना हिन्दू धर्म की कल्पना ही

नहीं की जा सकती |

१९. हिन्दू धर्म मे कर्म नहीं, जाति प्रधान है |

२०. जब तक तुम हिन्दू धर्म के गुलाम रहोगे तुम्हारा

स्थान सबसे नीचा रहेगा

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तुम हिन्दु क्यों नहीं हो ?

१. हिन्दु धर्म वर्णों का है तुम किसी भी वर्ण मैं नहीं

आते हो, जबरदस्ती सबसे नीचे वर्ण मैं रखा है |

२. हिन्दु धर्म के कर्मकांडों को तुम्हे नहीं करने दिया

गया और तुम नहीं कर सकते हो |

३. हिन्दु धर्म के भगवान उनके अवतार और उनके देवी देवता

न तो तुम्हारे है और न तुम उनके हो |

४. इसलिए वे तुम्हारे साये से भी परहेज करते आये हैं और

आज भी कर रहे है |

५. कुत्ते बिल्ली की पेशाब से उन्हें कोई परहेज नहीं है

परन्तु तुम्हारे द्वारा दिए गए गंगा जल से अपवित्र हो

जाते हैं|

६. उनकी पुनः शुद्धि गाय के मल-मूत्र से होती है |

७. हिन्दू धर्म के देवी देवता तुम्हारे पूर्वजों के हत्यारे हैं |

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सामाजिक स्थति

१. तुम्हें समान, मानव अधिकार,सामान

अधिकार,सामाजिक अधिकारों से वंचित रखा गया है

२. तुम अनार्य(हिन्दू) समाज की परिधि-रेखा के बाहर

के आदमी हो |

३. इसीलिए विद्या अर्जन तुम्हारे लिए वर्जित था

४. धन इकठ्ठा करना पाप था

५. शारीरिक क्षमता बढ़ाना मन था

६. राजनीती की बात तो सोचना स्वप्न मैं भी मना

था,तुम्हारे हिस्से सिर्फ काम ही काम दिया गया|

७. तुहारी मुख्य समस्या तुम्हारी गरीबी नहीं बल्कि

हिन्दू धर्म और समाज है, जिसमें जाति के आधार पर

तुम्हारा धार्मिक, सामाजिक,आर्थिक एव राजनेतिक

शोषण हो रहा है |

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१५ अगस्त १९४७

१. तुम्हारी विरासत पर तीन बार हमला हुआ:

-आर्यों का

-मुसलमानों का

-अंग्रेजों का

२. तुम दूसरी और तीसरी गुलामी मैं फंस गए |

३. १५ अगस्त १९४७ को तुम्हें गुलाम बनाने वाले आजाद

हो गए ,पर तुम्हे चार हज़ार वर्ष पूर्व गुलाम बनाने वालों

ने तुम्हें आजाद नहीं किया |

४. तुम्हारी लड़ाई चंद अधिकारों की लड़ाई नहीं है ये

तो आज़ादी की लड़ाई है |

५. इस लड़ाई के लिए मैंने तुम्हें महान अस्त्र दिया है जो

हिन्दुओं के ब्रह्मास्त्र से भी बड़ा है

६. ये अस्त्र है - एक व्यक्ति का एक वोट (मताधिकार)

७. राजा बनने के लिए रानी के पेट की जरूरत नहीं, तुम्हारे

वोट की जरूरत है |

८. तुम अपने वोट से खुद राजा बन सकते हो |

९. तुम्हें जो आरक्षण मिला है ये किसी की दया या

भीख नहीं है, ये तुम्हारा अधिकार है |

८. अधिकार मांगने से नहीं मिलता इसे छीनना होता है

इसे छीन लो |

९. ऐसा करने मैं क़ुरबानी देनी होती है, जिस कौम में

क़ुरबानी देने वाले नहीं वो कौम कभी आगे नहीं बढ़

सकती, क़ुरबानी दो आगे बढ़ो

१०.सावधान रहो अपने खिलाफ की जाने वाली

साजिशों को पहचानो और विफल करो |

११. तुम्हें अपने पैर चाहिए बैसाखी नहीं |

१२. संस्कार मैं दिए गए सूअर , भेड़, बकरे, मुर्गे, जूता सिलने

की मशीन तुम्हारा आर्थिक उथान नहीं कर सकेंगे |

१३. ये तुम्हारे और तुम्हारी आने वाली पीढ़ीयों को

ख़राब करने की साजिश है, इसका बहिष्कार करो |

१४. पूना-पेक्ट की वजह से तुम्हारा राजनेतिक अधिकार

बेमाने हो गए है |

१५. इससे तुम्हारा राजनेतिक प्रतिनिधित्व विकलांग

ही नहीं बल्कि लकवाग्रस्त गो गया है |

१६. नौकरी मैं आरक्षण पूरा न होने के कारण तुम्हारे

लाखो-करोड़ों भाई बेकार है |

१७. इससे तुम्हारे समाज का लाखों करोडो का नुकसान

हो रहा है, इस नुकसान को बचाओ|

१८. याद रखो तुम्हारे प्रति जो सवर्णों का आकर्षण है

वो प्रेम नहीं बल्कि तुम्हारे खो जाने का भय है |

१९. इक्कीसवीं सदी तुम्हारी होगी इसे कोई रोक नहीं

सकता इस पर विश्वास करो |

२०. याद रखो अन्याय का विरोध सम्मान और

अधिकार की प्राप्ति ही जीवन है

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समता सैनिक दल द्वारा समाज हित में जारी।